घर से निकलते वक्त अकसर मन में रहता है कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए. दुर्घटना से मतलब चोरीचकारी या छोटेमोटे हादसे से होता है. परंतु कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि उन के पैरोंतले की जमीन फट जाएगी या सिर के ऊपर की छत उन पर ढह जाएगी.

ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्होंने 2-2 सैकंड के अंतराल में जिंदगी और मौत को करीब से देखा है. ऐसे कितने ही लोग हैं जिन के स्कूल के लिए निकले बच्चे घर वापस आए ही नहीं. कुसूर किस का है? वाहन चलाने वालों को नहीं पता होता कि जिस पर वे गाड़ी चलाने वाले हैं वह ही धराशायी हो जाएगा और न ही उन सवारियों को, जो सैकंड्स में मौत के मुंह में चले जाते है.

सार्वजनिक जगहों पर गिरने वाले पुल व फ्लाईओवर बड़ी मात्रा में लोगों की मौत का कारण बनते हैं. इन में घायल होने वालों की संख्या भी कुछ कम नहीं होती. किसी का हाथ नहीं रहता तो किसी का पैर, किसी की रीढ़ की हड्डी टूट जाती है तो किसी को महीनों अस्पताल के बैड पर काटने पड़ते हैं.

पिछले 2 सालों में भारत में केवल पुलों और फ्लाईओवरों के गिरने से 93 मौतें हुई हैं जबकि घायलों की संख्या अनगिनत है. मुंबईगोवा हाईवे पुल, मजेरहाट पुल, कोलकाता विवेकानंद फ्लाईओवर, भुवनेश्वर फ्लाईओवर और अब मुंबई ओवरब्रिज कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं जिन के असमय गिरने से ढेरों मासूमों ने अपनी जान गंवाई. इन पुलों का इस तरह गिरना कोई आम बात नहीं है, यह प्रशासन, संबंधित विभाग, बीएमसी, भ्रष्टाचार और राजनीति का परिणाम है जिस में आम जनता बुरी तरह पिस रही है.

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