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नेहा ने इतनी गरम चाय एक घूंट में ही पी ली और उठ खड़ी हुई.

‘‘अरे, बैठ ना..."

‘‘नहीं, मैं तो भूल गई, मुझे प्रेस वाले के यहां से साडियां भी उठानी हैं, मैं फिर आऊंगी.’’

कांची के कुछ कहने से पहले ही उस ने ऐसी दौड़ लगाई, जैसे पीछे भूत पड़े हों, घर में घुस कर ही सांस ली.

धम्म से कुरसी पर बैठ गई, जब सांस में सांस आई तो एहसास हुआ कि ये क्या किया?

हाय, मैं ने चोरी की, वो भी कांची के यहां से.

ये चोरी थोड़े ही है, 2-3 दिन की ही तो बात है. शादी से लौट कर, उस से मिलने जाऊंगी, और धीरे से रख दूंगी. मन के दूसरे कोने से आवाज आई.

पर्स से नेकलेस निकाल कर आईने के सामने गले पर लगाते ही नेहा की सारी ग्लानि बह गई.

वाह... क्या लग रही हूं मैं, सब देखते ही रह जाएंगे. उस ने जल्दी से नेकलेस को सूटकेस में रख लिया.

बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, पतिदेव के आने में अभी वक्त था. कई दिन बाद उस ने बालकनी का दरवाजा खोल कर ताजी हवा को महसूस किया. तभी बंगले से कांची निकलती हुई दिखी.

अरे, ये तो इधर  ही आ रही है. हाय, लगता है कि उसे पता चल गया कि मैं ने ही उस का नेकलेस चुराया है. अब क्या करूं? क्या सोचेगी वह मेरे बारे में? मेरी भी मति मारी गई थी, जो मैं ने ऐसा नीच काम किया, क्या करूं?

जल्दी से बालकनी का दरवाजा बंद कर, बच्चों को हिदायत दी कि कोई आ कर पूछे तो कहना कि मम्मी बाहर गई हैं, देर से आएंगी.

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