हरसिंगार अपने छोटे से दवाखाने में एक मरीज को देख रहा था कि अचानक सबइंस्पैक्टर चट्टान सिंह अपने कुछ साथियों के साथ वहां आ गया और उसे गाली देते हुए बोला, ‘‘डाक्टर के बच्चे, तुम डकैत नारायण को अपने घर में जगह देते हो और डाके की रकम में हिस्सा लेते हो?’’ हरसिंगार गालीगलौज सुन कर सन्न रह गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस के ऊपर इतना गंभीर आरोप लगाया जाएगा.
हरसिंगार खुद को संभालता हुआ बोला, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, मुझे अपने पेशे से छुट्टी नहीं मिलती, फिर चोरडकैतों से मेलजोल कैसे करूंगा? शायद आप को गलतफहमी हो गई है या किसी ने आप के कान भर दिए हैं.’’ चट्टान सिंह का पारा चढ़ गया. उस ने हरसिंगार को पीटना शुरू कर दिया. जो भी बीचबचाव करने पहुंचा, उसे भी 2-4 डंडे लगे.
मारपीट कर हरसिंगार को थाने में बंद कर दिया गया. उस पर मुकदमा चलाया गया. गवाही के कमी में फैसला उस के खिलाफ गया. उसे एक साल की कड़ी सजा मिली. गवाही पर टिका इंसाफ कितना बेकार, कमजोर और अंधा होता है. हरसिंगार करनपुर गांव का रहने वाला था, पढ़ाई पूरी करने के बाद वह लाइसैंसशुदा डाक्टर बन गया था और उस ने बिजरा बाजार में अपना काम शुरू कर दिया था.
हरसिंगार बहुत ही नेक इनसान था. वह हर किसी के सुखदुख में शामिल होने की कोशिश करता था. हरसिंगार के गांव का पंडित शिवकुमार एक टुटपुंजिया नेता और पुलिस का दलाल था. हरसिंगार उसे फूटी आंख नहीं सुहाता था. वह उसे नीचा दिखाने के लिए मौके की तलाश में लगा रहता. डकैत नारायण की हलचलों ने उस के मनसूबों को हवा दी और हरसिंगार उस की साजिश का शिकार बन गया.
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