प्रियांशु के वकील ने एकएक सुबूत जब अपने तर्कों के साथ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए तो सब की आंखें आश्चर्य और अविश्वास से चौड़ी हो गईं. स्वयं न्यायाधीश हैरान थे. अखिला और उस के मांबाप सिर झुकाए एकतरफ खड़े थे. उन के वकील की बोलती बंद थी. भले ही उस ने सारे सुबूतों को झूठ और गढ़ा हुआ बताया था, परंतु सच को चीखने की आवश्यकता नहीं होती. अखिला और उस के आवाज की रिकौर्डिंग ने सारी साजिश से परदा उठा दिया था. अखिला ने अपने प्रेमी की सलाह पर ससुराल वालों पर मारपीट का झूठा मुकदमा दर्ज करवाया था.
अखिला के वकील ने तर्क दिया, ‘‘मी लार्ड, ये सारे सुबूत झूठे हैं और जानबूझ कर फैब्रिकेट किए गए हैं. इन की कोई फोरेंसिक जांच नहीं हुई है. इन को रिकौर्ड पर ले कर माननीय न्यायालय अपना समय बरबाद कर रहा है. इन की बिना पर मुलजिम को जमानत नहीं दी जा सकती.’’
न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप चाहते हैं कि इस की फ़ोरेंसिक जांच हो? अगर हां, तो वादी और उस के तथाकथित प्रेमी की आवाज के सैंपल ले कर जांच करवाई जाए.’’
इस पर वकील ने अखिला और उस के मांबाप की तरफ देखा. अखिला तो अपना सिर इस तरह नीचे झुकाए खड़ी थी, जैसे किसी ने उस के ऊपर थूक दिया था. उस के मातापिता ने इनकार में सिर हिला दिया. वकील ने उन के पास आ कर पूछा, ‘‘जांच करवाने में क्या हर्ज है?’’
अखिला के पिता ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं, ये सारे सुबूत सही हैं. आगे जांच करवा कर मैं और फजीहत नहीं करवाना चाहता. इस लडक़ी ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. आप इस मामले को यहीं समाप्त कर दें.’’
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