सरकारी अस्पताल हों, रेलवे स्टेशन हों या फिर सरकारी दफ्तर, हर जगह चूहों ने सब को हलकान कर रखा है. कभी दफ्तरों की जरूरी फाइलें सफाचट कर जाते हैं तो कभी महंगे केबल वायर. हद तो तब हो जाती है जब अस्पतालों में इलाज कराने आए मरीज इन चूहों का शिकार बन जाते हैं. बात इंदौर की करें तो यहां के सरकारी अस्पताल महाराजा यशवंत राव में करीब 1 हजार मरीजों में 70 हजार चूहों ने बसेरा डाल रखा है. अस्पताल के लिए सिरदर्द बन चुके ये चूहे अस्पताल के कीमती उपकरणों के तार काट चुके हैं. बेहाल अस्पताल प्रशासन ने इन का सफाया करने के लिए करीब 55 लाख रुपए का बजट तय कर एक निजी कंपनी को हायर किया है. यह फर्म अलगअलग खाने में जहर मिला कर परोस रही है. इस प्रक्रिया के तहत करीब 2500 चूहे मारे जा चुके हैं.
मुश्किल यह है कि ये चूहे काफी चालाक हैं. एक बार किसी साथी चूहे की, जिस खाने को खा कर मौत हुई हो, उसे ये नहीं खाते. लिहाजा, हर बार इन के खाने की वैरायटी बदलनी पड़ती है. कोलकाता के ही सुपर स्पैशलिटी अस्पताल केपीजी, जो एसएसकेएम अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है, की बात करें तो यहां कुछ वर्ष पहले पेशाब करने में तकलीफ होने के कारण अरुण साधु खां को भरती कराया गया था, लेकिन चूहों ने रुई, पट्टी के साथसाथ मरीज का गुप्तांग भी काट खाया था जिस से उस की मौत हो गई थी. इसी अस्पताल के वीआईपी वार्ड में महिला मरीज शोभारानी के हाथ को चूहों ने कुतर खाया था. महिला की कलाई में ट्यूमर का औपरेशन हुआ था. औपरेशन का घाव अभी ताजा ही था, ट्यूमर को बायोप्सी के लिए भेजा गया था, शोभारानी बेहोशी में थी. इस बीच एक मोटा सा चूहा उन की कुहनी को नोच कर खा रहा था. तभी दर्द से शोभारानी की नींद खुल गई. लेकिन तब तक चूहे ने कुहनी को बुरी तरह जख्मी कर दिया था.
दरअसल, कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में चूहों का उत्पात हमेशा रहा है. स्वास्थ्य विभाग के दावे के अनुसार, इस मद में लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं. महानगर में 5 सरकारी अस्पताल हैं और यह रकम इन अस्पतालों में चूहों को मारने और उन को नियंत्रण में रखने के लिए खर्च की जाती है. हैरानी यह है कि इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बावजूद अस्पतालों में चूहों का राज कायम है, ये अकसर मरीजों के आसपास ही नजर आते हैं. इस तरह का मामला अकेले एसएसकेएम का नहीं है, कोलकाता मैडिकल कालेज एवं अस्पताल, नीलरतन सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल और आरजीकर अस्पताल में भी चूहों के उत्पात से मरीज परेशान हैं.
दरअसल, अस्पतालों के परिसरों में मैडिकल गंदगी का अंबार लगा रहता है. कचरों के ढेर के नीचे चूहों ने बड़ेबड़े गड्ढे बना रखे हैं. यही हाल देश के ज्यादातर मैडिकल कालेज एवं अस्पतालों का भी है. यहां भी कचरे और गंदगी के ढेर के नीचे चूहों की दुनिया बसती है. कुछ साल पहले उत्तर कोलकाता में चूहों ने इतना उत्पात मचाया कि एक मकान की नींव तक को खोखला कर दिया.
पश्चिम बंगाल के अलावा हाल में राजस्थान के जोधपुर में एक मरीज चूहे का शिकार हुआ तो अजमेर में चूहों ने एक शव को ही कुतर डाला था. जोधपुर में मथुरादास माथुर अस्पताल के आईसीयू में भरती 70 साल के लकवाग्रस्त मरीज को सांस लेने के लिए लगाई गई नली को कुतरने के साथसाथ चूहे ने मरीज के होंठ, कान और पलकों को भी कुतर दिया था. दरअसल, इन सभी सरकारी अस्पतालों में सफाई कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त नहीं है और जो कर्मचारी हैं वे ईमानदारी से अपनी ड्यूटी नहीं निभा रहे हैं. इस के लिए संबंधित अस्पताल के प्रशासन के साथ स्वास्थ्य विभाग भी कुसूरवार है. जब तक साफसफाई का इंतजाम ठीक से नहीं होगा, चूहे इसी तरह उत्पात मचाते रहेंगे.
ऐसा ही कुछ हाल अंबाला का है. चूहे यहां अस्पताल में नहीं बल्कि रेलवे स्टेशन में भी आतंक मचा रहे हैं. स्थिति यह है कि पार्सल सामान, फाइलें और रिटायरिंग रूम में मुसाफिर भी इन का निशाना बन रहे हैं. यहां चूहों ने जमीन को इस कदर खोखला कर दिया है कि पटरियों के नीचे से गिट्टी व मिट्टी खिसक चुकी है. रेलवे विशेषज्ञों की मानें तो मिट्टी व गिट्टी से पटरियों की पकड़ मजबूत बनाई जाती है. चूहों की इस करतूत के चलते कोई हादसा हो सकता है. मामला संजीदा है, इस के बावजूद अंबाला छावनी जैसे महत्त्वपूर्ण स्टेशन पर चूहों को पकड़ने का कोई टैंडर या ठेका जारी नहीं किया गया है.
