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लेखिका- छाया श्रीवास्तव

धंधा न करने की जिद पर गीता इतनी मार सह चुकी थी कि उस का पोरपोर हर क्षण टीसता रहता था. कई दिनों से उसे भरपेट अन्न नहीं मिला था, सिर्फ इतना मिलता कि वह मर न सके, तो भी धंधे में ?ांकी जाती रही. अधमरी सी.

बीच सड़क पर बदहवास सी एक युवती स्कूटर सवार से टकरातेटकराते बची और पीछे से कुछ लोग उसे पकड़ने के लिए दौड़े आ रहे थे. वह उन्हें देख कर दमभर चिल्लाई, ‘‘भैया, मु?ो इन गुंडों से बचा लो. ये मु?ा से ‘धंधा’ करवाते हैं. मु?ो पुलिस स्टेशन ले चलो, भैया. तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगी.’’

इतना कह कर वह जबरन उस के स्कूटर पर बैठ गई. तभी उन गुंडों में से एक उस की बांह पकड़ कर खींचते हुए बोला, ‘‘उतर, कमीनी, नहीं तो जान  से मार दूंगा,’’ फिर वह उस स्कूटर सवार से बोला, ‘‘यह पागल है, इसे उतार दो.’’ ‘‘भैया, स्कूटर दौड़ा लो. न मैं पागल हूं, न बीमार. ये लोग मु?ा से जबरन धंधा करवाते हैं,’’ युवती गुंडों की ओर संकेत करती बोली.

वह घबराहट में रोती हुई चिल्लाए जा रही थी और वे गुंडे उसे घेरने को आतुर थे. तभी स्कूटर सवार युवक ने उस युवती को पकड़ कर खींचने वाले गुंडे को भरपूर लात मारी, जिस से वह लड़खड़ा कर दूर जा गिरा. जब तक वह गुंडा संभलता और उस के साथी उस स्कूटर सवार पर ?ापटते, स्कूटर सवार स्कूटर की स्पीड बढ़ा कर आगे बढ़ गया. जब तक वह दिखता रहा, गुंडे उस का पीछा करते रहे. फिर स्कूटर सवार कहां गुम हो गया वे जान न सके और हाथ मलते, गाली बकते लौट गए.

इधर, संकरी गलियां पार करता वह युवक सीधा कोतवाली पहुंच कर ही रुका. फिर मुड़ कर बोला, ‘‘लो लड़की, कोतवाली आ गई. दाईं ओर औफिस में थानेदार साहब बैठे हैं. मैं तो ?ां?ाट में फंसना नहीं चाहता. मेरी पत्नी बीमार है, उसी की दवा ले कर लौट रहा था,’’ वह दवा दिखाते हुए आगे बोला, ‘‘यह देखो, ये रखी हैं. घर पर छोटेछोटे 2 बच्चे अकेले हैं. औफिस से लौट कर और जाते समय उन्हें देखना पड़ता है. बस, पुलिस को तुम यह बता देना कि मुंहबोला एक भाई उन दुष्टों से बचा कर यहां छोड़ गया है. अच्छा, मैं चलता हूं,’’ और वह स्कूटर की स्पीड बढ़ा कर चलता बना.

वह युवती अपनी गीली आंखें पोंछती अंदर चल दी जहां कुछ बड़े अधिकारी कुरसियों पर बैठे थे. यद्यपि उस का मन कह रहा था कि वह पुलिस के ?ामेले से भाग छूटे. पता नहीं वे कमबख्त उसे पागल करार दे कर फिर न हथियाने की चेष्टा करें, मगर वह इतने बड़े नगर में कहां सुरक्षा ढूंढ़े? वह खड़ीखड़ी सोच ही रही थी कि तभी एक सिपाही की दृष्टि उस पर पड़ गई.

‘‘लड़की, कौन हो तुम? किस  से मिलना है?’’ सिपाही उसे हड़काते  हुए बोला. ‘‘जी, मैं थानेदार साहब से मिलना चाहती हूं. एक मुसीबतजदा हूं. कहां  हैं वे?’’‘‘वह क्या सामने बैठे हैं,’’ वह इशारा कर बोला और उसे ले कर थानेदार के सामने जा खड़ा हुआ, ‘‘साहब, यह लड़की आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘क्यों? क्या बात है? घर से भाग कर आई है क्या?’’ कहते हुए थानेदार ने नजर उठा कर उसे भरपूर दृष्टि से देखा, फिर सिपाही से बोला, ‘‘कौन  है यह?’’‘‘यह तो मैं भी नहीं जानता, पर आप से मिलना चाहती थी, सो मैं ले आया.’’ ‘‘कौन हो तुम? क्या नाम है तुम्हारा? क्या बात है?’’ थानेदार ने युवती से पूछा.

