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लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

आज ऐसी हालत में मैं एक गिलास पानी को तरस रहा हूं, जबकि उमा ने मु?ो सही हालत में भी कभी खुद पानी लेने नहीं दिया. एक पैर पर खड़ी, वही तो सेवा करती थी. मैं ने उस की कद्र नहीं की, उसी का यह फल है,’ सोच कर वह रो दिया. बु?ो मन से उमा अपने भाई रवि के

साथ वापस लौट आई. रवि ने सूटकेस नीचे रखा तो उमा घर की दूसरी चाबियां टटोल रही थी, लेकिन दरवाजा खुला देख कर वह बुरी तरह चौंक गई. दरवाजा तो खुला हुआ है, आज तो छुट्टी भी नहीं, दफ्तर नहीं गए शायद. स्कूटर भी खड़ा है. लगता है ‘वह सब’ घर पर भी शुरू हो गया है. कितना मजाक बनाएगा देवेश, बड़ा गई थी भाई के यहां... मु?ो मालूम था और कहां जाएगी, तभी मैं ने कोई खबर नहीं ली,’  सोचती हुई उमा, रवि के साथ अंदर हो ली. कमरे के अंदर से कराहने और पानीपानी कहने की आवाजें आ रही थीं.

अंदर पहुंची तो देवेश की हालत देख कर वह कांप गई. ‘कब हुआ यह सब,’ सोचती हुई वह दौड़ कर किचन में गई. फ्रिज खोला तो उस में एक भी बोतल नहीं मिली, घड़ा भी खाली था. उस ने नल खोला कि शायद पानी आ रहा हो. ‘‘शुक्र है, नल में पानी है,’’ कहते हुए वह दौड़ कर पानी ले आई. रवि की मदद से उस ने देवेश को उठा कर पानी पिलाया.

‘‘यह सब क्या हुआ, जीजाजी,’’ रवि आश्चर्य में था.‘‘स्कूटर... फिसल गया... था,’’ देवेश ने एकएक शब्द रुकरुक कर बड़ी मुश्किल से कहा. उमा जानती थी, फिसला कौन था, पर भाई के सामने वह कुछ न बोली. ‘‘मु?ो माफ कर दो, उमा. मैं ने तुम्हें...’’ देवेश अपनी बात पूरी करता तभी उमा बोल पड़ी, ‘‘कुछ बोलने की जरूरत नहीं...’’ मानो बोलने का दर्द उमा स्वयं महसूस कर रही थी.

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