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गाड़ी के बाएं शीशे से देख रहा था मैं, पीछे स्कूटी वाली लड़की कब से मुझे ओवरटेक करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन क्या उसे नहीं पता कि बाएं तरफ से ओवरटेक करना गलत है? फिर भी वह पतलीदुबली सी लड़की, जिस ने कैप्री जींस और टौप पहना हुआ था और अपने कानों में ईयरफोन लगाए हुए थी। वह बारबार पीपी...कर मेरा कान पका रही थी. चाह रहा था कि उसे रास्ता दे दूं, पर एक तो इतनी पतली सड़क, ऊपर से गाड़ी की आवाजाही. रास्ता देता तो कैसे? फिर भी कोशिश कर रहा था मैं. लेकिन उसे तो इतनी हड़बड़ी थी कि वह मेरी गाड़ी को टक्कर मारते हुए आगे निकल गई और अपनी स्कूटी सहित सड़क पर ही लुढ़क गई.

"अरे, देखो लड़की गिर गई," बोल कर आतेजाते लोग अपनी गाड़ियां रोक कर उसे देखने लगे. मैं भी अपनी गाड़ी से उतर ही रहा था. मगर वह लड़की तो झट से उठी और अपनी स्कूटी से फुर्र हो गई. वहां खड़े लोग यह कह कहते हुए अपने रास्ते चल दिए कि चलो भई चलो, लड़की ठीक है, उसे कुछ नहीं हुआ... मगर मुझे बहुत गुस्सा आया कि उस लड़की ने मेरी गाड़ी का शीशा तोड़ दिया. बेवजह का खर्चा आ गया न. अब कौन करेगा इस की भरपाई? वह लड़की? मगर वह कौन है, कहां रहती है, मुझे क्या मालूम. मन ही मन मैं झल्ला पड़ा.

"पता नहीं आजकल के बच्चों को इतनी जल्दी क्यों रहती है? लगता है जैसे 2 पहिए की गाड़ी नहीं, हवाईजहाज चला रहे हों। अरे, सब्र नाम की तो चीज ही नहीं है इन में," घर में घुसते हुए मैं बड़बड़ाया तो मेरे हाथों से दूध का पैकेट लेते हुए मेरी पत्नी शशि ने मुझे अजीब तरह से देखा और बोली, "क्या हो गया, यह सुबहसुबह किस पर बरस रहे हो?”

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