स्कूल में टीचर द्वारा बच्चे की पिटाई, बात सिर्फ एक थप्पड़ की नहीं क्योंकि बेशक उस एक थप्पड़ या एक बेंत से बच्चे के शरीर को ज्यादा चोट न लगे लेकिन यह थप्पड़ उसे मानसिक रूप से गहरा सदमा पहुंचाता है.
बहुत सारे कानूनों और जागरूकता के प्रयासों के बाद भी स्कूलों में बच्चों की पिटाई की घटनाएं खत्म नहीं हो रही हैं. कई बार यह पिटाई खतरनाक भी साबित हो जाती है. बच्चों की पिटाई का सब से बड़ा कारण टीचर और बच्चे के बीच बढ़ती दूरी है. इस तरह की बढ़ती घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने प्रयास करने शुरू कर दिए हैं.
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सरकार ने स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड दिए जाने को पूरी तरह से मना कर दिया है. अब बच्चों को तमाचा मारना तो दूर, चपत लगाना भी टीचर को महंगा पड़ सकता है. यही नहीं, सरकार चाहती है कि शिक्षक बच्चों को तेज आवाज में फटकारने का काम भी न करें. यह सच है कि जागरूकता के कारण बच्चों की पिटाई के मामले कम हुए हैं पर अभी ये पूरी तरह से खत्म नहीं हुए हैं.
सरकारी और गैरसरकारी सभी तरह के स्कूलों में बच्चों को अनुशासित करने की प्रक्रिया में शारीरिक दंड को प्रभावी हथियार बना लिया गया है. बच्चे भय के कारण हिंसा का विरोध करने के बजाय शांत रहते हैं. कानून इस तरह के दंड को मूलभूत मानव अधिकारों का हनन मानता है. बच्चों और उन के मातापिता को अपने अधिकारों के प्रति सचेत होना चाहिए ताकि शिक्षक ऐसी हरकत न कर सकें. मारपीट करने की प्रवृत्ति को अगर देखा जाए तो पता चलता है कि इस के पीछे दूसरों को तकलीफ पहुंचाने की ही मानसिकता होती है.
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कभीकभी शिक्षक खुद की किसी कमी को छिपाने के लिए बच्चों से मारपीट करता है. शिक्षक को पता होता है कि छोटे बच्चे डर के मारे मारपीट की बात अपने घर में नहीं बताते और शिक्षक से भी किसी तरह का कोई प्रतिरोध नहीं करते हैं. यही वजह है कि बड़े बच्चों के साथ मारपीट की घटनाएं कम होती हैं.
शिक्षक अगर मारपीट करने के बजाय बच्चों को समझा कर उन्हें अनुशासन में रखे तो उन की समझ में बात जल्दी आ जाएगी. मारपीट की घटनाओं का बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है. कई बार तो वे स्कूल के नाम से ही डरने लगते हैं.
बच्चे डरें नहीं, घर पर बताएं
जिन बच्चों के साथ मारपीट की घटनाएं होती हैं उन को घबराना नहीं चाहिए. उन को पूरी बात अपने घर में बतानी चाहिए. आमतौर पर बच्चे इसलिए घर में कुछ नहीं बताते क्योंकि उन को लगता है कि पढ़ाई न करने से शिक्षक ने बच्चे को मारा होगा. मातापिता आमतौर पर अपने ही बच्चे को दोषी ठहराने लगते हैं.
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बच्चों को सब से बड़ा खतरा यह होता है कि परीक्षा में शिक्षक नाराज हो कर उस को फेल कर देगा. इसलिए बच्चा शिक्षक के खिलाफ कोई शिकायत नहीं करता है. बच्चे मारपीट की उन घटनाओं को ही बताते हैं जिन में शरीर पर मार नजर आने लगती है.
क्या करें मातापिता
अगर स्कूल में शिक्षक बच्चे के साथ मारपीट करे तो मातापिता को स्कूल प्रबंधन से शिकायत करने से पहले उस शिक्षक से बात करनी चाहिए. बच्चे के साथ क्यों मारपीट की गई है, अगर इस बारे में शिक्षक का जवाब ठीक नहीं है तो स्कूल के प्रबंधतंत्र को मामले की जानकारी दे कर यह देखना चाहिए कि प्रबंधतंत्र ने क्या किया?
अगर शिक्षक के खिलाफ प्रबंधतंत्र कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं करता तो मातापिता को पुलिस के पास जा कर कानून से मदद मांगने में हिचकिचाना नहीं चाहिए.
अभिभावक को बच्चों के साथ बात कर के उस के मनोभावों को भी मजबूत करने का काम करना चाहिए. बच्चों को यह बताना चाहिए कि मारपीट की घटना को छिपाएं नहीं. अगर बच्चे
को चोट ज्यादा लगी है तो उस को सब से पहले डाक्टर को दिखाएं और उस की रिपोर्ट अपने पास रखें जिस से कानून की मदद लेने में आसानी हो सके.
स्कूल में शिक्षकों द्वारा बच्चों के साथ मारपीट के बहुत से तरीके होते हैं. बहुत सारे ऐसे तरीके हैं जो बच्चों को पता ही नहीं होते हैं. बच्चों और उन के मातापिता को इन तौरतरीकों को भी देखना और समझना चाहिए. शारीरिक दंड में बच्चों को डांटना, फटकारना, स्कूल के अंदर दौड़ाना, घुटनों के बल बैठाना, छड़ी से पीटना, चिकोटी काटना, चांटा या तमाचा मारना, लड़कियों का यौनशोषण करना, उन के नाजुक अंगों को सहलाना या दबाना, क्लासरूम में अकेले बंद कर देना और बिजली का झटका देना आदि शामिल हैं.
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इस के अलावा हर तरह के वे काम जिन के कारण बच्चा अपने को अपमानित महसूस करे, शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को हीन महसूस करे, भी मारपीट की श्रेणी में आते हैं. अगर स्कूल के शिक्षक ने कोई ऐसा काम किया है जो बाद में बच्चे की मौत का कारण बने, तो उस को भी मारपीट की श्रेणी में रखा जाता है.
शिक्षक को मिल सकती है सजा
अगर स्कूल के टीचर ने बच्चे को मारा है तो उस को उसी तरह से सजा मिल सकती है जैसे दूसरे लोगों को मारपीट करने के बाद सजा मिलती है. शिक्षक के खिलाफ भारतीय दंड कानून की धारा 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना), 324 (मारने में घातक हथियार का प्रयोग करना),325 (अत्यधिक चोट पहुंचाना), 326 (जानबूझ कर घातक हथियार से चोट पहुंचाना), 304 (बिना इरादतन मारने पर यदि छात्र की मौत हो जाए), 302 (जानबूझ कर मारने पर छात्र मर जाए), 504 (जानबूझ कर अपमान करने) और 506 (धमकी दे कर कोई काम कराने) के तहत मुकदमे लिखे जा सकते हैं. मामला सही पाए जाने पर अदालत टीचर को इन धाराओं के हिसाब से सजा दे सकती है.