कोविड अभी भी लोगों को डरा रहा है, तालाबंदी का भूत फिर से भयभीत कर रहा है. ऐसे में होली का रंग फीका है और बाजार की रौनक गायब है. खरीदारी की कमी से दुकानदार माल लाने से कतरा रहे हैं. जो माल बाजार में है उस के दाम बढ़े हुए हैं जो जेब पर भारी पड़ रहे हैं.

पौराणिकजीवी होली मनाने की अलगअलग वजह बताते हैं. इन में सब से प्रचलित वजह प्रह्लाद और होलिका की कहानी है. ‘विष्णु पुराण’ की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद  के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मरेगा न पशु से. इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर सम झ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया. वह चाहता था कि उस का पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे परंतु प्रह्लाद इस बात के लिए तैयार नहीं था.

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हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए बहुत सी यातनाएं दीं लेकिन वह हर बार बच निकला. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी. सो, उस ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को ले कर आग में प्रवेश कर जाए जिस से प्रह्लाद जल कर मर जाए. परंतु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उस ने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया. होलिका अग्नि में जल गई परंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ. इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उस के अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं.

पौराणिकजीवी यह कहानी लोगों को सुनाते हैं. वे लोगों में धर्म के प्रति विश्वास जगाने का काम करते हैं. हाल के कुछ सालों में यह काम तेजी से किया जाने लगा है. इस कहानी से वे ये बताने का काम करते हैं कि पौराणिक व्यवस्था से ही हर समस्या का समाधान होता है जो भक्त है उस का बालबांका नहीं होगा.

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अयोध्या में राममंदिर का बनना शुरू हो चुका है. इस के बाद भी पौराणिकजीवी व्यवस्था महंगाई, बेरोजगारी और तालाबंदी के प्रभाव को खत्म नहीं कर पाई है. तमाम भक्त मंदी, बेरोजगारी और तालाबंदी का शिकार हो कर परेशान हैं. पौराणिक व्यवस्था इस का कोई निदान नहीं कर पा रही है, जिस की वजह से होली का रंग फीका हो गया है.

ग्राहकों की प्रतीक्षा में बाजार

लखनऊ शहर से 3 किलोमीटर दूर बसे बंगला बाजार का अपना अलग महत्त्व है. 30-35 वर्षों पहले यह लखनऊ का सब से प्रमुख ग्रामीण बाजार होता था. सप्ताह में 2 दिन यहां बाजार लगता था. दुकानें छप्परनुमा थीं जिन को गांव की बोली में बंगला कहा जाता था. बंगलों में बाजार लगने के कारण इस का नाम बंगला बाजार पड़ गया. सड़क के किनारों पर बाजार लगता था. सड़क के पीछे बड़ी सी  झील होती थी. लखनऊ शहर का विस्तार होने के बाद अब बंगला बाजार शहर के बीच बस गया.  झील के ऊपर लखनऊ की मशहूर आशियाना कालोनी बन गई.

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सड़क के किनारे बंगलों की जगह पर पक्के घर बन गए और घरों में दुकानें खुल गईं. इस के बाद भी अभी भी सप्ताह में लगने वाली दुकानें सड़क पर लगती हैं. होली और दीवाली या दूसरे त्योहारों पर यहां अच्छीखासी भीड़़ महीनों पहले से दिखने लगती थी.

20 साल से संजय गुप्ता यहां संजय जनरल स्टोर नाम से अपनी दुकान चलाते हैं. पहले उन के परिवार के लोग मिठाई की दुकान चलाते थे. संजय गुप्ता ने अपने लिए जनरल स्टोर खोला. होली पर महंगाई की मार किस तरह से पड़ रही है? जब यह सवाल हम ने संजय गुप्ता से पूछा तो वह बोला, ‘‘भैया, महंगाई की बात ही मत करो. महंगाई की आंधी चल रही है. हर चीज के दाम में आग लगी है. खरीदारों का टोटा है. हम यहीं पलेबढ़े और हम ने यहीं अपनी दुकान भी खोली.

