Hindu : कथा सुनने वालों में महिलाओं की संख्या सब से अधिक क्यों होती है? कथावाचक कथा से ज्यादा सासबहू के सीरियल वाली कहानियां अधिक सुनातें हैं. इस के बाद रोचक अंदाज में समाधान भी देते हैं. क्या यह महिलाओं के खिलाफ धर्म की कोई साजिश है?
उत्तर प्रदेश में इटावा के दांदरपुर गांव में कथावाचक मुक्त सिंह उर्फ मुकुट मणि यादव उन के साथी संत सिंह यादव और ढोलक वादक सूरदास से बदसलूकी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. इसे ले कर राजनीति और जातीय गोलबंदी शुरू हो गई है. मुक्त सिंह और संत सिंह दोनों पिछड़ी यादव जाति से है. सूरदास दलित जाति से है. ऐसे में इस घटना से उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय गोलबंदी करने वालों को ताकत मिल गई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में जातीय संघर्ष कराने की योजना बन रही है.
कथावाचकों के समर्थन में समाजवादी पार्टी और यादव महासभा के उतरने के बाद अब ब्राह्मण महासभा ने भी मोर्चा खोल दिया है. ब्राह्मण महासभा का कहना है कि यादव कथावाचकों के साथ को कुछ हुआ वह गलत था, लेकिन जाति छिपा कर कथावाचक के रूप में काम करना भी गलत था. इसे ले कर कथावाचकों के खिलाफ अलगअलग जिलों की कोर्ट में मुकदमें भी कायम हो रहे हैं.
पुलिस ने कथावाचकों से बदसलूकी करने वालों में से 21 साल के आशीष तिवारी, 19 साल के उत्तम अवस्थी, 24 साल के प्रथम दुबे उर्फ मनु दुबे और 30 साल के निक्की अवस्थी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.
यूपी ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष अरुण दुबे ने इटावा के एसएसपी बृजेश कुमार श्रीवास्तव से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि पहले सिर्फ एक पक्ष को सुना गया था, अब दूसरे पक्ष ने पुलिस के सामने अपनी बात रखी है. पुलिस ने गंभीरता से हमारी बात सुनी और जांच के बाद एक्शन लेने की बात कही. अरुण दुबे कहते है ‘ये मामला जातिगत नहीं था, सपा ने इसे जातिगत बना दिया. कथा तो कोई भी कह सकता है, हम भी सुनने जाते हैं. लेकिन कथा की आड़ में गलत हरकत करोगे तो कोई कैसे बर्दाश्त करेगा. व्यास पीठ पर बैठने वाला कथावाचक अगर यदि किसी महिला का हाथ पकड़ेगा, उसपर गलत दृष्टि डालेगा, तो स्वाभाविक है लोगों में आक्रोश होगा.’
इटावा के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष प्रदीप शाक्य ने कहा कि घटना बहुत ही निंदनीय और दुखद है. ब्राह्मण समाज के लोगों को ऐसा कृत्य करने वालों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. समाज में जहर न घोलें. अगर कथावाचक यादव भी थे तो मारपीट का हक किसने दिया. क्या यादव हिंदू नहीं हैं?
भागवत कथा में यादव कथावाचकों के साथ बदसलूकी हुई थी. इस कथा में रेनू तिवारी भी शामिल थी. रेनू तिवारी वहीं महिला हैं, वायरल वीडियो में जिन के पैर कथावाचक छूते हुए दिख रहे हैं और माफी मांगते भी नजर आ रहे हैं. रेनू तिवारी ने कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव पर आरोप लगाते हुए कहा कि भागवत कथा के दौरान मुकुट मणि ने उन के साथ छेड़खानी की थी. इस की शिकायत ले कर वह अपने पति के साथ एसपी से मिलने पहुंची. उन्होंने जांच और कार्रवाई की मांग की है.
बकेवर थाना क्षेत्र के दांदरपुर गांव निवासी रेनू तिवारी ने बताया ‘हमारे यहां भागवत कथा करने के लिए मुकुट मणि यादव, संत सिंह यादव और उन के साथी आए थे. पहले दिन की कथा के बाद जब मैं उन्हें भोजन करवा रही थी तब कथावाचक ने मेरी उंगली पकड़ कर मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश की. इस दौरान कथावाचक का सहयोगी भी साथ था. उसी वक्त मैं ने अपने पति से इस की शिकायत की थी. इस के बाद वहां मौजूद लड़कों को गुस्सा आ गया और उन्होंने कथावाचक और उन के साथियों को घेर लिया.
