कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

नेहा सिर पकड़ कर धम्म से सोफे पर बैठ गई... उफ, ये क्या हो गया है मुझ को? सच ही तो कह रहे हैं, आज तीन दिन हो गए हैं... कहीं कांची न देख ले, इस डर से वह सब्जी लेने नीचे तक नहीं उतरी, सब्जी वाला रोज आवाज लगा कर चला जाता है. कांची तो हमेशा के लिए यहां रहने आई होगी, ऐसे कब तक घर में छिप कर बैठूंगी. उफ, इसे भी पूरी दुनिया में क्या यही जगह मिली थी रहने के लिए...? भगवान भी पता नहीं किस बात की सजा दे रहा है मुझे... पतिदेव का गुस्सा सुबह भी सातवें आसमान पर था. न कुछ खाया, न टिफिन ले गए, बिना बात करे ऐसे ही औफिस चले गए. दुखी और उदास मन से वह अपने को कोसती हुई सब्जी वाले का इंतजार करने लगी... पर, ये क्या, एक घंटा हो गया, लेकिन सब्जी वाला तो आया ही नहीं. लगता है, तीन दिन से सब्जी नहीं ली, तो आज उस ने आवाज ही नहीं लगाई. सारा जमाना मेरी जान का दुश्मन बन बैठा है. वह उठने ही वाली थी कि दूसरे सब्जी वाले की आवाज सुनाई पड़ी, अमूमन इस से वो कभी सब्जी नहीं खरीदती थी, क्योंकि वो सब्जियों को हाथ लगाने पर झल्लाता था. जैसे किसी ने उस की नईनवेली दुलहन को छू लिया हो. पर मरती क्या न करती, थैला लिए सीढ़ियां उतर कर सब्जी लेने आ पहुंची.

सब्जी वाले ने भी ताना मारने का मौका नहीं गंवाया. वह मुसकराते हुए बोला, "धन्यवाद. मेरे ढेले से जो आज आप सब्जी खरीदने आईं. जी, मन में तो आया कि उस का मुंह  नोंच ले, पर हाय री किस्मत, क्याक्या दिन देखने पड़ रहे हैं. मन ही मन कुढ़ते हुए थैला ले कर वह मुड़ी ही थी कि नीचे के फ्लैट वाली मिसेज काटजू लगभग दौड़ती सी आई (उन्हें किसी से भी बात करने के लिए अब ऐसा ही करना पड़ता है. तब से, जब से उन्हें ये बात समझ में आई कि उन्हें देखते ही लोग ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. इस में गलती लोगों की नहीं है, उन की फितरत ही ऐसी है, हंसहंस के लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कना उन का सब से प्यारा शगल था). पर उन्होंने नेहा को गायब होने का मौका नहीं दिया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...