‘‘पहली बार दुकान में होली का माल भरते डर लग रहा है. बंगला बाजार शहर और देहात की मिलीजुली आबादी और खरीदारी कल्चर वाला बाजार है. यहां अपार्टमैंट और बड़े बंगलों में रहने वाले लोग हैं तो छोटे गवंई तरह से रहने वाले लोग भी हैं. होली के एक माह पहले से होली की खरीदारी शुरू हो जाती थी. इस बार चारों तरफ सन्नाटा है. इस की वजह चटकदार महंगाई और लोगों की जेब खाली है.’’

पिछले साल और इस साल की होली में महंगाई की तुलना करते संजय गुप्ता बताते हैं, ‘‘होली में सब से अधिक प्रयोग होने वाला घी, तेल और रिफाइंड 25 फीसदी महंगा हो गया है. इस में भी रिफाइंड औयल सब से अधिक महंगा हुआ है. 30 से 40 रुपए लिटर दाम बढ़ गए हैं. आटा, सूजी और मैदा भी 10 से 15 फीसदी महंगा हो गया है. सब से अधिक होली में सूखे मेवे की मांग बढ़ती थी. मेवे की कीमत में 40 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. चिरौंजी पहले 1 हजार रुपए किलो थी, अब 1 हजार 3 सौ रुपए किलो हो गई है. मखाना जैसा कम प्रयोग होने वाला मेवा 500 रुपए किलो से बढ़ कर 700 रुपए किलो हो गया.’’

इसी बाजार के एक और दुकानदार नीरज गुप्ता बताते हैं, ‘‘हमारी शैलेंद्र जनरल स्टोर के नाम से दुकान है. यह पिताजी के जमाने से चलती आ रही है. हमारे आसपास 2 तरह के लोग हैं. एक वे हैं जो सरकारी नौकरी करते हैं, दूसरे वे हैं जो प्राइवेट जौब में हैं.

‘‘इस बार सब से खराब हालत प्राइवेट जौब वालों की है. बहुतों की नौकरी चली गई है. तमाम कर्मियों को पूरा वेतन नहीं मिल रहा. किसी की नौकरी अप्रैल में जाने वाली है. ऐसे में कौन मनाए होली, यह सवाल है. त्योहार की खरीदारी के नाम पर केवल खानापूर्ति ही बची है. बढ़ती महंगाई के कारण यहां खुला आरओसी नामक मौल बंद हो गया है. बाजार में लगने वाली त्योहार की भीड़ कहीं दिखाई नहीं दे रही है.’’

गृहिणियों पर महंगाई की मार

खाद्य पदार्थों पर जिस तरह से महंगाई बढ़ी है उस से होली में बनने वाले पकवानों का स्वाद फीका रहेगा. होली पर सब से अधिक गुझिया का महत्त्व होता है. गुझिया बनाने में प्रयोग की जाने वाली चीजों के दाम बढ़ गए हैं. पकवान बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली रसोई गैस की कीमत में पिछले कुछ माह में ही

270 रुपए प्रति सिलैंडर बढ़ गई है. इस की वजह से गृहिणियों पर महंगाई की मार सब से अधिक पड़ी है. जो लोग घरों में गुझिया नहीं बनाते, मिठाई की दुकानों से गुझिया खरीदते हैं, तो वहां भी कीमत बढ़ गई है.

गणेश मिष्ठान भंडार के महेश गुप्ता बताते हैं कि कम से कम कीमत वाली  गुझिया पिछली होली में 360 रुपए प्रति किलो बिकी थी. इस साल इस की कीमत 550 रुपए प्रति किलो होगी.

घरेलू प्रयोग में होने वाली खानेपीने की चीजों के दाम अलगअलग बाजार में भिन्नभिन्न हैं. मध्यवर्ग के लोगों के लिए तो होली की खुशियों पर महंगाई का ग्रहण लग गया है. नेहा सिंह कहती हैं, ‘‘महंगाई की वजह से आम लोगों के लिए दिक्कतें बढ़ गई हैं. होली पर गुझिया बनाना इस बार काफी महंगा होगा. लोग इस बार होली के त्योहार निभाने की खानापूर्ति ही करेंगे.’’

