दुनियाभर में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी देशभर में 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा कर दी. कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो लॉक डाउन के बाद से ही लोग अपने-अपने घरों रहकर सरकार के आदेश का पालन कर रहे हैं. यह महामारी इतनी भयावह है कि इसे रोकने के लिए जल्द ही कोई सख्त कदम उठाने की आवयश्कता थी. प्रधानमंत्री मोदी ने हर बार की तरह इस बार भी सख्त कदम उठाते हुए 3 हफ्ते के लिए लॉक डाउन की घोषणा तो कर दी. लेकिन इसे किस तरह से अमल में लाया जाएगा और लॉक डाउन के दौरान जनता को होनी वाली परेशानियों को दूर करने के लिए सरकार के क्या प्रयास होंगे.
ये सब बताना प्रधानमंत्री मोदी ने जरूरी नहीं समझा। ना ही प्रधानमंत्री मोदी ने ये सोचा कि 21 दिनों तक गरीब मजदूरों और किसानों के घर चूल्हा कैसे जलेगा. जिस तरह से मोदी सरकार ने नोटबन्दी और जीएसटी को आनन-फानन में लागू किया था और बाद में उनसे फैली अव्यवस्थाओं ने देश के आर्थिक ढांचे को तहस-नहस कर दिया था. लाखों लोगों का रोजगार छिन गया था. 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने असंगठित क्षेत्र के कामगारों और किसानों को होने वाली परेशानी के बारे में कोई बात नहीं की.
गुरुवार को वित्त मंत्री ने कोरोना से निपटने के लिए 1 लाख 70000 करोड़ के आर्थिक पैकज की घोषणा की. जिसमें भी कई खामियां हैं.सरकार फैसले लेने में जितनी तत्परता दिखाती है उतनी ही उसके सही ढंग से क्रियान्वयन करने और उनसे होने वाली अव्यवस्थाओं को दूर करने में नहीं दिखती है.
2012 की आर्थिक गणना के अनुसार भारत में 48.7 करोड़ मजदूर हैं. इस मामले में भारत का स्थान चीन के बाद विश्व में दूसरा है. इन मजदूरों में 94 फीसदी मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं.
देश का लगभग 57 फीसदी उत्पादन असंगठित क्षेत्र के मजदूर ही करते हैं. साथ ही देश की 52 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि, डेयरी और पशुपालन से जुड़ी हुई है. इन गरीबों को राहत देने के लिए वित्त मंत्री ने महिलाओं के जनधन खातों में प्रति माह 500 रुपये देने की घोषणा की है और यह 3 माह तक दिए जाएंगे। ऐसा लगता है या तो वित्त मंत्री को ज्ञान नहीं है या वह जनता को बेवकूफ समझती हैं.जनधन खातों की स्थिति से सभी भलीभांति अवगत हैं.
2014 में 15-15 लाख के लालच में करोड़ों गरीबों ने बैंकों में लाइन लगवाकर खाते खुलवाए थे.लेकिन जब कोई 15 लाख नहीं आये तो धीरे-धीरे खाते निष्क्रिय होने लगे। कुछ समय बाद जब बड़े कर्जदार उद्योगपतियों के कर्ज न चुकाने की वजह से बैंक घाटे में आ गए तो बैंकों ने अपना घाटा पूरा करने के लिए मिनिमम बैलेंस के नाम पर गरीबों के खातों से पैसे काटकर करोड़ों रुपये जुटा लिए.इस तरह बाकी जनधन खाते मिनिमम बैलेंस की भेंट चढ़ गए। जब गरीबों के अधिकतर जनधन खाते ही बंद हो गए तो सरकार आर्थिक मदद कहाँ भेजेगी.
किसानों को गेहूं की फसलें खेतों में खड़ी हुई हैं जो कटाई के लिए तैयार हैं, कुछ लोगों ने फसलों को काट भी लिया था. उन फसलों की बिक्री कैसे होगी यह भी एक सवाल है. वित्त मंत्री ने कहा है कि 8.69 करोड़ किसानों को 2000 रुपए दिए जाएंगे। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की वेबसाइट पर लाभार्थी किसानों की संख्या 14.5 करोड़ है. 2019 कि चुनाव के समय 14.49 करोड़ किसानों को इस योजना के तहत लाभ भी दिया गया था. तो अब वित्त मंत्री में इस आपदा के समय बाकी 6 करोड़ किसानों को बाहर क्यों कर दिया, उन्हें 2000 की आर्थिक मदद क्यों नहीं दी जा रही है. साथ ही वित्त मंत्री का कहना है कि मनरेगा में मजदूरी करने वाले मजदूरों को 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये मजदूरी दी जाएगी. अब सवाल यह है कि लॉक डाउन में कोई श्रम कार्य तो हो नहीं रहा है फिर इन्हें मजदूरी कैसे दी जाएगी.
