वेल्थ टैक्स लागू होने को ले कर मांग शुरू हो गई है. यह मांग 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान की गई थी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक चुनावी भाषण में कहा था कि उन की सरकार आने पर वे एक आर्थिक सर्वे कराएंगे. इस के बाद संपत्ति का बंटवारा होगा. इस के पीछे की योजना वेल्थ टैक्स की ही थी. कांग्रेस इस के जरिए गरीब जनता का वोट लेना चाहती थी. नरेंद्र मोदी ने इसे मंगलसूत्र से जोड़ कर चुनाव प्रचार का हिस्सा बना लिया था. चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, टैक्स बढ़ाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती हैं. ऐसे में ‘वेल्थ टैक्स’ चर्चा में है.
वेल्थ टैक्स के लाभ
‘वेल्थ टैक्स’ के जरिए ‘आर्थिक असमानता’ को दूर करने का काम किया जाना है. साधारण शब्दों में समझें तो यह ‘अमीरों पर अलग से लगने वाला टैक्स’ होता है. आर्थिक असमानता का मतलब होता है कि अमीरों और गरीबों के बीच धन का बहुत बड़ा अंतर होना. सरकार वेल्थ टैक्स लगा कर इस अंतर को कम करती है. जिस के पास जितनी अधिक संपत्ति होगी, उसे उतना अधिक टैक्स देना पड़ेगा. इस टैक्स की मांग से अमीरों में डर फैलने लगा है. जब अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है, तब जनता के बीच अविश्वास पैदा होने लगता है. ऐसे में गरीब वर्ग को खुश करने के लिए सरकारें ऐसा करती हैं.
कैसे होगी वेल्थ टैक्स की गणना
उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति की 1 करोड़ से अधिक आय होने पर वेल्थ टैक्स लगता है. साथ ही किसी व्यवसाय में 10 करोड़ से अधिक आय होने पर उस व्यवसाय के रिटर्न पर भी वेल्थ टैक्स लगता है. यदि कोई व्यक्ति भारत का निवासी है और भारत में रहते हुए विदेश में उस की कोई भी संपत्ति है, तो उस पर भी वेल्थ टैक्स लागू होगा. इस के अलावा, एनआरआई होने पर भी यदि भारत में संपत्ति है, तो उस संपत्ति पर वेल्थ टैक्स लगेगा.
वेल्थ टैक्स से कई लाभ भी होंगे. इस के अंतर्गत आर्थिक असमानता दूर होगी और भारत की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. भारत की जीडीपी का 2.73 प्रतिशत भाग यहीं से मिलेगा. जो लोग नियम अनुसार सुपर रिच कैटेगरी में आएंगे, उन पर 2 प्रतिशत अतिरिक्त वेल्थ टैक्स और 33 प्रतिशत इनहेरिटेंस टैक्स लगेगा. भारत में 2014-15 और 2022-23 के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी है. यदि यह वेल्थ टैक्स लागू होता है, तो इस के घेरे में केवल 0.04 प्रतिशत लोग ही आएंगे.
किस वेल्थ पर लगेगा टैक्स
‘वेल्थ टैक्स’ के दायरे में प्रौपर्टी, घर, दुकान, अन्य प्रकार की जमीनें, कार, बोट, एयरक्राफ्ट, सोना, चांदी और मौजूदा नकद रुपए, साथ ही साथ आर्ट पीस और एंटीक पीस पर भी टैक्स लगता है. वेल्थ टैक्स का भुगतान रेजिडेंशियल स्टेटस और संपत्ति की वैल्यू पर भी निर्भर करता है. सामान्य तौर पर हिंदू अविभाजित परिवार, व्यक्तियों और कंपनियों को अपनी संपत्ति के अनुसार इस का भुगतान करना होता है.
टैक्स का भुगतान करने वाले करदाताओं के बीच समानता लाने के उद्देश्य से सरकार पहले वेल्थ टैक्स वसूलती थी. साल 2015 में सरकार ने इस की जगह 2 प्रतिशत से बढ़ा कर सरचार्ज को 12 प्रतिशत कर दिया और 1957 से लागू वेल्थ टैक्स को हटा दिया, क्योंकि वेल्थ टैक्स में जितना सरकार को कलेक्शन होता था, उस से ज्यादा खर्च हो जाता था.
