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एक दिन वह भी आया जब उस का विवाह हो गया पर उस के उन के साथ संबंध सदा बने रहे. मायके आती तो अधिक से अधिक समय उन के साथ व्यतीत करने की कोशिश करती. विपुल उसे मौसी कह कर बुलाता था. उस को देख कर वह इतना खुश होता कि जब तक वह रहती, उस से ही चिपका रहता. अपने स्कूल की एकएक बात उसे बताता. वह उस के लिए ढेर सारे खिलौने ले कर आती तथा उसे भी दीदी की तरफ से उपहार मिलते. सब से ज्यादा खुशी तो इस बात की थी कि दीपेश ने भी उस के इस रिश्ते का मान रखा.

कभीकभी उसे लगता कि वे उस की बड़ी बहन जैसी ही नहीं, उस की सब से अच्छी मित्र है जिन के पास उस की हर समस्या का हल रहता है तथा वह भी अपने दिल की हर बात उन के साथ शेयर कर मन में चलते द्वंद या कशमकश से मुक्ति प्राप्त कर लेती है. एक दिन पता चला कि दीदी के मातापिता तथा भाई सरल अपने किसी रिश्तेदार की बेटी के विवाह में अपनी कार से जा रहे थे कि अचानक गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया तथा तीनों ही पंचतत्त्व में विलीन हो गए. समाचार सुन कर अनुजा उन के पास गई. उसे आया देख कर दीदी बिलख कर रोते हुए बोलीं, ‘अनु, सब समाप्त हो गया. इस भरी दुनिया में मैं अकेली रह गई.’ 

उस समय उस के साथ आई उस की मां ने उन को गले लगा कर दिलासा देते हुए कहा, बेटा तू अकेली कहां है, हम हैं न तेरे साथ. आज से तू भी मेरी बेटी है. हमारे रहते कभी स्वयं को अकेला मत समझना.’ और सच जब तक मांपापा रहे, कभी उन्हें अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया यहां तक कि भाई अभिनव और भाभी पूजा ने भी उन्हें बहन जैसा सम्मान दिया. वह जब भी अमेरिका से इंडिया आता तो जैसे उपहार उस के लिए लाता वैसे ही उन के लिए भी लाता. विपुल के विवाह में भी वह आने वाला है भात की रस्म निभाने.

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