प्रियल सालों बाद अपनी दोस्त आहुति से नैनीताल में मिली थी पर इस मिलन में जितनी खुशी के पल थे उतने दुख के ज्वारभाटा थे. क्याकुछ नहीं घटा था उस के साथ. अपनों के स्वार्थ ने उसे बुरी तरह छला था.