लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव
उमा ने जब सारी स्थिति उसे बताई तो अल्पना का चेहरा तमतमा गया. उस ने अपनी लड़कियों को बुलाया और जीभर कर डांटा. ‘‘मम्मी, हम क्या करें, अंकल ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं,’’ बड़ी लड़की रमा बोली. ‘‘खबरदार, जो मेरे पीछे किसी अनजाने व्यक्ति के लिए दरवाजा खोला. जब तक हमें दूसरा घर नहीं मिल जाता, तुम दोनों अकेले बाहर नहीं निकलोगी,’’ अल्पना चौधरी ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया और ‘‘धन्यवाद, उमा बहन, आप ने हमें आगाह कर दिया, मगर देवेशजी को भी अच्छी तरह सम?ा दीजिए. ऐसा ही करेंगे तो पुलिस, थाने के चक्कर में आ जाएंगे,’’ कहते हुए उस ने उमा को नसीहत दी.
उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.पर वे लोग ज्यादा दूर नहीं गए हैं, देवेश ने जल्दी ही पता कर लिया और फिर वही चक्कर चलने लगा. न तो वे लड़कियां मानतीं और न ही देवेश बाज आता. उमा ने बहुत सम?ाया, ?ागड़ा किया पर देवेश की बुद्धि पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. उसे अपनी भूल का तनिक भी एहसास न होता.
इसी बीच जय पीएमटी में पास हो गया और उस का मैडिकल कालेज में दाखिला भी हो गया. वह छात्रावास चला गया.उमा इस बात से खुश थी कि चलो, एक चिंता तो दूर हुई, मगर देवेश अपनी मनमानी करता रहता. अब तो उन्हें जय की मौजदूगी का भी डर नहीं था, सो दोनों में खूब ?ागड़ा होता.उमा तंग हो कर कहती कि ऐसा ही चलता रहा तो वह घर छोड़ कर विजय के पास मुंबई या अजय के पास कश्मीर चली जाएगी, फिर रहें अकेले, खूब पिएं और मस्ती करें.
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