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नेहा ने घर में हुए एकएक वाकए को शिवम के आगे रख दिया. शिवम आवाक सा उस को देखता रह गया. ऐसा नहीं कि कसबे में लोगों की रूढ़िवादी सोच और जातिगत भेदभाव से वह अनभिज्ञ था, लेकिन वह नेहा के परिवार को इन सब से बहुत ऊपर समझता था. अपने प्रति अंकल-आंटी के स्नेह पर पूरा विश्वास था. फिर सालों से दोनों परिवारों के बीच में गहरे संबंध थे. नेहा की बातों ने शिवम को अंदर तक आहत कर दिया.

‘क्या सोचा तुमने,’ नेहा पर एक गहरी दृष्टि डालते हुए शिवम ने कहा. नेहा ने बड़ीबड़ी आंख़ों से शिवम की ओर देखा. मन कसक गया. भावनाओं का तूफान दिल में उमड़ने लगा. 'क्या  प्यार किसी से किया जाता है? नहीं, प्यार किया नहीं जाता, यह अपनेआप हो जाता है. यह, बस, एक एहसास है जिस को महसूस कर सकते हैं, बयां नहीं. प्यार न जाति देखता है, न धर्म और न समाज. प्यार इन बातों से दूर है, बहुत दूर,' नेहा भावनाओं के सैलाब में बह कहती जा रही थी, 'मैं तुम से बहुत प्यार...' कि एकाएक मम्मी, पापा, दादी की कठोर छवि आंखों के आगे उभर आई और घबरा कर उस के मुंह से निकल गया, ‘परिवार के विरुद्ध जाने की मेरी हिम्मत नहीं है.’

शिवम हतप्रभ सा हो कर रह गया. अविश्वास से नेहा को एकटक देखता रहा. जबान निशब्द हो गई. दोनों के बीच एक सन्नाटा व्याप्त हो गया. यह उन की पसंदीदा जगह थी जहां वे घंटों बैठे दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे में खोए बातें करते रहते थे. आज उसी जगह में देर तक दोनों खामोशी से बैठे, बस, अपनी धड़कनों को सुनते रहे. लगता है जैसे दोनों के बीच कुछ कहने के लिए शेष न रह गया हो. आख्रिर जब और बैठना मुश्किल हो गया, तो शिवम अपनी कुरसी से उठते हुए बोला, ‘मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा.’

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