‘‘पता नहीं मैं ने क्या खोया और क्या पाया. कभीकभी तो लगता है कि मैं एक नर्क से निकल कर दूसरे नर्क में आ गई हूं,’’ 32 वर्षीया प्रियंका भोपाल की एक पौश कालोनी के एक फ्लैट में अकेली रहती हैं. 8 महीने पहले उन्होंने अपने पति से तलाक का मुकदमा जीता है. प्रियंका एक सरकारी विभाग में द्वितीय श्रेणी की राजपत्रित अधिकारी हैं और उन के पति भी एक सरकारी विभाग में उच्चाधिकारी हैं.

दार्शनिकों के अंदाज में प्रियंका बताती हैं, ‘‘कभीकभी ऐसा लगता है कि मुकदमा तो जीत गई हूं लेकिन जिंदगी हार गई हूं. मेरी हालत तो ‘अर्थ’ फिल्म की शबाना आजमी जैसी हो गई है जिसे उस की घरेलू नौकरानी यह सलाह देती रहती है कि बीबीजी, मर्द की ज्यादतियां बरदाश्त कर लेना बेहतर है बजाय इसके कि उसे छोड़ कर पूरी दुनिया की असहनीय ज्यादतियों से लड़ा जाए.’’

प्रियंका का पति सौरभ से शादी के 4 वर्षों बाद विवाद हुआ था. वजह थी सौरभ का मां के इशारे पर नाचना और उन के कहे पर चलना. प्रियंका बहुत ज्यादा संकुचित या पिछड़े विचारों की नहीं हैं. उन्हें पति की मातृभक्ति पर कोई खास एतराज नहीं था लेकिन बात बतंगड़ में तब बदली जब मां के कहने पर सौरभ ने उन्हें उपेक्षित और प्रताडि़त करना शुरू कर दिया.

‘‘वहां (ससुराल में) मुझे घुटन महसूस होने लगी थी क्योंकि हर काम सास की मरजी से होता था. यहां तक कि अपने बैडरूम के परदों के रंगों व डिजाइनों का चुनाव भी मैं अपनी मरजी से नहीं कर सकती थी,’’ प्रियंका रुक कर बताती हैं, ‘‘यह मेरे अधिकारों और इच्छाओं पर नाजायज अतिक्रमण था. इस पर मैं ने एतराज जताते अपना विरोध दर्ज कराना शुरू किया तो एवज में मुझे पहले डांट और फिर कुछ दफा मार भी मिली.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...