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वृंदा मिश्रा

आखिर जिया अभी तक पापा की मौत के सदमे से बाहर न निकली थी, या यों वह प्रदर्शित कर रही थी पर प्रथम ने मु?ो सम?ाया कि यह वक्त मेरे कैरियर के लिए कितना कीमती है और मु?ो इसे गंवाना नहीं चाहिए. ‘‘पापा के रहतेरहते ही प्रथम हमारे घर का सदस्य बन गया था और अकसर ही उस का आनाजाना होता था. कई बार होता कि मैं औफिस के लिए निकलने वाली होती और प्रथम घर आ जाता और मेरे और जिया के साथ हंसीठिठोली कर उन का और मेरा मन बहलाता. उस की यह बात मु?ो बेहद पसंद आने लगी थी कि वह जिया और मेरी कितनी परवा करता है.

पर, मैं ही बेवकूफ थी.’’ और वह एक कड़वी हंसी हंसने लगी. ‘‘क्या हुआ आहु?’’ मैं ने आगे पूछा. ‘‘एक रात मैं जब औफिस पहुंची तो पता चला कि किन्हीं आपातकालीन परिस्थितियों की वजह से हमारी छुट्टी कर दी थी. मैं खुश हो कर घर लौट आई, क्योंकि पापा की बरसी पास आ रही थी और मैं ने बहुत दिनों से जिया के साथ समय नहीं बिताया था. ‘‘मैं ने सोचा कि घर जा कर उसे ढांढ़स बंधाऊंगी, आखिर यह वक्त हम दोनों के लिए मुश्किल था. जिया को क्या डिस्टर्ब करना, ?इसलिए मैं अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर चली गई. मैं अपने कमरे की तरफ जा रही थी कि तभी मैं ने देखा, जिया के कमरे की बत्ती चालू है और अंदर से अजीब आवाजें आ रही हैं. मु?ो लगा कि वह कहीं रो तो नहीं रही और इसीलिए मैं उसे सांत्वना देने उस के कमरे में चली गई. ‘‘पर पता है प्रियल,

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