श्यामसुंदर जी को अपनी ओर देखता देख बोल पड़ा, "मुझे धर्मशाला वाले शास्त्रीजी ने आप के पास भेजा है आप का हाल पूछने के लिए."क..क्या नाम है तुम्हारा?" श्यामसुंदर जी ने कांपती आवाज में पूछा."जी..चंदु, सभी मुझे चंदु कह कर बुलाते हैं," दूध के गिलास को बैड से सटे टेबल पर रखते हुए उस ने जवाब दिया.
"वैसे, मेरा नाम चंद्रशेखर है," लड़के ने शालीनतापूर्वक कहा."पहले कभी देखा नहीं, नए लगते हो," श्यामसुंदर जी ने उत्सुकतावश पूछा. "जी, मैं अनाथ हूं. मेरे दूर के एक चाचा मुझे शास्त्रीजी के पास धर्मशाला में छोड़ गए,'' लड़के ने जवाब दिया.
श्यामसुंदर जी को उस अनाथ लड़के से एक जुड़ाव सा होने लगा था. अब तो रोज ही चंदु उन के पास आने लगा था. खूब सारी इधरउधर की बातें करता, उन की सेवा करता. धीरेधीरे श्यामसुंदर जी खुद को पहले से स्वस्थ महसूस करने लगे थे.
परंतु अचानक इधर कुछ दिनों से चंदु का आनाजाना बिल्कुल बंद हो गया था. परंतु श्यामसुंदर जी को उस अनाथ लड़के चंदु की आदत सी हो गई थी और फिर इस तरह उस का अचानक ही आना बंद हो जाने से उस लड़के के प्रति उन के मन में चिंता उत्पन्न हो रही थी.
परंतु अभी भी उन के स्वास्थ्य में पूरी तरह से सुधार नहीं हुआ था. परंतु उस लड़के के प्रति उन के मन में जो प्रेम था और जिस जुडाव को वे उस के प्रति महसूस करने लगे थे, उस ने उन के बीमार शरीर को भी बिस्तर से उठने पर मजबूर कर दिया. वे किसी प्रकार खुद को संभालते हुए घर से निकल कर लड़खड़ाते कदमों के साथ उस अनाथ लड़के चंदु का हाल जानने के लिए धर्मशाला पहुंच गए. धर्मशाला पहुंचते ही उन की नजर चंदु पर पड़ती है.
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