‘‘साहब, मैं गीता हूं और गुंडों के चंगुल से भाग कर आई हूं. वहां मु?ा जैसी ही 8-10 लड़कियां और भी हैं जो बदमाशों द्वारा धंधा करने को मजबूर की जा रही हैं और तैयार न होने पर उन पर कहर बरपाया जाता है. मु?ो और उन भोलीभाली लड़कियों को बचा लो साहब. मेरे वहां से भागते ही वे लोग उन सब को तहखानों में धकेल देंगे या कहीं और भेज देंगे.’’

फिर उस ने अपने यहां तक आने की पूरी दास्तान थानेदार को सुना डाली, साथ ही उस स्कूटर सवार युवक की जो पुलिस के ?ामेले में न पड़ने के चक्कर में उसे यहां पहुंचा कर अपना नामपता बताए बिना चलता बना था. ‘‘तुम्हें वह जगह पता है जहां से तुम भागी थीं? कितने दिन हुए तुम्हें आए? कहां से आईर् हो और कैसे इन दुष्टों के चंगुल में फंस गईं?’’

‘‘साहब, पहले आप उन लड़कियों की सोचिए. वे भी मेरी तरह ही भागने को आतुर हैं. उस गंदगी में भला कौन रहना चाहेगा?’’‘‘सड़क के उस पार पंजाब शाकाहारी नाम से एक बड़ा होटल है. वह कहने को शाकाहारी है पर वहां जिंदा लाशों का मांस परोसा जाता है. मु?ो आए तो अभी कुल 5 दिन ही हुए हैं, परंतु मैं ने साथ की लड़कियों से सारा भेद जान लिया है. मैं यहां बैठी हूं और आप जब तक लौट कर न आएंगे, मैं यहीं बैठी रहूंगी.’’

इंस्पैक्टर फौरन दबिश देने की सोच रहा था. उस ने आननफानन सशस्त्र जवानों को जीप में सवार किया और बताए ठिकाने की ओर चल दिया. कई दिनों की मार, प्रताड़ना और गंदगी से निकल कर गीता मुक्ति की सांस ले रही थी. चायनाश्ते ने उस के मृत जैसे तन में जान डाल दी. अब आगे वह कहां जाएगी, कहां रहेगी? यह सब सोचने लगी.

वह तो भला हो उस थानेदार का जिस ने उसे चायनाश्ता करा दिया था, जिस से उसे क्षणक्षण आते चक्करों से कुछ तो राहत मिली थी परंतु भूख से कुलबुलाती आंतें उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं. वह दोनों घुटने पेट में दबा कर वहीं जमीन पर लेट गई. फिर कब आंख लग गई, जान न सकी.

आधी रात बाद अचानक शोर सुन कर गीता की नींद खुली. देखा तो उस के आसपास वही लड़कियां खड़ी नजर आईं. बाहर धंधा कराने वाले कई मर्द और औरत भी खड़े थे जो पुलिस के डंडों से कुटपिट रहे थे. साथ ही वह क्रूर, बेदर्द औरत शकीला भी थी जो मासूम लड़कियों से धंधा कराती थी और न मारने पर शिकारी कुत्ते जैसे अपने खूंखार गुंडे छोड़ देती थी.

‘‘गीता देख, हम सब छूट आईं  उस गंदगी से,’’ उन लड़कियों में से  एक बोली.‘‘सब आ गईं या कुछ रह गईं?’’ कहती गीता उठ कर बैठ गई.‘‘सब आ गईं गीता, यह तेरी हिम्मत और चतुराई के कारण हो पाया. अगर पुलिस थोड़ी भी देर करती तो वे लोग हमें जबरन इधरउधर धकेल देते. वे तो सोच ही नहीं पा रहे थे कि पुलिस इतनी जल्दी आ धमकेगी. तेरा यह एहसान हम जिंदगीभर नहीं भूलेंगे.’’

‘‘मैं तो 5 वर्ष में 5 बार इन के चंगुल से भागने की कोशिश कर चुकी और पकड़े जाने पर हाथपांव तुड़वा चुकी,’’ पुष्पा जैसे खुद पर हुए जुल्मों को याद कर सिहर उठी.‘‘कोशिश तो हम ने भी की, परंतु कामयाब नहीं हो पाए, पर हम  जाएंगे कहां? और अब होगा क्या?’’ शांति बोली. ‘‘नारी संरक्षण गृह भेजेगी पुलिस. सरकार ऐसी औरतों को ऐसी ही जगह भेजती है,’’ गोली बोली.

आधी रात बीत चुकी थी, लिहाजा, सब को एक ही कमरे में बैठा दिया गया.

 

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