नसबंदी का औपरेशन अब केवल गरीब लोग कराते हैं इसलिए यह अभियान भी उन्हीं के इर्दगिर्द सिमट कर रह गया है. कंडोम और गर्भ निरोधक गोलियों के चमचमाते इश्तिहार, नई तकनीकें और सुविधाएं उन ग्राहकों के लिए रह गए हैं जिन की जेब में पैसा है, वे इन्हें खरीदते भी हैं. मुख्यधारा से कटे गरीबों के हिस्से में हमेशा ही सरकारी सेवाएं आती हैं जिन की घटिया क्वालिटी किसी सुबूत की मुहताज नहीं.

जागरूक वर्ग को परिवार नियोजन की महत्ता के साथसाथ यह भी मालूम है कि इसे कब और कैसे अपनाया जाना है. यह 25 फीसदी वर्ग सरकारी अभियानों से काफी दूर है. उलट इस के, 75 फीसदी लोग, जिन्हें परिवार सीमित रखने में पैसा आड़े आता है, पूरी तरह सरकार पर निर्भर हैं. यह वर्ग भी छोटे परिवार की अहमियत को जानतासमझता है लेकिन अस्थायी तरीके नहीं अपना पाता. एक तीसरा वर्ग उन लोगों का है जो न तो परिवार नियोजन की अहमियत समझते हैं और न ही जरूरत. लिहाजा, बच्चे पैदा करने में वे हिचकिचाते नहीं हैं. इस वर्ग, जो कुल आबादी का तकरीबन 40 फीसदी है, को थाम पाना दुष्कर काम है.

इस वर्ग को बेहतर जिंदगी मिले और परिवार नियोजन भी लोग अपनाते रहें, इस बाबत सरकार ने नसबंदी औपरेशनों का जो लक्ष्य तय कर रखा है उसे पूरा कर पाना आसान काम कहीं से नहीं लगता. देश की बहुसंख्यक आबादी दूरदराज के इलाकों में रहती है जहां पहुंच कर लोगों को जागरूक करना, समझा पाना बेहद खर्चीला काम है. इसलिए अघोषित तौर पर सरकार ने यह तय कर लिया है कि जैसे भी हो, नसबंदी के ज्यादा से ज्यादा औपरेशन किए जाएं. चिंताजनक बात परिवार नियोजन और नसबंदी में फर्क खत्म हो जाना है.

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