हिंदुओं के तथाकथित धर्मगुरु आशुतोष महाराज वैज्ञानिकों की नजर में मृत हैं जबकि अंधभक्तों को समाधि में नजर आ रहे हैं. दरअसल, ड्रामा अरबों रुपए की संपत्ति का है. आशुतोष महाराज ने धर्म की जिस दुकान के जरिए करोड़ों जमा किए, आज उन्हीं करोड़ों पर संग्राम छिड़ा है. दुनियाभर को त्याग का पाठ पढ़ाने वाले इन धर्मगुरुओं का बुरा हश्र संपत्ति विवाद को ले कर ही क्यों होता है, पड़ताल कर रहे हैं जगदीश.
धार्मिक ड्रामों के लिए भी पहचाने जाने वाले इस देश में इन दिनों भक्तों को एक और ड्रामा मुग्ध कर रहा है. इस बार ड्रामे की कड़ी में एक मृत बाबा को अंधविश्वास ने जिंदा कर रखा है. डाक्टरों द्वारा मृत घोषित आशुतोष महाराज को ‘समाधि’ में बताने वाला एपिसोड आस्थावानों को चमत्कृत कर रहा है. हजारों शिष्य समाधि पर भरोसा कर रहे हैं. भक्तों का विश्वास तो देखिए, कहते हैं कि महाराज पहले भी कईकई दिनों तक समाधि में चले जाते थे. इस बार भी लौट आएंगे.
पिछले दिनों उन्नाव के साधु को सपने में दिखे ‘सोने के खजाने’ के ड्रामे का अभी पटाक्षेप भी नहीं हो पाया था, सपने में दिखे ‘खजाने’ को सरकार, अन्य दावेदार और भक्त बटोर ही नहीं पाए थे कि अब समाधि के चमत्कार के साथ संत की संपत्ति के बंटाईदार सामने आ गए हैं.
आश्रम प्रबंधकों के अलावा आशुतोष महाराज के वारिस भी दौलत में हिस्से की मांग कर रहे हैं. बिहार के मधुबनी जिले के दिलीप कुमार ने खुद को आशुतोष महाराज का बेटा होने का दावा किया और अपने पिता की 1 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति में से हिस्से की मांग करते हुए अनशन पर बैठ गया.
पंजाब में जालंधर के नूरमहल में हिंदुओं के धार्मिक गुरु आशुतोष महाराज डाक्टरों द्वारा मृत घोषित किए जा चुके हैं पर आश्रम प्रबंधक और शिष्य हैं कि मानने को तैयार नहीं. शिष्यों का कहना है कि महाराज समाधि में हैं. आश्रम के लोगों का भी दावा है कि आशुतोष महाराज योग की अंतिम अवस्था में हैं पर आश्रम के पास जमा अथाह संपत्ति को ले कर उंगलियां उठ रही हैं.
3 फरवरी को आश्रम के एक पूर्व कर्मचारी पूर्णसिंह ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर आशुतोष महाराज को मुक्त कराने की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि डेरा प्रबंधक द्वारा आशुतोष महाराज को अवैध, गैरकानूनी और बलपूर्वक तरीके से बंधक बना कर रखा गया है क्योंकि आश्रम प्रबंधक संपत्ति और उत्तराधिकार का हस्तांतरण कराना चाहता है. लिहाजा, एक वारंट अधिकारी नियुक्त किया जाए और आश्रम में छापा मार कर महाराज को मुक्त कराया जाए.
अदालत ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से आशुतोष महाराज के बारे में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया. इस पर 5 फरवरी को जालंधर रेंज के डीआईजी, एसएसपी और एसडीएम की टीम आश्रम हैडक्वार्टर गई. आश्रम के अधिकारियों से बातचीत की पर उन्होंने तथाकथित समाधि में लीन आशुतोष महाराज को दिखाने से इनकार कर दिया.
बाद में आश्रम प्रबंधन को समझाबुझा कर डाक्टरों की एक टीम द्वारा आशुतोष महाराज के स्वास्थ्य की जांच की गई. जांच रिपोर्ट में डाक्टरों ने स्पष्ट कहा कि वे ‘क्लिनिकली’ डैड हैं. उन की हृदय की धड़कन बंद है, नब्ज काम नहीं कर रही और मस्तिष्क डैड हो चुका है. यह रिपोर्ट सरकार को दे दी गई. सरकार ने महाराज का अंतिम संस्कार कराने के सवाल पर यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि धार्मिक रीतिरिवाज के मामले में वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहती.
विशाल व भव्य आश्रम
पंजाब के जालंधर से 33 किलोमीटर दूर नूरमहल कसबा आम दिनों की तरह अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त था. करीब 10 हजार की आबादी वाले कसबे की सड़क के किनारे बिजली के खंभों पर लगे आशुतोष महाराज की फोटो और सीख वाले वाक्यों से भरे होर्डिंग्स लोगों का ध्यान बरबस ही आकर्षित करते हैं.
