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शहर के चौक बाजार में प्रभाष की ‘परिधान’ नाम से रेडीमेड कपड़े की दुकान है. वहां कुल 8 लोग काम करते हैं. परिधान, रेडीमेड कपड़ों के लिए शहर की अच्छी दुकानों में शामिल है. शादी के बाद दोनों का दांपत्य जीवन बहुत बढ़िया चल रहा था. दोनों साल में एक बार बाहर घूमने भी जाते थे. शाम को घर लौटते वक्त प्रभाष अकसर रजनीगंधा के फूलों का गजरा ले आता जो माधुरी को पसंद है. हफ्ते में एक दिन वे पिक्चर देखने जाते और लौटते समय चटपटा चाट हाउस की पानीपुरी भी खाते थे. शादी के 2 साल बीतने के बाद सब ने पूछना शुरू किया खुशखबरी के बारे में. प्रभाष की मां भदोही से जब फोन करती तो थोड़ी देर में यह मुद्दा आ ही जाता.

‘अरे, पड़ोस का मुकुल है न, जो तुम्हारे साथ पढ़ा था. उस की शादी अभी पिछले जून में हुई थी. सुना है, बहुरिया पेट से है. अब तुम लोग भी जल्दी कुछ अच्छी खबर सुनाओ. एक लल्ला का मुंह देख लूं तो चैन से ऊपर जाऊं.’

ऐसी बातें हर दूसरे दिन मां या तो प्रभाष या माधुरी से कहती. पड़ोसी और दोस्तों ने भी गाहेबगाहे पूछना शुरू कर दिया था. पड़ोस के कुशवाहा जी अकसर सुबह टहलते समय प्रभाष से पूछ बैठते, ‘बेटा, जल्दी से मुझे ताऊ जी बोलने वाला घर में लाओ. घर पूरा हो जाएगा.’ शादी के 5 साल बाद भी माधुरी की गोद सूनी ही रही.

दोनों को अब चिंता होने लगी थी. प्रभाष ने इस बारे में अपने प्रिय मित्र रोहन खत्री से चर्चा की तो उस ने शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ डाक्टर सुहासिनी शर्मा को दिखाने का सुझाव दिया. मित्र की सलाह मानते हुए दोनों ने डा. सुहासिनी को दिखाया. पूरे 3 साल इलाज चला. दोनों की कई सारी जांच हुईं, कई सारी दवाएं चलीं. डा. सुहासिनी ने बहुत प्रयास किए कि माधुरी की सूनी गोद प्राकृतिक रूप से भर जाए पर सफलता हाथ न लगी. आखिर में उन्होंने प्रभाष को नई तकनीक का सहारा लेने की सलाह दी और इस बाबत अपनी मित्र डा. लतिका गुप्ता से बात भी की.

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