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आखिरकार, सविता दीदी उस के सामने खुली किताब की तरह खुलती चली गयीन. जमाने के तीरों से लहूलुहान पर यत्न कर सहेज कर रखा दिल का दर्द उन की जबां पर आ ही गया. उस समय उन्होंने जो कहा उस का सारांश यह था कि उन का पति प्रतिष्ठित बिजनैसमैन परिवार का होने के बावजूद शराबी, जुआरी तथा दुराचारी था. उस के मातापिता को उस के ये अवगुण, अवगुण नहीं गुण नजर आते थे. उस ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की. पर वह नहीं माना. एक दिन शराब के नशे में उस ने उस के साथ संबंध बनाना चाहा तो मुंह से आती दुर्गंध ने उसे विरोध करने पर विवश कर दिया. फिर क्या था, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. 

बहुत रोई थी वह उस दिन. अपने मातापिता से जब इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा, ‘सब्र कर बेटी, धीरेधीरे उस के सारे ऐब तेरे प्यार से समाप्त होते जाएंगें.’

पर ऐसा नहीं हो पाया. उस ने हर तरह से उस के साथ निभाने की कोशिश की. न चाहते हुए भी वह प्रैग्नैंट हो गई, पर उस के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आ रहा था. गर्भावस्था के अंतिम दिनों में जब पत्नी को पति के सहारे की अत्यंत आवश्यकता होती है तब भी वह रातरातभर बाहर रहता था. यहां तक कि विपुल के जन्म के समय भी वह उस के पास नहीं था. किसी काम के कारण अगर वह न आ पाता तो कोई बात नहीं थी पर वह तो सुरासुंदरी में खोया रहता था. न जाने कैसी नफरत उस के दिल में समा गई थी कि उस ने उसी वक्त उसे छोड़ने का निर्णय ले लिया. आखिर कब तक वह जलालतभरी जिंदगी जीती. वह उसे छोड़ कर मायके चली आई.

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