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लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘नीरू’ देवेश के छिछोरेपन के कारण उस की पत्नी उमा परेशान हो गई थी. महल्ले में सब के सामने उसे जिल्लत उठानी पड़ती. अपनी उम्र और जिम्मेदारियां जानतेबू?ाते भी मानो देवेश की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे...उमा अपने पति देवेश के छिछोरेपन से परेशान थी. ‘छि:, यह भी कोई उम्र है इन की. सारे बाल सफेद होते जा रहे हैं और 5-6 साल में सेवामुक्त भी हो जाएंगे, फिर भी लड़कियों, औरतों को देख कर छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते हैं,’ वह बड़बड़ाए जा रही थी, ‘2 बेटों का ब्याह कर दिया. वे अपनीअपनी नौकरी पर रहते हैं. छुट्टियों में कभीकभी आते हैं, साथ में बहुएं और बच्चे भी होते हैं. उन के सामने ऐसावैसा कुछ भी कर जाते हैं, इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती.’

पड़ोसी रामलाल की 27-28 साल की कुंआरी बहन विमला से देवेश की आजकल खूब पट रही है. उन से कुछ कहने पर वे कहते, ‘अपनी तो वह बहनबेटी जैसी है. विजय की जगह कहीं अपनी लड़की होती तो ठीक इसी उम्र की होती. अच्छीभली है पर रामलाल जाने क्यों अभी तक उस की शादी नहीं कर पाया. जब देखो तब, मनहूस कह कर कोसता ही रहता है. भला उस का क्या कुसूर? बेचारी, बिन मांबाप की लड़की, आंसू ही बहाती रहती है. मु?ो अच्छा नहीं लगता. बेहद तरस आता है.’ अकसर ऐसी ही दलीलें उन से सुनने को मिलतीं.

देवेश जबतब उस की सेवा में लगे रहते. घर में खाने की कोई भी चीज आती, उस में से जरूर कुछ दौड़ कर विमला को दे आते और नहीं तो अलग से ही खरीद कर दे आते. यह देख कर उमा का दिल जल जाता. छुट्टियों में चुन्नू, मोना और बंटी के साथ देवेश का ज्यादा समय बीत जाता तो विमला शिकायत करती, रूठ जाती, ‘अब अंकल हमें पहले जैसा प्यार नहीं करते.’

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