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‘‘बेटा, तुम कुछ बताते नहीं हो. आखिर बहू को इस घर से या हम से क्या परेशानी है? हम तो उसे एक शब्द भी नहीं कहते. वह अपने मन की करती है, फिर तुम्हारे बीच लड़ाईझगड़ा...?’’ इतना कह कर शारदा चुप हो गई. रमाकांत ध्यान से प्रियांशु का मुंह ताक रहे थे.

प्रियांशु ने अपना हाथ रोक कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं स्वयं हैरान और परेशान हूं. वह कुछ बताती ही नहीं. बस, बातबात में गुस्सा करना और बात को बढ़ाते चले जाना उस का स्वभाव है. मैं चुप रहता हूं, तब भी चिल्लाती रहती है.’’‘‘क्या वह स्वभाव से ही गुस्सैल और चिड़चिड़ी है?’’‘‘हो सकता है, परंतु हम कुछ भी तो ऐसा नहीं करते, जिस से उसे गुस्सा आए.’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आता,’’ रमाकांत ने पहली बार अपना मुंह खोला, ‘‘क्या मैं उस से बात करूं?’’‘‘कर सकते हैं, परंतु वह बहुत बदतमीज है. जब मेरी नहीं सुनती, तो आप की क्या सुनेगी? कहीं गुस्से में आप की बेइज्जती न कर दे,’’ प्रियांशु ने कहा.‘‘तो फिर उस के मम्मीपापा से बात कर के देखते हैं. कुछ तो उस के स्वभाव के बारे में पता चले,’’ रमाकांत ने आगे सुझाव दिया.

‘‘देख लीजिए, जैसा आप उचित समझें. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता. पर यही भय बना रहता है कि पता नहीं किस बात पर वह भडक़ जाए.’’सच, प्रियांशु मानसिक रूप से बहुत परेशान था. अखिला के सारे प्रत्यक्ष प्रहार वही झेलता था. शारदा और रमाकांत, बस, उसे धीरज बंधा सकते थे.

रमाकांत ने फोन पर अखिला के पिता अवनीश से बात की. अखिला के व्यवहार के बारे में विस्तार से बताने के बाद पूछा, ‘‘भाईसाहब, हम अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करते कि उसे कोई कष्ट हो, परंतु पता नहीं उसे किस बात की तकलीफ है कि हर पल झगड़े के मूड में रहती है.’’

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