बाजार में सब्जी का रेट जान कर साक्षी के होश उड़ गए. “अरे, पागल हो गए हो क्या? सब्जी बेच रहे हो या सोना? 120 रुपए किलो गोभी कहां मिलता है? 70 रुपए से एक रुपया भी ज्यादा नहीं दूंगी. समझ लो,” खुद से गोभी चुन कर तराजू पर चढ़ाते हुए साक्षी बोली.
“नहीं मैडमजी, भाव तो एक रुपए भी कम नहीं होगा,” तराजू पर से गोभी नीचे रखते हुए सब्जी वाला बोला, “आप कहीं से भी जा कर पूछ लो. सब्जियां इस से कम में मिल जाएं तो… और अभी तो सब्जियों के भाव और ऊपर भागेंगे,“ सब्जियों पर पानी का छिड़काव करते हुए सब्जी वाला दूसरे ग्राहकों से बात करने लगा, तो साक्षी खीज उठी. एक तो मन किया कि उस की सब्जी ही न ले. मगर घर से हुक्म मिला है कि गोभी तो ले कर ही आना, तो ले कर जाना पड़ेगा न.
“लेकिन, यह तो बहुत ज्यादा है भैया. कुछ तो कम करो,” साक्षी ने पैसा कम कराने की गरज से बोला. लेकिन सब्जी वाला टस से मस न हुआ. “अच्छा भई, ठीक है, चलो, तौल दो आधाआधा किलो गोभी, टमाटर, मटर. और हां, एक गड्डी पालक भी देना और साथ में धनियामिर्ची भी डाल देना.“
‘एकदम लूट मची है सच में. हर चीज महंगी होती जा रही है. पैट्रोलडीजल के दामों में भी आग लगी हुई है. आखिर आदमी जिए तो कैसे? इस सरकार ने तो लोगों की कमर ही तोड़ रखी है. पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी, उस के बाद कोरोना ने क्या कम मुसीबत ढाए हैं लोगों के ऊपर, जो दिनप्रतिदिन महंगाई भी डंक मार रही है,’ अपनेआप में ही भुनभुनाते हुए साक्षी पर्स से पैसे निकालने लगी कि देखा, सब्जी वाला उसे छोड़ दूसरेतीसरे ग्राहकों को सब्जियां तौल रहा है.
“क्या है भई, पहले मैं आई हूं न? तो प्लीज, पहले मेरी सब्जी तौलिए न. वैसे भी, मुझे जल्दी है.““हांहां भई, मैडमजी को जरा जल्दी है. जानते नहीं कि ये कितनी बिजी पर्सन हैं,” पीछे से जानीपहचानी आवाज सुन कर साक्षी ने जब मुड़ कर देखा, तो चौंक पड़ी. नरेश बेशर्मों की तरह खड़ा हंस रहा था. एक मटर उठा कर उसे छील कर खाते हुए छिलका साक्षी की तरफ उछाल कर बोला, “ओ सब्जी वाले, तुम्हें पता नहीं है कि क्या मैडमजी टीचर हैं? ये अपने घर पर छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढाती हैं और जिस के लिए इन्हें पैसे मिलते हैं और उन्हीं पैसों से तो बेचारी की जिंदगी चलती है,” बोल कर नरेश ठहाके लगा कर हंसा, तो साक्षी ने उसे घूर कर देखा.