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‘‘अरे ऊषा, तेरे देवर ने आज इस घर की लाज रख ली, वरना आज मुंह दिखाने लायक न रहते,’’ भाभी के आगे मां से ले कर सारी औरतें शलभ की तारीफ कर रही थीं. ऊपर से मर्द भी नीचे उतर आए थे. सभी शलभ की सूझबूझ की तारीफ कर रहे थे.

शलभ पानी पी कर ऊपर आ गया. नीचे वही चर्चा हो रही थी. रानो कमरे में से बाहर ही नहीं निकली थी. इधर शलभ के सामने बारबार रानो का सांचे में ढला तन तथा घबरायाबौखलाया चेहरा नाच रहा था.

दूसरे दिन यही चर्चा बाहर तक फैल चुकी थी, परंतु रानो पता नहीं क्यों शलभ का शुक्रिया अदा करने तक नहीं आई.

शलभ अनमना सा बैठक में पड़ा था.

‘‘अरे, अभी सोए नहीं क्या.’’ संजय बैठक में घुसते ही बोला.

‘‘नहीं, अभी नहीं. हां, एक बात बताओ, रानो कैसी है. हाथ तो नहीं जले उस के.’’

‘‘बिलकुल ठीक है.’’

‘‘फिर वह आई क्यों नहीं? उस ने तो शुक्रिया भी अदा नहीं किया. मैं तो इसी फिक्र में था कि...’’

‘‘वह बहुत शर्मीली है. बिना साड़ी के तुम्हारे सामने खड़ी रही थी, सो शरम के मारे मरी जा रही है. तुम्हारी बातें करतेकरते कई बार रोमांचित हो गई. कह रही थी कि वे न बचाते तो साड़ी के साथ मैं भी खाक हो जाती. आना चाह कर भी आ नहीं पा रही है. पर हां, तुम खुद ही चल कर पूछ लो न. यहां बेकार में बोर हो रहे हो. छोटी दीदी सहित घर की सारी लड़कियां हैं वहां. उसी से पूछिएगा कि शुक्रिया अदा करने क्यों नहीं आई और दंड में गजलें भी सुन लेना,’’ कहता हुआ संजय उस की बांह पकड़ कर घसीटता हुआ ले गया.

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