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मौसीममा को सीवियर अटैक आया है, अर्धचेतनावस्था में भी वे आप को ही याद कर रही हैं. प्लीज मौसी, आप शीघ्र से शीघ्र आ जाइए.

फोन पर विपुल का चिंतित स्वर सुन कर अनुजा स्तब्ध रह गई. बस, इतना ही कह पाई, “बेटा, दीदी का खयाल रखना, उन्हें कुछ भी नहीं होना चाहिए, मैं अतिशीघ्र पहुंचती हूं.

समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे क्या से क्या हो गया.  कुछ दिनों से उसे लग रहा था कि सविता दीदी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है .  फोन पर बातें करते हुए वे थकीथकी लगती थीं. उस ने उन से कई बार कहा भी कि आप अपना चैकअप करवा लीजिए पर वे उस की बात को नजरअंदाज कर हमेशा यही कहतीं, ‘मुझे क्या होगा, अनु. बस, ऐसे ही थकान के कारण तबीयत ढीली हो गई है. वह भी यह सोच कर चुप हो जाती कि आज से पहले तो सर्दीजुकाम के अतिरिक्त उन को स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या रही नहीं है तो सबकुछ सामान्य ही होगा. पर अब यह अचानक सीवियर अटैक!

सविता दीदी उस की ही दीदी नहीं, अपने कर्म और स्वभाव के कारण जगत दीदी बन गई थीं. उस की तो वे बड़ी बहन जैसी थीं. सच तो यह है कि उस ने उन्हीं के सान्निध्य में जीवन का ककहरा सीखा था. दीदी ने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया, कभी हार नहीं मानी. अपनों के व्यवहार से घायल हुए दिल ने अपनी एक अलग मंजिल तलाश ली थी और उस पर अडिगता से चलीं ही नहींदूसरों को भी अपने प्रति सोच को बदलने के लिए मजबूर किया. वे न स्वयं रोईं और न ही किसी को रोने दिया. उन की जिंदादिली में उन के अतीत के अनेक क्रूर पल समाहित हो गए थे.

 उसे याद आया वह पल, जब विपुल का विवाह तय हुआ तो वे खुशी से फूली नहीं समाई थीं. सूचना देते हुए बोली थीं, ‘अनु, तुझे हफ्तेभर पहले आना होगा. तेरे बिना यह शुभकाम कैसे होगा? वैसे जोजो बातें मेरे दिमाग में आती जा रही हैं, मैं एक डायरी में नोट करती जा रही हूं जिस से ऐन मौके पर कोई कमी न रह जाए. कुछ शौपिंग भी कर ली है. अगर कोई कमी रह भी गई तो तू है नमेरी बहन, मेरी दोस्त. हम दोनों मिल कर सब मैनेज कर लेंगे. आखिर बहू के रूप में बेटी ले कर आ रही हूं.

जी दीदी, मैं आ जाऊंगी.’

अनु, कहीं मैं तुझ से ज्यादा तो एक्सपेक्ट नहीं करने लगी हूं. अगर तेरे पास समय नहीं है या कोई परेशानी हो तो प्लीज मना कर देना. मैं नहीं चाहती कि हम हमारे रिश्ते को बोझ समझ कर निभाएं,’ सविता दीदी ने अचानक कहा था. 

 दीदी, आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं, विपुल मेरा भतीजा है, उसे मैं ने अपनी गोद में खिलाया है,’ उन के शब्दों पर आश्चर्यचकित अनुजा ने स्वयं को संभालते स्नेहभरे स्वर में उन के दिल पर रखे बोझ को हलका करते हुए कहा था. पता नहीं क्यों घबराहट होने लगती है आजकल, बस विपुल का विवाह ठीक से निबट जाए तो चैन की सांस लूं,’ कहते हुए उन का स्वर अवरुद्ध हो गया था. 

आप चिंता मत कीजिए, दीदी, सब ठीक से हो जाएगा.’       

अगले महीने ही विपुल का विवाह है. कुछ दिनों बाद वह जाने वाली थी कि अचानक यह खबर आ गई.  फ्लाइट से जाने के बावजूद उसे और दीपेश को बेंगलुरु से इलाहबाद पहुंचने में 8 घंटे लग ही गए. दीपेश डाक्टर से बात करने चले गए थे. विजिटिंग औवर होने के कारण उसे आईसीयू में जाने की अनुमति मिल गई तथा वह दीदी के पास जा कर बैठ गई. दीदी को नर्सिंगहोम में नलियों में जकड़ा देख मन कराह उठा पर बाहर पड़ोसियों की उपस्थिति सुकून पहुंचा रही थी. सभी अड़ोसीपड़ोसी उन के लिए चिंतित थे.

