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तय प्रक्रिया के तहत दोनों ने एक महीने दवाएं खाईं. उस के बाद दोनों के जरूरी तत्त्व लिए गए. लैब में भ्रूण बनाया गया. उस के महीनेभर बाद माधुरी के गर्भ में उस भ्रूण को डाला गया. पर गर्भ ने उसे स्वीकार नहीं किया और यह पूरी प्रक्रिया असफल रही. दोनों बहुत परेशान हुए.

डा. लतिका ने उन्हें समझाया- ‘आईवीएफ में साधारणतया 30 से 40 फीसदी मामले सफल होते हैं. हम फिर कोशिश करेंगे. चूंकि प्रकिया जटिल है और असफल होने पर मानसिक रूप से तोड़ देती है, इसलिए हम दोतीन महीने रुकते हैं. उस के बाद फिर कोशिश करेंगे.’

माधुरी ने दुखी मन से कहा, ‘आप जैसा ठीक समझें, मैडम. हम तो पिछले 2 महीने से बहुत उत्साहित थे. अब देखिए, अगली बार क्या होता है?’

‘तुम दोनों धैर्य रखो और प्रकृति पर भरोसा भी. मैं सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया करती हूं. उस की सफलता या असफलता प्रकृति के हाथ में है. हमारा काम कोशिश करते रहना है,’ कह कर डा. लतिका ने दोतीन महीने बाद आने को कहा और आने के एक महीना पहले वही दवाएं खाने की सलाह दी.

5 महीने बाद दोनों ने दोबारा प्रयास किया. इस बार भी असफलता हाथ लगी. दोनों टूटते जा रहे थे. पर हर बार एकउम्मीद के साथ खुद को तैयार करते. हर बार प्रभाष और माधुरी 2 महीने इसी उम्मीद में जीते कि इस बार सब अच्छा हो. एकएक कर के 4 बार आईवीएफ की प्रक्रियाएं असफल हुईं. और ऐसा करतेकरते पूरे 3 साल निकल गए. अब दोनों ने हार मान ली और निराश हो गए.

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