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साक्षी की बात मां सुषमा को जरा भी पसंद नहीं आई. वे बोलीं, “जब वह सामने से तुम्हें अपनाना चाहता हैतो जरा झुक जाने में क्या हर्ज हैकिस पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़े नहीं होतेतो क्या सब तलाक लेने पर उतारू हो जाते हैंलोग तो ऐसे ही कुछ भी बातें बनाते हैं. किसी को अच्छे से खातेपीतेरहते देख जाने क्यों लोगों के पेट में दर्द होने लगता है. लेकिनतू क्यों उन की बातों में आ कर अपना घरबार छोड़छाड़ कर यहां आ बैठी हो. बोल...मैं तो कहती हूं कि सुलह कर ले दामादजी सेनहीं तो कहीं ऐसा न हो कि बाद में तुम्हें पछताना पड़े.

"पति है वो तुम्हाराअगर उन की दो बातें सुन ही लेगीतो क्या बिगड़ जाएगा तेराइतनी अच्छी नौकरी हैअपना घर है. तो और क्या चाहिए तुम्हें?” मां की बात पर साक्षी सुलग उठी कि कैसी मां हैं ये. जो अपनी ही बेटी को झुकने की सलाह दे रही हैंजबकि गलत वो इनसान है.

अच्छी नौकरी और घर... तो क्या आत्मसम्मान कोई मायने नहीं रखता इनसान के लिएसच तो यह है कि नरेश ने कभी मुझे अपनी पत्नी समझा ही नहींबल्कि वह तो मुझे अपने पैरों की जूती समझता रहा और मैं पत्नी धर्म निभाती रही. पता हैक्योंक्योंकि लड़कियों को बचपन से यही सिखायापढ़ाया जाता है कि उस का पति उस का देवता है और उस के चरणों में ही पत्नी का स्वर्ग है. आप ने भी तो मुझे यही सिखाया है न मांलेकिन वो देवता नहींदानव हैदानवजो सिर्फ मुझे नोचनोच कर खाता रहा आज तक. और आप कहती हैं कि जरा झुक जाने में क्या हर्ज है,” बोलतेबोलते साक्षी का गला भर्रा गया.

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