 दीदी को दिल्ली के एस्कार्ट अस्पताल में शिफ्ट करना बेहतर रहेगा. वहां उन का ट्रीटमैंट उचित रूप से हो पाएगा,” दीदी की हालत देख कर अनुजा ने उन के पास बेहाल हालत में खड़े विपुल से कहा.

मौसी, चाहता तो मैं भी यही हूं पर डाक्टरों का कहना है कि इस अवस्था में मां को शिफ्ट करना खतरे से खाली नहीं है. थोड़ी स्टेबल हो जाएं, फिर सोचा जा सकता है,” आंखों में छलक आए आंसुओं को किसी तरह उस ने आंखों में सहेजते हुए कहा.

न, न बेटा. घबरा मत. दीदी को कुछ नहीं होगा. हम सब हैं न उन के साथ,Þ कहते हुए उस ने विपुल को दिलासा दी.  उस की आवाज सुन कर दीदी ने आंखें खोलीं, उसे देख कर उन की आंखों में संतोष झलक आया. 

तू आ गई, अनु. मेरा जाने का समय आ गया है. बस, तुझे ही देखने के लिए रुकी हुई थी,Þ लड़खड़ाते शब्दों में उन्होंने कहा.

नहीं दीदी, ऐसा नहीं कहते, अभी तो आप को विपुल का विवाह करना है. उस के बच्चों को अपने हाथों से पालनापोसना है.

अपने शब्दजाल से मुझे न बहला, अनु. एक बोझ और तुझ पर डालना चाहती हूं, मेरे बाद मेरे विपुल का खयाल रखना. उसे तेरे भरोसे ही छोड़ कर जा रही हूं. वह अभी मन से बच्चा ही है. शायद मेरा जाना वह सह न पाए. और हां, विवाह टालना मत, धूमधाम से नियत तिथि पर ही करना. सुजाता मेरे विपुल की पसंद है, मुझे उम्मीद है वह उस के साथ खुश रहेगा,  अटकतेअटकते उन्होंने बमुश्किल कहा. इस दौरान वे हांफने लगी थीं. आखिरकार दर्द सहन न कर पाने के कारण उन्होंने आंखें बंद कर लीं.

दीदीविपुल बोझ नहीं है मेरे लिए. संभालिए स्वयं को. आप को कुछ नहीं होगा. हम हैं न. इलाज में कोई कमी नहीं होने देंगे. आप को ही विपुल को घोड़ी पर चढ़ाना है, सुजाता को आशीर्वाद देना है,Þ कहते हुए अनुजा की आंखों से न चाहते हुए भी आंसू टपक पड़े.

उस की बात का उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया. चेहरे पर दर्द की लकीरों के साथ उस के हाथ पर उन की पकड़ और मजबूत हो गई. वह उन के मस्तक पर हाथ फेर कर उन्हें सांत्वना देने की कोशिश करने लगी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आत्मसम्मानी और आत्मविश्वासी दीदी बारबार बोझ शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रही हैं? क्या वे कमजोर पड़ने लगी हैं ? अपने प्रश्न का उस के पास कोई उत्तर नहीं था. उस का मन अतीत के उन गलियारों में भटकने लगा जब वह सविता दीदी से मिली थी…

लगभग 25 वर्षों पहले उस के पड़ोस में एक परिवार रहने आया था. उस परिवार में सिर्फ 2 ही प्राणी थे, 2 वर्षीय बेटा और वह स्वयं. घर के दरवाजे के सामने लगाई नेमप्लेट से पता चला कि उन का नाम सविता है. वे कालेज में पढ़ाती हैं. वे घर से बाहर बहुत कम निकलती थीं. बस, घर से कालेज तथा कालेज से घर ही उन की दिनचर्या थी. बेहद संजीदा और अंतर्मुखी व्यक्तित्व था उन का, जिस के कारण आसपास के लोग भी उन से मिलने से कतराते थे. बेटे की देखभाल के लिए उन्होंने आया को रखा हुआ था.

एक दिन अनुजा स्कूल से लौटी तो पाया कि आया बाहर गप मार रही है तथा अंदर बच्चा रो रहा है. उस ने उस को डांटा तो वह अनापशनाप बोलने लगी. इस बीच वह उस के रोकने के बावजूद अंदर चली गई. बच्चा नींद से जाग कर किसी को अपने पास न पा कर स्वयं पलंग से उतरने की कोशिश में नीचे गिर गया था तथा चोट लगने के कारण रोने लगा था. उसे देख कर उस ने उस की ओर आशाभरी निगाहों से देखते हुए हाथ बढ़ाया तो वह भी उसे गोद में लेने से स्वयं को न रोक पाई. उस की गोद में आ कर वह चुप हो गया था. बच्चे को जमीन पर गिरा देख कर नौकरानी को अपनी गलती का एहसास हुआ या नौकरी छूट जाने के डर के कारण वह उस से क्षमा मांगते हुए इस घटना का जिक्र मालकिन से न करने का आग्रह करने लगी. 

 

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