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लेखिका- सुधा थपलियाल

 

गहरी सोच में डूबी नेहा ने कौफी के मग को एकटक घूरते हुआ कहा, “एक बार और कोशिश करती हूं.”

 

“3 वर्षों से यही तो कर रही हो,” संजीदगी से शिवम बोला.

 

“यह, आखिरी बार,” नेहा के स्वर में एक दृढ़ता थी.

 

वीकैंड पर नेहा निकल पड़ी अपने घर कानपुर के पास एक कसबे के लिए. एयरपोर्ट छोड़ने शिवम भी गया. पूरे रास्ते दोनों कार में चुप बैठे अपने दिलोदिमाग में चल रही उथलपुथल से बातें करते रहे. हैदराबाद एयरपोर्ट पर परेशान सी नेहा को आश्वस्त करने के लिए शिवम ने हलके से उस का हाथ दबाया. नेहा ने उस की ओर देखा और बिना कुछ बोले ट्रौली को धकेलते हुए एयरपोर्ट के अंदर चली गई. बोर्डिंग पास ले नेहा सिक्योरिटी की औपचारिकता को पूरा कर, सिक्योरिटी लौउंज में आ बोर्डिंग का इंतजार करने लगी.

 

दिलोदिमाग में अनवरत एक द्वंद्व चल रहा था. अनेक भाव आजा रहे थे, जो मन को मथ रहे थे. ‘नहीं, अब और नही.’ एक पल यह विचार दृढ़ता से दस्तक दे रहा था, तो अगले ही पल आशंका अपने पांव जमाने लग जाती. दिमाग के हाथों कमजोर हो दिल प्रश्न करने लग जाता, ‘क्या यह ठीक होगा?’ कशमकश इतनी बढ़ गई कि सीट पर बैठना मुश्किल हो गया. बेचैनी से इधरउधर चक्कर काटने लगी, तभी बोर्डिंग की सूचना घोषित हुई और सभी गेट की ओर चले दिए.

 

कानपुर एयरपोर्ट से टैक्सी से घर जाते हुए भी विचारों ने साथ न छोड़ा. बिना किसी सूचना के घर जा रही थी. जैसे ही टैक्सी मुख्य सड़क से घर की लेन की ओर मुड़ी, नेहा का दिल जोरों से धड़कने लगा. टैक्सी से बाहर निकली ही थी कि शिवम के पापा बगल के कपूर अंकल के गेट से बाहर निकलते दिखाई दिए. वह बच के निकलना चाहती थी कि अनायास ही अंकल की नजर नेहा पर पड़ गई.

 

“अरे बेटा, कैसे आई?” 10 दिनों पहले ही नेहा, दीप्ति की शादी में शामिल हो वापस हैदराबाद गई थी, इसलिए थोड़ा अचंभित होते हुए शिवम के पापा बोले.

 

“बस अंकल, ऐसे ही,” मस्तिष्क में उमड़ रहे झंझावातों को थामते हुए नेहा उन के पैरों में झुक गई.

 

आशीर्वादों की झड़ी लग गई.

 

नेहा से 8 साल छोटी और सब की लाड़ली बहन छुटकी ने बालकनी से अपनी दीदी को गेट से अंदर आते देखा, तो सुखद आश्चर्य से भर गई. तेजी से सीढ़ियों से उतर नेहा से लिपट गई.

 

नेहा ने प्यार से छुटकी को अपनी आगोश में ले लिया. मम्मीपापा नेहा को अपने सामने देख खुश कम, हैरान ज्यादा हुए. पापा को प्रणाम कर नेहा जोर से मम्मी के गले लग गई. बीती कुछ घटनाओं को स्मरण कर रमा, नेहा का यह रूप देख क्षणभर के लिए विस्मित हो गई. दादी के पैर छुए, तो उन्होंने स्नेह से नेहा को गले लगा लिया. लंच के बाद शाम की चाय का समय भी हो गया. शिवम के सामने जो साहस वह दिखा रही थी, वह मम्मीपापा के सामने पस्त होने लगा. रात में चारों खाना खा ही रहे थे कि हनीमून पर मालदीव गई नेहा से 2 साल छोटी बहन दीप्ति की वीडियोकौल आ गई मम्मी के फोन पर.