क्या कहतें है मुक्त सिंह?
कथावाचक मुक्त सिंह पर आरोप है कि वह मुकुट मणि अग्निहोत्री बन कर कथावाचन का काम कर रहे है? दूसरा आरोप यह है कि महिला के साथ दुर्व्यवहार किया? इस संबंध में मुकुट मणि से की गई बातचीत में वह कहते हैं ‘मैं भी इटावा का ही रहने वाला हूं. वर्तमान में मैं इटावा सिविल लाइंस मे रहता हूं. यहां से दांदरपुर गांव 15 किलोमीटर दूर है. मेरा पैत्रक गांव केवल 3 किलोमीटर ही दूर है. मैं करीब 16 साल से भगवत कथा कह रहा हूं. मैं ने गुरू शिष्य परंपरा में अपने गुरू अवधेशानंद जी महाराज से शिक्षा ली है.
यह घटना 21 जून की है. जब मैं कथा कहने के लिए दांदरपुर गांव पहुंचा पहले दिन कथा कहने के बाद खाना खाने को बुलाया और पूछा कि आप किस जाति के हो. जब हम ने उन को बताया कि हम तो यादव जाति से है.’
‘उन लोगों ने कहा कि हमारे गांव में सब से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग हैं. ऐसे में कोई यादव जाति के कथावाचकों से कथा क्यों सुनेगा? ‘तब हम ने कहा कि आपने पहले क्यों नहीं पूछा? गांव के लोगों ने हमारी एक नहीं सुनी. मारपीट और अपमानजनक व्यवहार किया. हमारे साथ 2 और लोग थे. एक सूरदास और एक संत सिंह यादव थे. उन लोगों ने हम से कहा कि अब वह किसी दूसरे कथावाचक से कथा सुनेंगे.’
‘इस का खर्च आप से लिया जाएगा. मुझ से 25 हजार नकद और सोने की चेन छीन ली. जब हम गांव से चलने लगे तो हम लोगों के साथ रातभर मारपीट की गई. चोटी काटी गई और पेशाब डाल कर पवित्र करने का काम किया. इस के बाद हमें लग रहा था कि हम आत्महत्या कर लें.
बात सोशल मीडिया के जरीए पूरे समाज में फैल गई तो हमारे पक्ष में भी लोग खड़े होने लगे. इस के बाद हम सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मिले उन्होंने हम तीनों लोगो को 51-51 हजार नकद की सहायता दी. और मदद का वादा भी किया.’
आप के ऊपर दूसरा आरोप है दोदो आधार कार्ड रखने की? ‘ इस की जांच की जा सकती है. मेरा एक ही आधार मुक्त सिंह के नाम से है. दूसरा कैसे बना यह मुझे नहीं पता. जब आधार बनाने वाली कंपनी से पूछा जाएगा तो सच पता चल जाएगा. यह हमारे खिलाफ साजिश है. मेरे उपर महिला ने जो आरोप लगाए वह भी पूरी तरह से गलत हैं. यह इस घटना के बाद पेशबंदी के रूप में सामने रखी जा रही है. इस की सही जांच हो तो पता चल जाएगा.’
जाति बन रही मुद्दा
कथावाचकों की जाति को ले कर छिड़ा विवाद राजनीतिक रंग लेने लगा है. समाजवादी पार्टी इस विवाद में कूद गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव से कथावाचकों को मिलवाने के बाद यह आंदोलन बनने लगा. जैसे कुछ माह पहले सपा के सांसद रामजीलाल सुमन के द्वारा संसद में दिए गए बयान में राणा सांगा को गद्दार कहने पर क्षत्रिय समाज आंदोलन करने लगा था. ठीक वही हालात अब ब्राह्मण और यादव समाज के बीच छिड गया है. सोशल मीडिया से ले कर जमीन तक पर यही हालात है.
