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उसी प्यारे से अपने से महल्ले में उस की पड़ोसी थी कांची. दोनों के पिता एक सरकारी स्कूल में टीचर थे, वे दोनों भी उसी स्कूल में, एक ही कक्षा में पढ़ती थीं. दांतकाटी रोटी थी, फर्क बस इतना था कि जहां कांची कक्षा में प्रथम आती थी, वहीं नेहा सब से आखिरी स्थान पर. यों समझो, बस जैसेतैसे नैया पार हो जाती थी. एक फर्क और था दोनों में, कांची साधारण नाकनक्श की सांवली सी लड़़की थी, वहीं नेहा एकदम गोरीचिट्टी, तीखे नैननक्श, लंबे बाल. ऐसा लगता था जैसे बड़ी फुरसत से बनाया है. पर इन सब के परे उन की दोस्ती थी, उसे कांची की पढ़ाई से या कांची को उस की सुंदरता से कोई फर्क नहीें पड़ता था. एकदूसरे को देखे बिना उन का गुजारा न था. पर हाय री किस्मत, उन की दोस्ती को जाने किस की नजर लग गई ?

नजर क्या लग गई? उम्र का 16वां, 17वां साल होता ही दुखदायी है, पता नहीं कितने रिश्तों की बलि चढ़ा देता है, यही तो उस के साथ हुआ. 16वां साल लगतेलगते उस का रूप ऐसा निखरा कि देखने वाला पलक झपकाना ही भूल जाए और बस यही रूप उस के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उसे लगने लगा कि दुनिया में उस0से सुंदर कोई है ही नहीं. पहले जब कांची उसे पढ़ाई करने की सलाह देती थी, तो उस के साथ बैठ कर वो थोड़ाबहुत पढ़ लेती थी और शायद उसी की बदौलत वह 10वीं तक जैसेतैसे पहुंच गई थी. पर अब उसे कांची का टोकना अच्छा न लगता था, जिस की भड़ास वो उस के रंगरूप का मजाक उड़ा कर निकालती.

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