“मुझे यह सब नहीं जानना,” शशि ने रूखे मुंह से कहा.
“जानना भी पड़ेगा आप को और सुनना भी पड़ेगा. क्योंकि वह भी इंसान है हमारी ही तरह. और यह जातधर्म का ढोंग अब बस रहने ही दो.आज लड़कियां इसलिए कमजोर हैं क्योंकि समाज की सोच आज भी वही है कि दोष तो लड़कियों में ही है. लड़के तो दूध के धुले होते हैं. बदनामी से बचने के लिए अगर वह लड़की बच्चा अबोर्ट करवाती है तो उस की जान जाएगी, जैसा डाक्टर ने कहा. और नहीं करवाती है, तो समाज उसे जीने नहीं देगा. बिनब्याही मां बोल कर उसे जीतेजी रोज मरेगा. लेकिन इस में आप के पोते का कोई दोष नहीं है? क्या अकेले ही वह गर्भवती हो गई? आखिर तुम भी तो एक बेटी की मां हो? कैसे एक लड़की का दर्द समझ नहीं आता तुम्हें?” मेरी बात पर किसी ने कुछ जबाव नहीं दिया. खैर, मैं ने अपना फैसला सब के सामने रखते हुए कहा.
“मैं ने फैसला किया है कि आदर्श और अलिशा की शादी करा दी जाए. अगर नहीं, तो फिर मैं अलिशा के साथ हूं,” मेरी बात सुन कर आदर्श घबरा गया. सोचने लगा कि अगर अलिशा ने पुलिस में कंपलेंट कर दिया उस के खिलाफ तो उस की पूरी लाइफ हेल हो जाएगी. फिर क्या करेगा वह और उसे यह भी पता था कि उस के दादू यानी मैं,अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा बन जाता हूं. इसलिए मन ही मन उस ने हथियार तो डाल दिया. लेकिन बाकी घर वाले अभी भी जातधर्म पर अटके हुए थे.
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