शलभ ने जैसे सांत्वना से रानो का मन भर दिया. उस के चेहरे पर चमक आ गई.
इलाहाबाद पहुंच कर शलभ ने किताबें भेज दीं. संजय उन्हें ले कर दे आया और समय पर फौर्म भरवा कर फीस भी जमा कर दी.
शलभ निश्चिंत था कि समय पर रानो परीक्षा देने उस के घर आ कर जरूर ठहरेगी. इस की चर्चा उस ने भाभी से भी कर दी थी, पर यह नहीं बता सका था कि यह सब उसी के प्रयास से हो रहा था. संजय के पत्र का जिक्र किया था कि उस ने ऐसा लिखा है.
समय गुजरता गया. परीक्षाएं शुरू हो कर समाप्त भी हो गईं. न संजय का कोई पत्र आया न रानो ही आई. गुस्से से शलभ का कलेजा जल उठा. सोचने लगा बहुत ही लापरवाह हैं ये लोग. हद कर दी. किसी के रुपए क्या फालतू हैं. क्या जाने रानो के बहनबहनोई ने न आने दिया हो.
शलभ ने कई पत्र संजय के पते से डाले पर सब गोल. उस का मन रातदिन गुस्से से उबलता रहा.
गरमी की छुट्टियां फिर आ गई थीं. भाभी बच्चों को ले कर पीहर जाने वाली थीं. संजय लेने आ रहा था. पत्र आया था उस के पिता का. शलभ सोच बैठा था कि हजरत को आड़े हाथों लूंगा. कम से कम पत्रों के उत्तर तो दे देता कि रानो इस कारण परीक्षा में बैठने नहीं आ रही है.
निश्चित समय पर संजय आ धमका. एकांत पाते ही शलभ ने सब से पहले अपनी भड़ास निकाली, ‘‘मैं तुम्हें एक जिम्मेदार लडक़ा समझता था परंतु तुम ने तो हद ही कर दी. एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया. आखिर, तुम रानो को ले कर आए क्यों नहीं.’’