राजनीतिक लाभ के चक्कर में इस विवाद के पीछे की मूल बात खत्म होती जा रही है. भागवत कथा सुनने वालों में सब से बड़ी संख्या महिलाओं की होती है. कथावाचक कथा से ज्यादा सासबहू के सीरियल वाली कहानियां अधिक सुनातें हैं. इस के बाद रोचक अंदाज में समाधान भी देते हैं. इन के ज्यादातर समाधानों में महिलाओं को कहा जाता है कि वह पति, सास की सेवा करें, यही उन का धर्म है.
अपने बारे में सोचना अधर्म हो जाता है. सब से ज्यादा चढ़ावा महिलाएं ही चढ़ाती हैं. पुरूष भले ही खाली हाथ कथा सुनने चले आए लेकिन महिलाएं हमेशा ही चढ़ावा ले कर आती हैं.
हर प्रवचन में पति और घर की सेवा का पाठ
समाज में केवल इतनी जागरूकता आई है कि अब अपनी जाति के देवताओं के मंदिर हो गए हैं. उन के अपने पुजारी और कथावाचक हो गए हैं. गांव में अगड़ी जातियों के लिए मंदिर हैं जहां दलित और पिछड़े पूजापाठ करने नहीं जाते, उन लोगों ने अपनी जाति के मंदिर बना लिए हैं. धर्म की आलोचना करने वाले भी इन नए पुजारियों, कथावाचकों और मंदिरों को मानने लगे हैं.
अब महिलाएं अपनी जाति के धार्मिक लोगों बात चुनने लगी हैं. जो कभी मनुवाद का विरोध करते थे उन के मनु अलग हो गए हैं.
कथावाचक किसी भी जाति का हो उस का मूल एक ही होता है कि महिलाएं धर्म को मानती रही. उन को बारबार यह बात समझाई जाती है कि उन के कर्तव्य घर, पति, साससुसर की सेवा करना होता है. जब तक धर्म की बेड़ियां नहीं टूटेगी तब तक कथा और चढ़ावे का यह धंधा चलता रहेगा. यह पैसा कमाने का एक बढ़िया जरिया हो गया है. यही वजह है कि अब केवल ब्राह्मण ही नहीं दूसरी जातियों के कथावाचक भी होने लगे हैं. समाज स्वीकार कर ले इसलिए यह जाति भी छिपाने लगे हैं.
समाजवादी विचारधारा में धर्म को आमतौर पर एक व्यक्तिगत मामला माना जाता है. समाजवादी विचारधारा का मानना है कि धर्म सामाजिक परिवर्तन के लिए एक उपकरण हो सकता है, लेकिन धर्म का उपयोग शोषण या सामाजिक विभाजन के लिए नहीं किया जाना चाहिए. सरकार या समाज को किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देना चाहिए.
कुछ समाजवादी मानते हैं कि धर्म सामाजिक परिवर्तन के लिए एक उपकरण हो सकता है. धार्मिक समाजवाद में धार्मिक सिद्धांतों का उपयोग सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है.
समाजवादी धर्म की आलोचना भी करते हैं. उन का मानना है कि धर्म का उपयोग अक्सर सामाजिक असमानता को बनाए रखने या सामाजिक संघर्षों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है.
कार्ल मार्क्स जो समाजवादी विचारधारा के एक प्रमुख व्यक्ति थे, उन का मानना था कि ‘धर्म शोषकों का अफीम’ है, जो लोगों को उन के दुखों से राहत देने का वादा कर के सामाजिक अन्याय को सहन करने के लिए प्रोत्साहित करता है. कई समाजवादी धर्मनिरपेक्षता के समर्थक हैं, जिस का अर्थ है कि धर्म को सार्वजनिक जीवन से अलग रखा जाना चाहिए.
आज के दौर में समाजवाद का सिद्वांत केवल वोट तक सीमित रह गया है. इस में धर्म के बढ़ते प्रभाव, महिलाओं के प्रति धर्म का नजरिया क्या है? इन बातों पर बहस नहीं हो रही. धर्म का विरोध करने वाले अब केवल दूसरे धर्म का विरोध करते है.
वह अपने धर्म, अपने मंदिर, अपने कथावाचकों के धर्मिक रूप का विरोध नहीं करते है. रामचरितमानस का विरोध करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए. उन की बेटी मंदिरों में पूजापाठ करती है. घर के बाहर वह पूजापाठ का विरोध करते हैं. अपने धर्म, पूजापाठ और कथा के नाम पर जातियता करना खतरनाक है. इस के खराब प्रभाव ही सामने पड़ेंगे.