पिछले अंक में आप ने भूमि की जातियों के बारे में शिल्पशास्त्रम् में क्याक्या गलत था, पढ़ा. अब आगे…
भविष्य जानने की भोंड़ी विधि
यदि भविष्य के गर्भ में स्थित बातों को जानना आसान होता तो कोई भी अपने भविष्य को इस तरीके से जान सकता था. शिल्पशास्त्र ऐसी ऊलजलूल बातों से भरा पड़ा है.
शिल्पशास्त्र ने यदि पहले कृषि विज्ञान की बातों को हथिया कर उन्हें जातियों से जोड़ा है तो आगे वह ज्योतिषी की भूमिका निभाता हुआ दिखाई देता है. जब वह कहता है कि जिस जमीन पर घर बनाना हो, वहां एकसाथ लंबाचौड़ा गड्ढा खोद कर उस में एक दीपक जला दो. यदि दीये की शिखा काला धुआं दे तो वह जमीन भाग्यकारक व संपत्तिकारक होती है; यदि धुआं पूर्व को जाए तो वृद्धिकारक; यदि दक्षिणपूर्व में जाए तो सम?ा घर को आग लगेगी; यदि दक्षिण में जाए तो घर बनाने वाले की मृत्यु निश्चित है; यदि दक्षिणपश्चिम में जाए तो जीवन में दुख होगा; यदि पश्चिम में जाए तो धन का नाश होगा; यदि पश्चिमउत्तर में जाए तो बीमारी आएगी; उत्तर में जाए तो संपत्ति आएगी तथा यदि उत्तरपूर्व को जाए तो सुख की प्राप्ति होगी.
वास्तोर्मध्ये तु विवरं कृत्वा बाहुप्रमाणतर्;
दीपं तत्र स्थापयित्वा चिन्तयेत् च फलादिकम्.
श्रीदा दीपशिखा धूम्रा, वृद्धि :प्राचीगता भवेत्,
आग्नेये वेश्मदाह : स्याद् याम्ये मृत्युर्न संशय :
नैर्नहते च भवेद् दुर्ख वारुण्ये धननाशनम्.
वायण्ये व्याधिपीडा स्यादूत्तरस्यां च संपद :
ऐशान्ये सुखवृद्धि : स्यादित्याशाभागनिर्णय : (शिल्पशास्त्रम् 1/13-15)
यदि भविष्य के गर्भ में स्थित बातों को आग लगा कर जानना इतना आसान होता तो कोई भी अपने भविष्य को इस तरीके से जान सकता था परंतु क्या इस तरीके का और भविष्य की घटनाओं का कोई आपसी संबंध, विशेषतया कारण-कार्य संबंध, जुड़ता है? हवा का चलना भविष्य-निरपेक्ष है – उस का किसी के भविष्य से कुछ लेनादेना नहीं. जब गड्ढे में दीया जालाएंगे, तब जिस दिशा की हवा होगी, धुआं उस ओर चला जाएगा.
यदि शिल्पशास्त्र में बताए अनुसार फल मिलता, तब तो मिलों, ईंट के भट्ठों आदि के सब मालिक उस दिन मर जाते जिस दिन धुआं दक्षिण को जाता; जिस दिन उन का धुआं दक्षिणपूर्व में जाता उस दिन सब मिलों में आग लग जाती; जिस दिन पश्चिमउत्तर को जाता उस दिन वहां काम करने वाले सारे बीमार पड़ जाते पर ऐसा क्या कभी हुआ है?
स्पष्ट है, यह नुस्खा लालबु?ाक्कड़ मार्का है. शिल्पशास्त्र के ऐसी बेहूदा बातों का क्या संबंध हो सकता है? दुनियाभर में शिल्पशास्त्र पर पुस्तकें हैं और उन की संख्या हमारी पुस्तकों से कहीं ज्यादा है परंतु किसी में भी इस तरह की बातों के लिए कोई स्थान नहीं, जबकि हमारा शिल्पशास्त्र है ही इन्हीं का संग्रह.