 

छुटकी ने मम्मी के हाथ से फोन ले खुशी से चिल्लाती हुई बोली, “हाय दी, कैसा है मालदीव? दिन में कौल करतीं तो हम भी वहां की सुंदरता को देखते. जीजू कहां हैं?”

 

“क्या कहना है साली साहिबा को, अपने जीजू से…?” वैभव को देख छुटकी उछल गई.

 

बातूनी छुटकी फोन छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी. तीनों की चुहलबाली, हंसीठहाके जब खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे, तो मम्मी ने टोक दिया.

 

“हमें भी दीप्ति और वैभव से बात करने दे.”

 

“अच्छा, दी-जीजू, बायबाय, मेरे लिए पर्ल, सी-शेल्स से बना नेकलेस जरूर लाना वहां से.”

 

“जो आज्ञा, साली जी.”

 

“प्रणाम मम्मी,” मम्मी को फोन पर देख दोनों के मुंह से निकला.

 

“चिरंजीव, सदा खुश रहो,” दोनों को साथ देख मम्मी का चेहरा खिल गया, “कैसे हो? कैसा लग रहा रहा वहां पर?”

 

“मम्मी, बहुत सुंदर जगह है. समुद्र का नीला पानी, सफेद रेतीले बीच और चारों ओर कुदरत का इतना खूबसूरत नजारा, मैं ने पहले कहीं नहीं देखा,” दीप्ति धाराप्रवाह बोले चले जा रही थी.

 

मंत्रमुग्ध रमा ने दोनों को ढेर सारा आशीर्वाद देने के बाद फोन पापा को पकड़ा दिया.

 

“प्रणाम पापा.”

 

“चिरंजीव.”

 

थोड़ी देर उन के हालचाल पूछ पापा ने कहा, “ये लो अपनी दीदी से बात करो. हैदराबाद से आज ही दिन में पहुंची है.”

 

नेहा को घर पर देख दीप्ति चौंक गई. खुशियों से ओतप्रोत, सहज गति से चल रहा वार्त्तालाप एकाएक भारी हो गया. बातचीत ने औपचारिकता का आवरण ओढ़ लिया. नेहा ने फोन पर जल्दी ही दोनों को बाय कह वातावरण को बोझिल होने से बचा लिया. फोन बंद कर नेहा की नजर एकाएक टेबल पर खाने को समटते मम्मी के चेहरे पर तनाव की उभरती रेखाओं पर पड़ी.

 

“मैं कुछ मदद करूं?”

 

“नहीं,” रूखा सा उत्तर दे मम्मी और कस कर टेबल साफ करने लगी.

 

“दीदी, आओ न, देखो, छोटी दीदी और जीजाजी ने मालदीव की ढेर सारी पिक्स भेजी हैं,” हाथ में मोबाइल पकड़े, खुशी से उछलती छुटकी नेहा को खींचने लगी अपने कमरे की ओर.

 

“एक्जाम सिर पर और इसे मस्ती सूझ रही है, जा जा कर पढ़ाई कर,” गुस्से से मम्मी चिल्लाई.

 

छुटकी सकपकाते हुए कमरे में चली गई.

 

“मेरा गुस्सा उस पर क्यों निकाल रही हो,” नेहा का धैर्य अब जवाब देने लगा.

 

रमा ने कुछ नहीं कहा. काम समेट कर टीवी के सामने सोफे पर बैठ गई. चेहरा अभी भी खिंचा हुआ था. विकलता रिमोट से टीवी के चैनल पर चैनल बदलने से स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी. नेहा कुछ देर तक मम्मी के चेहरे पर उभर आए उतारचढ़ाव को तोलती रही, फिर चुपचाप उन के पास आ कर बैठ गई.

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