लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव
‘‘रोती क्या हो, उमा. कुछ नहीं होगा. अभी जय को डाक्टर बनाना है, उस की शादी करनी है. तुम्हारे लिए भी कुछ करना है. तुम ने मेरे लिए बहुत किया है, मेरी नौकरी नहीं लगी थी, उस समय तुम ने ही मु?ो हौसला दिया, मदद की. अपने सारे गहने मेरी जरूरतों के लिए एकएक कर बेचती चली गईं. वे भी तो बनवाने हैं और मकान का लोन भी तो... यकीन करो, अब बिलकुल नहीं पीऊंगा. मु?ो माफ कर देना इस बार,’’ कहते हुए देवेश ने हाथ जोड़ लिए थे.
देवेश बड़बड़ाता जा रहा था और उमा अपने आंसुओं को रोकने की चेष्टा कर रही थी, ‘कितने दयनीय लग रहे हैं ये इस समय, जैसे हम सब के लिए क्या कुछ नहीं करना चाहते. सुबह की बात क्या कहूं इन से, कुछ कहने का फायदा नहीं. इस समय होश में ही नहीं हैं तो सम?ोंगे क्या. हाथ जोड़ कर मु?ो लज्जित कर रहे हैं,’ सोचते हुए उमा ने हाथ जोड़ते देवेश के दोनों हाथ अलग कर दिए.
उमा से कुछ बोला न गया. फिर उस ने खर्राटे भरते देख, देवेश के जूते उतार कर उस के पैरों पर चादर डाल दी और यह सोचते हुए सो गई कि इन से सुबह ही कुछ बोलूंगी.देवेश रोज की तरह तड़के 5 बजे उठा. रोतेरोते उमा को देररात नींद आई थी, सो वह गहरी नींद सो रही थी.‘‘उमा, उठो मैं दूध लेने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो,’’ देवेश बोला, मानो कुछ हुआ ही न हो और दूध लेने चला गया.
नींद खुलते ही वह हड़बड़ा कर उठी. देवेश जब दूध ले कर लौटा तब उमा किचन में थी. जय अभी भी सो रहा था.उमा ने कुछ बोलने के लिए यही समय ठीक सम?ा, सो बोली, ‘‘जानते हैं, कल भी वही हुआ, जय और बब्बन में ?ागड़ा. आप सम?ाते क्यों नहीं हैं? क्या आप को शोभा देता है इस उम्र में ऐसीवैसी हरकतें करना? मैं रश्मि की बात कर रही हूं.’’
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