लिफ्ट का कुतर्की वास्तुशास्त्र
धार्मिक इंसान ज्यादा डरपोक होता है. उस के हर काम कर्मकांड पर शुरू और खत्म होते हैं. बच्चे के पैदा होने से ले कर मरने तक हर काम में कर्मकांड ही कर्मकांड. जैसे शराबी शराब पीने के लिए सुख व दुख का बहाना ढूंढ़ता है, वैसे ही धार्मिक इंसान हर मौके पर पूजापाठ, हवन, कथाकीर्तन, जादूटोना और वास्तु करता/कराता है.
हाल देखिए कि मल्टीस्टोरीज बिल्डिंग में रहने जा रहे लोग फ्लैट लेते समय वास्तु तो देख ही रहे हैं, साथ में उस फ्लैट में लिफ्ट किस दिशा में हो, कैसी हो, उस से कैसी तरंगें निकलें, इस के लिए भी वास्तु देख रहे हैं. वे इस के लिए वैसे ही आर्किटैक्ट के बनाए स्ट्रक्चर को पसंद करते हैं जो वास्तुशास्त्र के अनुसार काम करे. तमाम बिल्डर्स और डीलर्स अपनी दुकान चलाने के लिए ज्योतिषियों के साथ मिल कर इन अंधविश्वासी लोगों का फायदा उठा रहे हैं. इन्होंने लिफ्ट तक का ऊटपटांग वास्तु हर जगह फैला रखा है.
जैसे, लिफ्ट के वास्तु में ये बताते हैं कि इसे उत्तरपश्चिम दिशा में लगाना चाहिए. लिफ्ट का दरवाजा पूर्व या दक्षिण दिशा में होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता तो घर में कुछ बुरा हो सकता है. अगर लिफ्ट के अंदर मिरर लगा रहे हैं तो उसे दक्षिण या पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए. उत्तर व पूर्व दिशा में बिलकुल न लगाएं. ये लिफ्ट में शीशे लगाने के फायदे बताते हैं, कहते हैं कि इस से लिफ्ट में एनर्जी बनी रहती है और डर कम लगता है. वहीं यह भी बताते हैं कि वास्तु के अनुसार लिफ्ट को साफसुथरा रखना चाहिए, क्योंकि इस से नैगेटिविटी नहीं आती.
इन के बताए लिफ्ट के वास्तु को कोई पढ़े तो इन की आधी बातों से कोई एतराज नहीं करेगा, जैसे लिफ्ट में शीशा लगाना चाहिए या लिफ्ट साफ रखनी चाहिए. मसलन, शीशा लगाने से लिफ्ट सुंदर और चमकदार दिखाई देती है, साथ में, बड़ी भी दिखाई देती है और साफ रखने से लिफ्ट में बीमारियों का खतरा कम रहता है. यह तो वैसी ही बात हुई कि भारत में अगर कोई भी व्यक्ति किसी बच्चे के जन्म पर जाए और कहे कि बड़े हो कर इस के बाल काले होंगे और बुढ़ापे में सफेद हो जाएंगे.
लिफ्ट का वास्तु बताने वाले क्या यह बता सकते हैं कि यह तकनीक आई कहां से? आज से तकरीबन 144 साल पहले, जरमनी में वार्नर वोन सीमेंस द्वारा लिफ्ट की तकनीक को खोजा, लेकिन इसे भी इंसानों द्वारा नियंत्रित किया जाता था. जिस औटोमेटिक इलैक्ट्रोनिक लिफ्ट को आज हम अपने आसपास देख रहे हैं, जिस के वास्तु पर घर के खरीदारों को बिल्डर्स चूना लगा रहे हैं, वह सैकंड वर्ल्डवार के अंत में न्यूयौर्क में चलाई गई.
हालांकि इन बातों को दरकिनार कर दें तो कोई इन से पूछे कि लिफ्ट का यह वास्तु आया कहां से? कौन सी वास्तुशास्त्र की किताब में इस का जिक्र है? लिफ्ट की दिशाओं के गलत होने से कौन सी केस स्टडी इन्होंने की है और किस तरह के नुकसान या फायदे लोगों को इस से हुए हैं? अगर ये कुछ बताएं तो बात बढ़े.
(अगले अंक में जारी…)