रिचा ने चाय बनाई. तीनों ने साथसाथ चाय पी. चाय खत्म हुर्ई तो बाई आ गई. वह उदास सी खड़ी शारदा और रमाकांत को देख रही थी. कर्ई सालों से वह उन के घर में काम कर रही थी. अच्छी तरह सब के स्वभाव से परिचित थी. उन के ऊपर आई विपत्ति से वह परिचित थी. उसे दुख था कि कुदरत भी अच्छे लोगों को परेशान करती है, उन्हें कष्ट देती है.
रिचा ने उस से कहा, ‘‘माला, किचन में थोड़ी चाय बची है, उसे गरम कर के पी लो. फिर घर की सफाई करो. मैं तब तक खाना बना लूंगी.’’‘‘दीदी, चाय मैं बाद में पी लूंगी. पहले घर की सफाई करती हूं, बहुत गंदा हो गया है.’’‘‘ठीक है,’’ फिर रिचा ने मम्मीपापा से कहा, ‘‘आप दोनों तब तक नहाधो लीजिए. अभिनव औफिस से हो कर अभी थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’
सुबह अभिनव उन के साथ ही था. रिचा को मम्मीपापा के साथ घर भेज कर वह औफिस चला गया था.अभिनव आया तो सभी लोगों ने साथसाथ खाना खाया. खाते समय आगे की कार्रवाई पर विचार किया गया.शारदा ने पूछा, ‘‘आगे क्या होगा?’’‘‘मुकदमा चलेगा, उस की चिंता नहीं है. हमें सब से पहले प्रियांशु की जमानत करवानी होगी. कैसे होगी क्योंकि हमारे पास हमारी बेगुनाही का कोई सुबूत नहीं है,’’ शारदा ने मायूसी से कहा.
‘‘मारपीट का सुबूत तो अखिला के पास भी नहीं है,’’ रिचा ने तर्क दिया.‘‘सही है, परंतु नवविवाहिता है. उसी ने मुकदमा लिखवाया है. जब तक हम कोई सुबूत नहीं देंगे, उसी की बात सच मानी जाएगी. यह तो गनीमत समझो कि उस ने हमारे खिलाफ दहेज का मुकदमा दर्ज नहीं करवाया, वरना कभी जमानत न हो पाती.’’
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