संजय ने रानो के ऊपर आने की पदचाप सुन ली थी. भाभी की बहन के रिश्ते से वह उस की साली लगती थी, इस से वह दिनरात उसे चिढ़ाता रहता था. उसे देखते ही वह पलट कर बोला, ‘‘आओ रानो, मेरे पास बैठो. लाओ, मैं तुम्हारे आंसू पोंछ दूं. बेचारी के आंसू पोंछने वाला ही कोई नहीं है.’’
संजय ने झटके से उस का हाथ पकड़ कर नीचे खींच लिया. झटके के कारण रानो उस के ऊपर जा गिरी. तभी वह हड़बड़ा कर संभल कर बैठ गई. फिर रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मुझे नहीं अच्छा लगता संजय बाबू, ऐसा मजाक मुझ से मत किया करो. कोई देख ले, तो क्या कहे.’’
‘‘सही कहेगा कि जीजासाली में ठिठोली चल रही है.’’
वह उठने लगी तो संजय ने फिर हाथ पकड़ कर बैठा लिया.
‘‘अरे, बैठो न जरा,’’ कह कर वह शलभ की ओर इशारा करता हुआ बोला, ‘‘इन्हें पहचानती हो?’’
‘‘हां, बड़ी दीदी के देवर हैं,’’ कह कर उस ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की तो शलभ ने हाथ जोड़ दिए.
‘‘सुना है आप गजलें बहुत अच्छा गाती हैं,’’ शलभ बोला.
‘‘ये संजय बाबू से ही सुना होगा. मैं तो बस यों ही थोड़ाबहुत गा लेती हूं.’’
‘‘स्वर बहुत मीठा है आप का. कल जरूर सुनूंगा.’’
‘‘और ये रो भी बहुत अच्छा लेती हैं, देखा न तुम ने?’’ संजय ने फिर कुरेदा, ‘‘अब जिस की नियति में रोना ही लिखा है वह तो रोएगा ही, हंसेगा कहां से.’’
रानो की आंखें फिर भर आईं. शलभ का अंतर कसक उठा.
संजय फिर बोला, ‘‘अरे रानो, कुदरत ने थोड़ी गलती ही तो कर दी. अगर तुम मुझ से 3 साल बड़ी न होतीं तो यकीन मानो, तुम्हें हंसाने को जबरन ब्याह लाता या फिर भगा ले जाता.’’
‘‘हटो, संजय, क्या तुम्हें इतना भी लिहाज नहीं कि कोई बैठा है. चाहे जैसा मजाक कर बैठते हो.’’
‘‘अच्छा चलो, यह बताओ, तुम ने बीए क्यों नहीं किया, घर में ही तो बैठी रहती हो?’’
‘‘कहां से कर लूं. किताबों और फीस के लिए ढेरों रुपए चाहिए. और फिर पढ़ाई के लिए समय भी.’’
‘‘क्या तुम्हारे बहनोई इतना भी नहीं कर सकते?’’ संजय के स्वर में व्यंग्य था.
‘‘मेरे बहनोई ने तो बहुतकुछ कर दिया. पालपोस कर इंटर तक पढ़ा दिया. अब अपने बच्चों को भी तो देखेंगे. कोई लखपति तो हैं नहीं.’’
‘‘और एक लालची दूजिया के साथ फेरे भी दिलवा रहे थे. वह तो…’’
‘‘देखो संजय, फिर तुम…जिस के लिए मैं इधर आई वही…’’ आगे के शब्द वह नहीं कह पाई. साड़ी में मुंह छिपा कर रो पड़ी.
शलभ अब तक चुपचाप सुन रहा था. जब नहीं रहा गया तो बोल पड़ा, ‘‘क्या यार, तुम भी. जरा समय तो देखा करो. दुखी इंसान को और दुख देना. क्या मजाक है.’’
‘‘अरे शलभ, इस का बातबात पर रोना देख कर मजा आता है.’’
‘‘हांहां, किसी का घर जले और कोई कहे ताप लेने दो,’’ कहती हुई रानो उठ कर चल दी.
रानो को गए लगभग एक घंटा हो गया था. शलभ को नींद नहीं आ रही थी. तभी उसे पानी पीने की इच्छा हुई. वह नीचे गया.
आंगन के उस पार घड़े भरे रखे थे. कुछ औरतें फर्श पर सो रही थीं. रानो भभकती पैट्र्रोमैक्स उठा रही थी. शलभ को देखते ही शायद वह समझ गई कि वह पानी पीने आया है. पैट्रोमैक्स उठातेउठाते उस के हाथ रुक गए. मुड़ कर देखती हुई बोली, ‘‘क्या पानी पिएंगे आप?’’
तभी गैस का भभका उठा और हवा का झोंका रानो पर से गुजरता चला गया. नायलौन की साड़ी का लंबा पल्लू कब उड़ कर लौ से छू गया, रानो देख न पाईं, परंतु शलभ दमभर चीख कर दौड़ा, ‘‘आग…आग लग गई.’’
तभी सब की नजरें उधर ही उठ गईं. सारी औरतें हड़बड़ा करा चीखपुकार मचाती दौड़ीं.
‘‘साड़ी उतार फेंको, साड़ी उतार फेंको,’’ सब चीख पड़े पर जैसे वह सुन ही नही नहीं रही थी. शलभ ने विवेक से काम लिया. उस ने लपक कर साड़ी झटक कर दूर फेंक दी.
रानो हड़बड़ाई सी देखती खड़ी रह गई क्योंकि देखते ही देखते साड़ी राख के ढेर में बदल गई थी. सहसा जैसे उसे चेत आया. सब उसे घेरे पूछ रहे कि वह कहीं जली तो नहीं, परंतु रानो तो काठ सी सुन्न हो गई थी.
शलभ को खयाल आया कि वह हाथ से पल्लू की आग बुझा रही थी, सो, आगे बढ़ कर वह उस की हथेलियां उलटतापलटता बोला, ‘‘शुक्र है हथेलियां बच गईं.’’
तभी मानो रानो की चेतना लौटी, वह पेटीकोट-ब्लाऊज में खुद को देख कर शर्म से गड़ सी गई और हाथ छुड़ा कर कमरे में घुस गई.
‘‘भैया, आज तुम ने एक अनहोनी बचा ली. सच, अगर तुम न आते तो हम सब तो कुछ कर ही न पाते. दिमाग ही काम हीं कर रहा था कि क्या करें. रानो की जान बचा कर हम सब को भी भारी कलंक से बचा लिया, नहीं तो क्या होता. कोर्ट, कचहरी, पुलिस…सब रंग में भंग.’’