2010 के एक आकड़े के अनुसार देश की 1.36 करोड़ की आबादी पब्लिक सेक्टर में संगठित तौर पर कार्य कर रही थी। वहीं 68 लाख व्यक्ति प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत थे.साथ ही लगभग 97.8 लाख व्यक्ति रोजगार रजिस्टर में पंजीकृत थे. इन सबको तो सरकार प्रत्यक्ष तौर पर राहत दे सकती है.लेकिन ऐसे दिहाड़ी मजदूर जिनका कहीं कोई पंजीकरण नहीं है उन्हें राहत कैसे पहुचाई जाएगी. सरकार ने घोषणा की है कि राशनकार्ड धारकों को 5 किलो गेहूं और चावल फ्री दिया जाएगा. पहले एपीएल कार्डधारकबएक व्यक्ति को 3 किलो गेहूं और 2 किलो चावल मिलता है अब उसे इसका दोगुना राशन दिया जाएगा लेकिन उसे पहले जितनी ही राशि देनी होगी.
साथ ही 1 किलो दाल भी देने की घोषणा की है। कोटे के राशन लेने वालों में अधिकतर रिक्शाचालक, दिहाड़ी मजदूर, घरों में काम करने वाली महिलाएं ही होती हैं. जब इनको घरों से बाहर निकलने पर लाठी पड़ रही है तो खरीदने कैसे जाएँगे और गरीबों की संख्या के हिसाब से अगर राशन की दुकान पर खरीदी कैसे होगी सोशल डिस्टेंस कैसे मेंटेन होगा. और जब सरकार राशन की दुकान पर आज तक सही समय और मात्रा में राशन नहीं पहुँचा पाई है, घर कैसे पहुँचाएगी.जो राशन वाला कभी पूरी मात्रा में राशन नहीं देता है, वह घर पहुँचाएगा यह सोचना भी बेमानी है.
लॉक डाउन में सरकार और प्रशासन द्वारा अमीरों और गरीबों में भेदभाव की बातें भी सामने आ रही हैं।
बहुत से दिहाड़ी मजदूर जो अपने शहरों को छोड़कर दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद, जयपुर जैसे महानगरों में मजदूरी कर रहे थे. उन्हें भी उनके कंपनी मालिकों और मकान मालिकों ने भागना शुरू कर दिया है.यातायात के सभी साधन बंद होने की वजह से वे लोग पैदल ही अपने गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं.रास्ते में पुलिस उन्हें रोककर मुर्गा बना रही है, कहीं उनसे कछुआ दौड़ करवाई जा रही है और कहीं-कहीं तो उनकी डंडो से पिटाई की जा रही है. क्या उनकी गलती यह है कि वे भी अपने घरों पर जाना चाहते हैं. ये मजदूर पिछले 5-6 दिनों से पैदल चल रहे हैं इनके बारे में सरकार ने अभी तक क्यों कुछ नहीं सोचा. अगर देश का मजदूर तबका भूख प्यास और घरों पर पहुँचने की फिक्र में मर जायेगा तो इन अमीरों के कारखानों में काम कौन करेगा। सरकार और उद्योगपति ये भूल रहे हैं कि अगर गरीब मजदूर ही नहीं बचेगा तो इनकी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों पर ताला पड़ जायेगा और देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो जाएगी.
जिस तरह से सरकार अमीरों को टैक्स भरने में छूट दे रही है उसी तरह सरकार को इन गरीबों को मोबाइल, मोटरसाइकिल, टैक्सी जैसी छोटी-छोटी चीज़ों की किश्तों को भरने में भी छूट देनी चाहिए. साथ ही उद्योगपतियों, फ़िल्म अभिनेताओं, खिलाड़ियों और नेताओं को भी आगे आकर गरीबों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए. सिर्फ 'घर में रहे सुरिक्षत रहें' कहने भर से काम नहीं चलेगा.साथ ही सरकार को जनता को ये आश्वासन देना चाहिए कि गरीब संक्रमित व्यक्ति का फ्री इलाज किया जाएगा.
अब सरकार ने कोरोना जांच के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल की रेट 4500 रुपये और एक दिन का आइसोलेशन का चार्ज 3100 निर्धारित किया है.अगर किसी गरीब में इस बीमारी के लक्षण नजर भी आये तो वो जांच और इलाज का खर्चा कहाँ से वहन करेगा. झुग्गी झोपड़ियों और छोटे-छोटे घरों में रहने वाले गरीब तबके के लोग अपने घरों में कहां से खुदको कोरोनटाइन करेंगे.
यह बीमारी तो जनवरी में ही भारत में पांव पसार चुकी थी जब केरल में कोरोना का पहला मामला सामने आया था. उसके बाद भी सरकार उदासीन रही और 19 मार्च तक मास्क और सेनेटाइजर का धड़ल्ले से निर्यात करती रही.जब सरकार को इस महामारी की भयावता के बारे में जानकारी थी तो वह पहले उदासीन क्यों रही. सरकार की नीतियां और कार्यशैली लोगों के मन मे कई तरह के सवाल पैदा कर रही हैं.जिनका जवाब देने से सरकार बच रही है. अब देखना यह होगा कि सरकार सही मायनों में गरीब मजदूर और किसानों को कैसे राहत पहुचती हैं. अगर देश में कोरोना महामारी के अलावा किसी व्यक्ति की भूख से मौत होती है तो यह सरकार और देश के लिए बड़े शर्म को बात होगी.

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