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गीता परीक्षा से निबट चुकी थी. अब पहले जैसा काम भी नहीं रहा था. बड़ी कक्षाओं के कुछ बच्चे आ रहे थे, शेष आगे की तैयारी कर रहे थे. छोटे बच्चों का ?ां?ाट कम हो गया था परंतु आगे की तैयारी के कारण कुछ अब भी आ रहे थे. रिजल्ट के बाद 2 माह की छुट्टियां थीं. तभी एक दिन जब वह हिसाबकिताब लिखने में तल्लीन थी, किसी के ‘गीता’ पुकारने से चौंक गई. दरवाजे पर दृष्टि पड़ते ही जैसे उसे करंट लगा. सामने मुसकराता अतुल खड़ा था. इस से पूर्व कि वह कुछ कहती, वह हाथ में कोई पत्र सा लिए आगे बढ़ा और बोलने को होंठ खोले कि गीता चिल्लाई, ‘‘तू? कमीने, तेरी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’ कहती वह कुरसी खिसका कर उठ खड़ी हुई.

 

‘‘मैं ने आखिर ढूंढ़ ही लिया तुम्हें,’’ वह पास आ कर बोला. ‘‘कमला, नेहा, हेमा... जल्दी आओ,’’ गीता चिल्लाई तो वे तीनों पास के कमरे से निकल कर आ खड़ी हुईं. उन्होंने देखा, गीता एक युवक की ओर ?ापट रही है तो वे भी उस की मदद को आगे बढ़ीं. उस की तेज आवाज वे सुन चुकी थीं. गीता फिर बोली, ‘‘यही है वह लुच्चा, अतुल. कमला, इसे देखना है,’’ कहती गीता ऊंची एड़ी की चप्पल ले उस पर बेभाव बरसाने लगी. फिर तीनों क्यों पीछे रहतीं, जिसे जो मिला, उस से उसे धुनती चली गईं. तभी अजय और सीमा हल्ला सुन कर दौड़े आए और छुट्टी होने से शेखर, जो उन्हीं के पास बैठा था, वह भी पिटाई करने में जुट गए. इस बीच अतुल के हाथ का लिफाफा इस धूमधड़ाके में नीचे गिर गया. वह उसे मारतेकूटते बाहर, सड़क तक ले आए जहां औटो खड़ा था. वह लहूलुहान सा उस में बैठ कर भाग छूटा, साथ ही कहता गया, ‘‘देख लूंगा. ऐसा बरबाद करूंगा तुम सब को कि जीवन भर रोओगी.’’

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