गरिमा रस्तोगी कहती हैं, ‘‘रसोई गैस से ले कर खानपान की सभी चीजों

पर महंगाई छाई है. गरीबों के लिए हालात मुश्किल हो रहे हैं. होली जैसे त्योहार

पर लोगों को  गुझिया बनाने के लिए काम आने वाली चीजों के ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं. होली का त्योहार सभी वर्गो के लोग मनाते हैं. होली पर  गुझिया बनाने की, बस, खानापूर्ति होगी. महंगाई की वजह से गुझिया कम मात्रा में लोग बनाएंगे. गुझिया सब से महत्त्वपूर्ण है. होली की पहचान ही  और पापड़ होते हैं.

‘‘गुझिया के साथ ही पापड़ के दाम भी बढ़ गए हैं. 40 रुपए पैकेट में बिकने वाले साबूदाना पापड़ के दाम अब 80 रुपए हो गए हैं. आलू के पापड़ में भी महंगाई का असर पड़ा है. इसी तरह से नमकीन और दालमोठ के दाम भी बढ़ गए हैं.’’

सूना हो गया कपड़ों का बाजार

महंगाई का असर कपड़ों के बाजार पर भी है. मौल से ले कर फुटपाथ पर लगने वाली दुकानों में सब से कम भीड़ कपड़ों की दुकानों पर दिख रही है.

राकेश कुमार कपड़ों के विक्रेता हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस वर्ष कपड़े के दाम में 10 फीसदी तक गिरावट के बाद भी डिमांड नहीं बढ़ रही है. हम लोगों ने नए कपड़ों का और्डर नहीं दिया है. हमें यह नहीं पता है कि होली के करीब आने पर कितना कपड़ा बिकेगा. ऐसे में पिछले साल का बचा हुआ माल ही इस साल खपाया जा रहा है.’’

टेलरिंग की दुकान करने वाले रईस अहमद कहते हैं, ‘‘होली के त्योहार में हमारी दुकान पर सिलाई का काम रातदिन चलता था. आज के समय हमारे पास होली की सिलाई का काम बस देखने भर को है.’’

सिलाई की दुकान ही नहीं, सिलेसिलाए कपड़ों की दुकानों पर भी खरीदारों का टोटा है. बाजार के जानकार रजनीश राज कहते हैं, ‘‘त्योहार के समय पर लोगों की जेबें खाली हैं. महंगाई बढ़ रही है. ऐसे में लोग पहले जरूरी खरीदारी कर रहे हैं. उन को लगता है कि सब से पहले जरूरी चीजों पर खर्च किया जाए. कपड़े पहन कर आनेजाने का काम कम ही होगा, क्योंकि होली के पहले ही कोविड फिर से दस्तक देने लगा है. जब कहीं आनाजाना नहीं है तो कपड़ों पर खरीदारी कर के पैसे बचाए जा सकते हैं. ऐसे में कपड़ों की खरीदारी कम हो रही है.’’

महंगी हो गई बलम पिचकारी

लखनऊ के यहियागंज में पिचकारी का थोक बाजार है. पिछले कुछ सालों से चाइनीज पिचकारियां धूम मचाती रही हैं. पिचकारी की खरीदारी करने वाले अनुराग महाजन कहते हैं, ‘‘पिछली होली के समय जिस पिचकारी की कीमत 60 रुपए दर्जन थी, इस बार यह कीमत बढ़ कर 100 से 120 रुपए तक हो गई है. 100 से 150 रुपए कीमत वाली बलम पिचकारी अब 250 से 300 रुपए तक पहुंच गई है.’’

पिचकारी बेचने वाले दुकानदार संतोष कुमार बताते हैं, ‘‘इस बार होली के लिए नया माल केवल

15 फीसदी ही मंगाया गया है. चाइनीज पिचकारी बाजार में काफी कम मात्रा में हैं. नई पिचकारी जो भारत के बाजारों में तैयार हुई है वह कीमत में अधिक है. अब लोग बच्चों को दर्जन के हिसाब से बिकने वाली सस्ती पिचकारी दे कर त्योहार मना लेंगे. पिचकारी की ही तरह से रंग और गुलाल भी महंगा हो गया है. कैमिकल गुलाल की जगह पर और्गेनिक गुलाल और रंग की डिमांड है जो महंगे होने के कारण कम ही खरीदे जा रहे हैं.’’   –

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