‘‘रानोजी, अब कैसी हैं आप. उंगलियां तो नहीं जलीं. रात में तो मैं ठीक से देख नहीं पाया था,” शलभ बोला.
अब तो रानो का चेहरा और भी दम उठा. झुके चेहरे से ही ‘नहीं’ कह कर चेहरा और भी नीचे झुका लिया.
‘‘और कहिए बन्नी रानी, आप के क्या हाल हैं.’’ संजय बोला.
‘‘बस जीजाजी, कृपा है हम सालियों पर आप की. रानो को आग की लपटों से बचा कर पुरस्कार देने योग्य काम कर दिया है आप लोगों ने,’’ उमा भी संजय की तरह विनोदी स्वभाव की थी, सो बोल पड़ी.
‘‘अरे भई, दिलाइए न पुरस्कार. क्या दे रही हैं?’’
‘‘जो आप चाहें,’’ कहती हुई उमा रानो की ओर देख कर मुसकरा दी. रानो की उठी हुई पलकें फिर झुक गईं. एकबारगी तो शलभ का कंठ कुछ कहतेकहते अटक गया. फिर हिम्मत कर के बोल ही पड़ा, ‘‘तो फिर मेरी फरमाइश पूरी करा दीजिए. समझ लूंगा पुरस्कार पा लिया. एक गजल सुनवा दीजिए.’’
रानो अभी भी छुईमुई सी चुपचाप बैठी थी.
‘‘अच्छा तो रानोजी, अपनी जान बचाने वाले को पुरस्कार दीजिए.’’
‘‘दीदी, जिसे गाना या गजल सुनने का शौक होता है वह खुद भी अच्छा गायक होता है. पहले शलभजी कुछ सुनाएंगे, फिर मैं.’’
‘‘ये रही न बात. तो शलभजी, पहले हमारी फरमाइश पूरी करिए,’’ उमा चहकी.
‘‘अब एक नहीं सुनी जाएगी छोटे जीजाजी. बस, शुरू हो जाइए चुपचाप. देख रहे हैं न सालेसालियों का जमघट.’’
शलभ को बहुत के आगे झुकना पड़ा. उस ने फिल्मी गीत गाया. सुनते ही चारों ओर तालियां बजीं.
अब बारी थी रानो की. उस ने गजल गाई तो जैसे समां बंध गया. फिर तो जैसे होड़ लग गई. बारीबारी से सब ने कुछ न कुछ सुनाया. शलभ और रानो ने तो जैसे रिकौर्ड ही तोड़ दिए. अब तो खाने के समय को छोड़ कर दिनभर महफिल जमी रहती. बरात आने तक बराबर दिनरात जैसे गीतों के खजाने खुल गए.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन