“अरे, ऐसे घूर क्यों रही हो मुझे? कुछ गलत बोल दिया क्या मैं ने? सौरीसौरी,” अपना कान पकड़ते हुए नरेश फिर शुरू हो गया, “जानते हो सब्जी वाले भैया, मैडमजी अगर एक दिन भी बच्चों को न पढ़ाएं, तो बेचारी के पैसे काट लिए जाएंगे. फिर तुम्हारा ये गोभी, बैंगन, मटर, टमाटर, और पालक कौन खरीदेगा... बोलो?” इस बार उस ने मटर का छिलका साक्षी के मुंह पर दे मारा, तो वह गुस्से से तिलमिला उठी. मन तो किया कि एक जोर का तमाचा उस के गाल पर जड़ दे और कहे कि कुत्ते की दुम कभी सीधी हो ही नहीं सकती. मगर वह यहां लोगों के बीच कोई तमाशा नहीं खड़ा करना चाहती थी. इसलिए सब्जी का थैला उठा कर चलती बनी.
“अरे रे... रे... रे, सुनो तो टीचरजी, मैं तो तुम्हारी मदद करना चाहता था और तुम हो कि नाराज हो गई. अच्छा चलो, मैं अपनी गाड़ी से तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं. क्योंकि इस कड़ी धूप में तुम्हारा ये गोरा रंग कहीं काला न पड़ जाए,” साक्षी के गालों को छूते हुए नरेश बोला, तो उस ने उस का हाथ जोर से झटक दिया.
“बेशर्मी की भी कोई हद होती है. तुम अपनेआप को समझते क्या हो? वहां पुलिस खड़ी है, देख रहो हो न,” जब साक्षी ने पुलिस की धमकी दी, तो नरेश वहां से नौ दौ ग्यारह हो गया. ‘डरपोक कहीं का... बस औरतों पर ही चलाना आता है इसे. डरती थी कभी, पर अब ठेंगे से नहीं डरती. बड़े आए,” अपना अधर टेढ़ा कर साक्षी हंसी और रिकशे वाले को हाथ दिया.
इस बेशर्म इनसान के साथ साक्षी ने 2 साल कैसे गुजारे, वही जानती है. लेकिन अब और नहीं. क्योंकि अब उस में बरदाश्त करने की शक्ति नहीं बची. साक्षी को तकलीफ दे कर वह खुद को मर्द समझता था. उसे लगता था, सहेगी क्यों नहीं, वरना जाएगी कहां? अपने बातव्यवहार से रोज वह उस के कलेजे को छलनी करता और हर बार वह अपने जख्मों पर मरहम लगा कर फिर से पत्नी धर्म निभाने में लग जाती. लेकिन आखिर कब तक और कितना सहती वो?इसलिए तो नरेश का घर छोड़ आई. सोच लिया उस ने कि चाहे जो हो जाए, लेकिन वह नरेश से तलाक ले कर ही रहेगी.