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"शिवम, कल मम्मी का फोन आया था," औफिस में लंचटाइम में नेहा ने शिवम से कहा. "अच्छा.""मैं, अब शादी को और नहीं टाल सकती." "तो प्रौब्लम क्या है? बता दो."

 

"तुम्हें लगता है कि कोई प्रौब्लम नहीं है?"हां, नहीं है. अंकल-आंटी, दोनों मुझे पसंद करते है," खाना खाते हुए सहजता से शिवम बोला. खाने का शौकीन शिवम अपनी प्लेट में झुका हुआ खाने का भरपूर मजा ले रहा था. वह बोलना चाहती थी कि 'तुम नहीं समझोगे.' लेकिन ऐसा बोल कर वह शिवम के खाने के आनंद को खत्म नहीं करना चाहती थी, इसलिये वह चुप हो गई.

 

"तुम उन्हें बता दो. अगर कुछ होगा, तो मैं संभाल लूंगा," नेहा की हथेलियों को अपने हाथों में ले शिवम ने गम्भीर स्वर में कहा. शिवम सब समझ रहा था. लेकिन शादी के बारे में सोचतेसोचते नेहा की आंखें नम हो गईं.    वह दिन नेहा कैसे भूल सकती है जब घर पहुंचते ही छुटकी ने चुगली कर दी कि एक परिवार नेहा को देखने दिल्ली से आ रहा है.

 

‘मम्मी, यह क्या?’ नेहा जरा गुस्से से बोली. ‘चिंता मत कर, तुझे कोई नौकरी नहीं छोड़नी पड़ेगी. लड़का हैदराबाद में ही जौब करता है. वे लोग प्रगतिवादी विचारों हैं," मम्मी लड़के वालों का गुणगान करती हुई बोली. ‘मैं ने कब कहा कि परिवार या लड़के में कोई कमी है, लेकिन...’ कसमसाती हुई नेहा बोली.

 

‘लेकिन?’ एक प्रश्वाचक दृष्टि रमा ने नेहा पर डाली. ‘मम्मी, मैं एक लड़के को पसंद करती हूं,’ नेहा के मुंह से निकल गया. ‘कौन?’ ‘शिवम.’

 

‘कौन शिवम?’ रमा ने चौंकते हुए पूछा. ‘मनोज अंकल का बेटा,’ धीमी आवाज में नेहा ने कहा. ‘क्या...तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया?’ बौखलाई सी रमा बोली. रमा को नेहा का बारबार विवाह के लिए मना करने का कारण समझ में आने लगा. रमा अपना आपा खोते हुए आक्रोशित स्वर में गुर्राई, ‘बेवकूफ़ लड़की, इसीलिए शादी न करने के बहाने बना रही थी. पता भी है वह कौन सी जाति का है?’

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