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लेखिका- छाया श्रीवास्तव

‘‘नहीं दीदी. मैं अब, जब तक सचाई जान नहीं लूंगी, चैन से नहीं बैठूंगी. तुम्हारी बात पर मु?ो तो विश्वास है परंतु पापामम्मी को नहीं. कैसे होगा? तुम यहां आ जाओ तो बात बन सकती है. कैसे भी हो, आओ, नहीं तो तुम्हारी बहन भी कहीं तुम जैसी गंदगी भोगने को न ?ांक दी जाए. पापा का क्रोध तो तुम जानती हो. उन्हें तो जब तक उस की चालबाजी के पक्के सुबूत नहीं मिलेंगे, उसे वह तुम्हारी ईर्ष्या का कारण मानेंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं कल आ रही हूं और होटल सूर्या में रुकूंगी. तुम कम से कम मम्मी को तो सबकुछ बता दो.’’

‘‘नहीं दीदी. जब तक मैं स्वयं सब अपने कानों से न सुन लूंगी, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

‘‘ठीक है, जहां तक है, कल अतुल भी वहां पहुंचेगा या शायद आज ही पहुंच जाए क्योंकि लखनऊ से कानपुर दूर ही कितना है? ठीक है, कल मैं 11 बजे तक वहां पहुंचूंगी और तुम्हें फोन करूंगी.’’

दूसरे दिन गीता, अजय और शेखर

कानपुर रवाना हो गए. उस ने फोन से विभा द्वारा सूचना भेज दी. विभा चुपचाप मीता को सूचित कर आई. विभा के यहां जाने का बहाना कर मीता होटल सूर्या जा पहुंची. वहां अजय ने एक कमरा बुक करा लिया था.

कमरे के बाहर पहुंच कर मीता ने घंटी बजाई तो गीता ने ही दरवाजा खोला. क्षणभर दोनों ने एकदूसरे की ओर निहारा, फिर गले मिल कर फूटफूट कर रो पड़ीं. गीता ने बहन के आंसू पोंछ कर उसे बैड पर बिठाया, फिर अजय और शेखर का परिचय कराया.

इस बीच वे दोनों मिठाई आदि का प्रबंध करने बाहर निकल गए. गीता ने अपने साथ घटी संपूर्ण घटनाएं क्रमवार सुना डालीं, सिवा गर्भपात होने की बात के. फिर उस ने वह निमंत्रणपत्र और साथ ही उस की जम कर पिटाई की घटना बता डाली और वह फोटो भी देना नहीं भूली जो कभी अतुल के साथ भागने के पश्चात स्थानस्थान पर उन दोनों ने खिंचवाए थे.

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