पिछले 6 सालों में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल , गुणवत्ता युक्त तकनीकी शिक्षा के लिये मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेज , आवागमन
के लिये पुल भले ही न बन पाये हो , परन्तु धार्मिक आडंबरों की आड़ में मंदिर और मूर्तियों गढ़ने का काम बखूबी किया गया है.कोरोना काल में कोविड 19 की वैक्स्न बनाने की बजाय सरकार का लक्ष्य राम मंदिर बनाने पर ज्यादा रहा .यही बजह रही कि 5
अगस्त 2020 को जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोद्वा में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी तो जनता मोदी की वाह वाह करने लगी . दरअसल कोविड से खतरनाक धार्मिक कट्टरता का वायरस लोगों को अंधविश्वासी और धर्मांध बनाने में सफल रहा है .
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देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भव्य राम मंदिर निर्माण की ईंट रखकर सिद्ध कर दिया है कि भाजपा की सरकार नौजवानों को भले ही रोजगार न दे पाये ,परन्तु महापुरूषों की उंची उंची प्रतिमायें और बड़े बड़े मंदिर बनाकर ही
दम लेगी . देश के अनेक राज्यों में न तो बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने समुचित स्कूल ,कालेज है , और न ही लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये सुविधायुक्त अस्पताल है. गांव देहात में कालेज न होने से बारहवीं पास करके लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं. अस्पताल में किसी की मौत हो जाये तो आम आदमी को घर तक सायकिल पर या सिर पर शव ले जाना पड़ता हैं . सब के बावजूद शर्मनाक बात यह है कि सरकार महान लोगों की याद में स्मारक या स्टेचु बनाने के नाम पर अरबों रूपयों की भारी भरकम रकम खर्च कर रही हैं. वर्तमान हालात को देखते हुये लगता है कि न्याय के मंदिरों को ठेंगा बताने वाली सरकारों को तो जैसे जनता के हितों से कोई सरोकार ही नही है