अब भी सरकार वेल्थ टैक्स वसूलती है, लेकिन सभी नागरिकों से नहीं और न ही सभी संपत्तियों पर. वेल्थ टैक्स की गणना रेजिडेंशियल स्टेटस और संपत्ति की वैल्यू पर की जाती है. किसी कंपनी, व्यक्ति या हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्ति 30 लाख रुपये से ज्यादा है, तो जितनी वैल्यू ज्यादा होगी, उस पर उन्हें एक प्रतिशत की दर से टैक्स का भुगतान करना होगा.
क्या कहता पुराना अनुभव
आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए आजादी के बाद से ही सरकार ने ऐसे प्रयास किए हैं. सब से पहले 507 राज्यों को भारत में मिलाया गया. इस के एवज में उन्हें प्रिवी पर्स देने का प्रावधान रखा गया. 1971 की इंदिरा गांधी सरकार को लगा कि प्रिवी पर्स जनता की जेब पर भारी पड़ रहा है और इस से सामाजिक असमानता बढ़ रही है. तब प्रिवी पर्स को खत्म कर दिया गया. इसी तरह जमींदारी उन्मूलन के तहत जमीनों की सीमा तय की गई. इस कानून के तहत जमींदारों की जमीन सरकार ने ले ली और उन के पास जमीन का कम हिस्सा रहने दिया.
1957 में 2 प्रतिशत वेल्थ टैक्स भी लगाया गया था, जिसे 2014 में 12 प्रतिशत सरचार्ज में बदल दिया गया. वेल्थ टैक्स से स्थिति यह हो गई थी कि कई बार इस टैक्स को चुकाने के लिए जमीन बेचनी पड़ रही थी. चुनाव के समय कांग्रेस ने इसे वापस लगाने की मांग की. अब डर इस बात का है कि कहीं सरकार 12 प्रतिशत सरचार्ज की जगह पर 2 प्रतिशत वेल्थ टैक्स अलग से न लगा दे. जीडीपी की ग्रोथ रेट से ज्यादा टैक्स नहीं होना चाहिए. यदि ऐसा है, तो यह समझा जाता है कि सरकार नागरिकों का खून चूस रही है.
सरकार टैक्स वसूले, खून न चूसे
टैक्स लगाने से बेहतर होता है कि सरकार कुछ ऐसे उपाय करे कि लोग संपत्ति जमा ही न कर सकें. जो पैसा मिले, उससे आर्थिक असमानता न बढ़े. जैसे आज वेतनभोगियों की तुलना करें, तो प्राइवेट सेक्टर और सरकारी सैक्टर के वेतन में अंतर है. प्राइवेट सैक्टर में भी एक कंपनी से दूसरी कंपनी के वेतन में अंतर है. जहां सरकारी सैक्टर में वेतन के साथ पेंशन, हेल्थ बीमा और अन्य सुरक्षा साधन हैं, वहीं प्राइवेट सैक्टर में कोई नियमकानून नहीं है.
तमाम बिजनेसमैन, जमींदार और राजा की तरह मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन वेतन और कर्मचारी सुरक्षा पर काम नहीं करते हैं. इस तरह की असमानता को दूर करने का काम सरकार को करना चाहिए. सरकार कानून बना कर प्राइवेट सैक्टर के वेतनभोगियों को सुरक्षा प्रदान करे, जिस से संपत्ति एकत्र न हो सके और वेल्थ टैक्स लगाने की जरूरत ही न पड़े. वेल्थ टैक्स से आर्थिक असमानता दूर होगी, यह जरूरी नहीं है. जमींदारी उन्मूलन और राजाओं की संपत्ति लेने के बाद भी आर्थिक असमानता दूर नहीं हुई है. वेल्थ टैक्स की जगह अन्य उपायों पर सरकार को विचार करना चाहिए.