दोनों के स्वर उग्र थे. मैं ने उन को शांत किया,"मैं समझता हूं, इस में कोई परेशानी नहीं है. वे दोनों बालिग हैं और कहीं भी शादी कर सकते हैं. साहब लोगों, आप दोनों जानते हैं कि आज के जमाने में कौन जातपात को मानता है? लड़कालड़की दोनों पढ़ेलिखे हैं. अच्छी नौकरी में हैं और सब से अधिक यह कि दोनों अफसर हैं. वे शादी कर भी लेते हैं तो वे गांव कहां आएंगे तब? वे आप को बिना बताए कोर्ट में भी शादी कर सकते हैं."
"साहब, यही बात तो मैं भी कह रहा हूं," लीटू ने कहना शरू किया,"मुझे मेरी बेटी ने और जोगिंदर साहब को इन के बेटे ने लिखा है कि वे अगले महीने की 15 तारीख को शादी कर रहे हैं, कृपया पठानकोट के सिविल कोर्ट में आशीर्वाद देने आ जाएं. इन के बेटे की पोस्टिंग भी गुरदासपुर डीएम के रूप में हो गई है."
"अब बताएं. उन दोनों बच्चों ने सारी समस्याओं का हल खुद ही कर लिया है. आप दोनों यहां लड़ रहे हैं. उन्होंने आप को केवल सूचित किया है कि वे अगले महीने शादी कर रहे हैं. यह भी एक तरह से साफ कर दिया है कि अगर आप आते हैं तो भी वे शादी करेंगे और नहीं आते हैं तो भी.
"आप जाएं और दोनों परिवार जा कर उन को आशीर्वाद दें. फौज में कोई भेदभाव नहीं है. सब एक ही टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं.’’मेरी बात सुन कर दोनों चुप रहे. जिस का मतलब यह भी था कि दोनों राजी हैं.
मैं ने सरपंच साहब से कहा,"सब ठीक हो गया है. एक राजीनामा बनाएं और सभी के दस्तखत ले लें."‘‘शुक्रिया, बिग्रैडियर साहब, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी मामला सुलझ जाएगा.’’मैं घर लौट आया. शन्नो ने मुझ से पूछा, "क्या हुआ जी?"
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