धीरेधीरे दिन बीतते गए. अंशुल-रोली 3 महीने के हो गए. अब वे एक बार में तीनचार घंटे सोते थे. सो, माधुरी को भी उसी बीच सोने का समय मिल जाता. बच्चों के जागने से पहले वह उठती, उन का दूध तैयार करती और उन के सोने के बाद सोती. इन 3 महीनों में माधुरी का 9 किलो वजन कम हो गया और कई सारी दवाएं शुरू हो गईं.
14 मार्च को अंशुल-रोली के 3 महीने के होने पर शाम को एक भोज का आयोजन हुआ. सारे रिश्तेदार, मित्र और महल्ले के लोग आमंत्रित किए गए. लोगों को धीरेधीरे पता लग गया था कि ये बच्चे सरोगेसी से किए गए हैं. भोज का आयोजन प्रभाष के घर के सामने वाले पार्क में किया गया. दोनों बच्चों को अलगअलग ट्रॉली पर बिठा कर प्रभाष और माधुरी रात 8 बजे पंडाल में आए. लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा उन की तरफ, हर कोई बधाई देने लग गया.
‘किस पर गए हैं? लड़का माधुरी पर है और लड़की प्रभाष पर,’ कहते हुए प्रभाष के फूफा ने दोनों के लिए लाए उपहार दिए.
‘प्रकृति इन्हें स्वस्थ रखे और ये खूब तरक्की करें,’ कहते हुए कुशवाहा जी ने आशीर्वाद दिया.
‘प्रकृति ने हमारी सुन ली है. आप सब बच्चों को खूब आशीर्वाद दीजिए. ये हमेशा स्वस्थ रहें, तरक्की करें,’ हर किसी से कहती फिर रही थीं प्रभाष की मां.
प्रभाष और माधुरी हर अतिथि से मिलते, उन का धन्यवाद करते और खाना खा कर ही वापस जाने का आग्रह करते. सब ठीक चल रहा था कि पड़ोस की मंजुला भाभी ने आखिर पूछ ही लिया, ‘माधुरी, तुम जब मायके गईं तब तो तुम्हारा पेट उतना नहीं निकला था. जबकि, सुना है कि जुड़वां बच्चों में ज्यादा निकलता है.’