राजधानी ऐक्सप्रैस व अन्य ट्रेनों में सफर करने वाले यात्री ही नहीं, हवाई जहाजों के यात्री भी आएदिन चूहों के उत्पात की शिकायत करते रहते हैं. चूहों से निबटने के लिए रेलवे, एअरलाइन कंपनियां लाखों रुपए खर्च भी करती हैं पर नतीजा कुछ भी नहीं निकलता. चूहों की धमाचौकड़ी यहीं नहीं थमती. पिछले कुछ सालों से इन की फौज ने नवी मुंबई के बेलापुर सैक्टर ए में करीब 160 करोड़ की लागत से बने महाराष्ट्र नगर पालिका यानी मनपा मुख्यालय पर भी कब्जा जमा रखा है. शानदार इमारत की कैंटीन, पार्किंग, लौबी और अधिकारियों के केबिन के भीतर तक ये घूमतेफिरते नजर आ जाते हैं. हालांकि इन पर नियंत्रण करने के लिए मनपा मुख्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों ने जहरीले खाने के सामान, रैट ट्रैप और रैट ग्लू लगाने जैसे तरीके आजमाए हैं लेकिन फिर भी इन का पूरी तरह सफाया नहीं हो सका.
केवल भारत में ही नहीं बल्कि चीन में भी चूहों ने उत्पात मचा रखा है. चीन के एक गांव में पिछले दिनों किसी ने हजारों चूहे छोड़ कर हंगामा मचा दिया था. बाद में स्वास्थ्य विभाग ने इन से निबटने के लिए काफी मात्रा में चूहे मारने की दवा भेजी. इन गंभीर मामलों का एक दिलचस्प या कहें हास्यास्पद पहलू यह भी है कि रांची में एक पुलिस थाने में पुलिस ने चूहों की बाकायदा रपट दर्ज की है. चूंकि सुखदेव नगर थाने के मालखाने के सामान को चूहों ने कुतर डाला था, लिहाजा, पुलिस ने तुरंत चूहों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. अब चूहों की गिरफ्तारी होगी या नहीं, यह तो इंस्पैक्टर फागुनी पासवान ही बता सकते हैं जिन्होंने शिकायत दर्ज कराई है.
बहरहाल, इन चूहों से नजात पाने के लिए पेस्ट कंट्रोल की कई निजी संस्थाओं समेत अन्य लोग लगे हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन चूहों से धार्मिक आस्था जोड़ कर इन को मारने की मुखालफत करते हैं, जैसा कि इंदौर के संत कर रहे हैं. गौरतलब है कि जब यशवंत राव अस्पताल में चूहों को मारने का अभियान चलाया जा रहा था तो वहां के संतों ने महामंडलेश्वर कंप्यूटर बाबा की अगुआई में एक बैठक कर यह निर्णय लिया कि वे इस हिंसा को बंद कराने के लिए कमिश्नर को ज्ञापन सौंपेंगे. दरअसल, ये तथाकथित संत चूहों को गौरी पुत्र गणेश का वाहन व पूजनीय बता कर इन्हें मारने के बजाय जंगल में छोड़ने की सिफारिश कर रहे हैं.
अब इन्हें कौन समझाए कि गणेश के ये वाहन आजकल सवारी के काम नहीं बल्कि जहांतहां गंदगी फैलाने और सरकारी व निजी संपत्ति को बरबाद करने का काम कर रहे हैं और अगर वे इन्हें धार्मिक जामा पहना कर जंगल में छोड़ने की बात कर रहे हैं तो वे खुद क्यों नहीं इस तरह की पहल करते. अभियान में टांग अड़ा कर वे सिर्फ प्रशासन का काम ही तो बिगाड़ेंगे.
सोचने वाली बात है कि इन्हें मारने के बावजूद इन की तादाद में कोई कमी नहीं आ रही. लेकिन अगर जरा सावधानी बरती जाए तो इस समस्या को कम जरूर किया जा सकता है. मसलन, ये उन जगहों पर ज्यादा पाए जाते हैं जहां राशनपानी का भंडारण होता है, जैसे बड़ी किराना दुकानें व माल भंडारण गृह. इन जगहों पर जरूरी एहतियात बरतने या दवा के इस्तेमाल से इन की बढ़ती संख्या पर काबू पाया जा सकता है. इस के अलावा अस्पतालों में खानपान के अड्डे बेहद करीब होने के चलते भी इन की संख्या बढ़ती है. उदाहरणस्वरूप, इंदौर के अस्पताल में दानकर्म के नाम पर काफी खानेपीने का सामान आता है जो यहांवहां बिखरने के चलते चूहों को आमंत्रण देता है. और यही चूहे, जो जरा सा खाना देख कर अस्पताल में घुस जाते हैं, जो मरीजों के हाथ, पांव व उंगलियां कुतरने से भी परहेज नहीं करते. इसलिए जब तक इन चूहों की समस्या को जड़ से खत्म करने का रास्ता न सूझे, जरा सी सावधानी व जागरूकता से ही काम चलाना हितकर होगा.
– साथ में राजेश कुमार