International : इजराइल के यहूदी जो सदियों तक यूरोपीय समाजों में मार खाते रहे, अब कुछ ज्यादा ही उग्र हो रहे हैं. उन्होंने 1947 में अपने पुनर्जन्म के बाद आसपास के मुसलिम देशों को हरा व बंजर रेगिस्तान में एक समृद्ध देश बना कर दुनिया के सामने आदर्श खड़ा किया था. लेकिन हमास के 7 अक्तूबर, 2023 के आक्रमण का जो जवाब उन्होंने गाजा को पूरी तरह नष्ट कर के दिया और अब ईरान पर हमला करने का जो कृत्य किया है, वह कुछ ज्यादा ही है, अनैतिक भी है और अमानवीय भी.
मजबूत देश, चाहे छोटे हों या बड़े, अगर अपने को ताकतवर सम झते हैं तो वे आसपास वालों से उसी तरह से भिड़ने को तैयार रहते हैं जैसे गांव या गली का गुंडा हर आतीजाती लड़की को छेड़ने का अपना अधिकार सम झने लगता है.
पश्चिम एशिया का कोई इसलामी देश दूध का धुला नहीं है. किसी देश में जनता को उतने हक नहीं मिले जितने इजराइल में मिले हुए हैं. इजराइल में तेल के कुएं नहीं हैं पर तेल के कुओं वाले किसी इसलामी देश में जनता उतनी सुविधाएं नहीं पा रही जितनी इजराइल की जनता पा रही है.
90 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश इजराइल आसपास के 30-40 करोड़ और कुल मिला कर 2 अरब की आबादी वाले मुसलिम देशों पर कई दशकों से भारी पड़ रहा है. पर इस का यह मतलब नहीं कि वह वही करने लगे जो मुसलिम देशों के शासक अपनी जनता के साथ कर रहे हैं.
गाजा में कच्चेपक्के मकानों में खैरातों पर जीते लोगों के घर हर रोज तोड़ कर इजराइल ने बेबात में दुनियाभर में बदनामी करा ली है. जो लोग पहले कट्टर इसलामी लोगों और उन के देशों को नफरत से देखते थे, अब वे गाजा ही नहीं बल्कि ईरान के प्रति भी नरम हो गए हैं. फिलिस्तीनी और ईरानी असल में किसी हमदर्दी के लायक नहीं हैं क्योंकि उन के धार्मिक और प्रशासकीय नेता समाज को, खासतौर पर औरतों को, बंधक बना कर रखते हैं. उन्हें न लोकतंत्र से कोई प्रेम है और न ही तर्क या सच से.
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