कसबे के उत्तरपूर्व में स्थित आशुतोष महाराज के विशाल आश्रम में आम दिनों की तरह चहलपहल थी. शाम के 7 बज चुके थे. भक्त आजा रहे थे. करीब 600 एकड़ में फैले विशाल आश्रम में चमचमाती गाडि़यों की लाइनें लगी हुई थी. नकोदरलुधियाना मार्ग पर डेरे में प्रवेश से पहले पुलिस सुरक्षा का बंदोबस्त था. आनेजाने वाले भक्तों के लिए कोई रोकटोक नहीं थी. आशुतोष महाराज के कुछ भगवा वस्त्रधारी शिष्य और स्वयंसेवक डेरे में इधरउधर घूम रहे थे. आश्रम में बाहर से आए भक्त खुश थे कि महाराज समाधि में हैं. फगवाड़ा से अपनी पत्नी के साथ आया हरजिंदर सिंह गर्व से बताता है कि गुरुजी 10 दिन से समाधि में हैं. वह बिलकुल मानने को तैयार नहीं कि उस का गुरु अब इस दुनिया में नहीं रहा. गुरुजी पहले भी लंबे समय तक समाधि में बैठ जाते थे.
लगभग 3 हजार वर्गगज में निर्मित सफेद भव्य आश्रम किसी महल जैसी झलक देता दिखाई पड़ता है. आश्रम में आने वाले भक्तों के लिए रहने, खानेपीने का पूरा इंतजाम है लेकिन भक्तों को महाराज आशुतोष के दर्शन नहीं कराए जा रहे हैं. इस का उन पर कोई खास असर नजर नहीं आता. अवतार सिंह कहता है, ‘‘दर्शन बड़ी बात नहीं है. आश्रम में आने मात्र से ही गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है और शरीर शुद्ध व आत्मा पवित्र हो जाती है.’’
मृत या जीवित
यहां के बाशिंदे दबी जबान में कहते हैं कि 29 जनवरी को छाती में दर्द की वजह से आशुतोष महाराज की मृत्यु हो गई थी. वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. उन की मृत्यु की खबर जब डेरे से बाहर आई तो उन के अनुयायी इकट्ठा होने लगे लेकिन आश्रम प्रबंधन द्वारा कह दिया गया कि महाराज समाधि में चले गए हैं.
आश्रम प्रबंधन आशुतोष महाराज को मृत मानने को तैयार नहीं है. आश्रम का रोजमर्रा का कामकाज बदस्तूर जारी है. आश्रम की सुरक्षा चाकचौबंद कर दी गई. महाराज के ऊंचे राजनीतिक रसूख के चलते पुलिस सुरक्षा पहले से ही थी और जनता का आवागमन बढ़ने से और बढ़ा दी गई.
आश्रम की कोई खबर बाहर न जा पाए, इस के लिए आश्रम प्रबंधन ने मीडिया के अंदर प्रवेश पर रोक लगा दी. मीडिया के लिए आश्रम से बाहर ही टैंट लगा कर 3-4 लोग तैनात कर दिए गए पर उन के पास कोई जानकारी नहीं होती. प्रबंधन बात नहीं करना चाहता. आश्रम में मौजूद स्वामी विश्वदेवानंद से जब जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वे सिर्फ इतना कहते हैं कि महाराज योग की अंतिम अवस्था में हैं जहां शरीर की संपूर्ण क्रियाएं रुक जाती हैं.
आश्रम के भीतर कोई जानकारी नहीं दी जाती. बाहर कसबे के कुछ लोग प्रबंधन से नाराजगी जताते देखे गए पर ज्यादातर लोग आश्रम के पक्ष में खड़े दिखते हैं. यहां के एक स्थानीय नेता तीर्थराम संधु ने समाधि को ले कर एक लिखित बयान जारी कर कहा था कि महाराज अपनी समाधि से वापस लौट आएंगे. लोगों का इस में विश्वास है.
खेल संपत्ति का
स्वयं को आश्रम से जुड़ा बताने वाले मोहिंदर सिंह ने अदालत में याचिका दे कर कहा है कि डेरे की संपत्ति 1 हजार करोड़ रुपए की है. 300 करोड़ रुपए की संपत्ति तो संस्थान में ही मौजूद है. महाराज का शव फ्रीजर में इसलिए रखा गया है ताकि इस संपत्ति को प्रबंधक हथिया सकें.
उत्तराधिकार को ले कर आश्रम में कुछ गुट बने हुए हैं. एक गुट अमरजीत सिंह उर्फ अरविंदानंद का है जो आशुतोष महाराज के पुराने शिष्य हैं. यहां के लोकल शिष्य आशुतोष महाराज के बाद अरविंदानंद को गद्दी सौंपना चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर संस्थान की गवर्निंग बौडी की अगुआई करने वाले आदित्यानंद, नरेंद्रानंद को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं, जबकि अन्य गुट सुविधानंद उर्फ सोनी को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं.
इसी बीच, बिहार के मधुबनी जिले के लखनौर गांव से आशुतोष महाराज का परिवार सामने आया और संपत्ति पर अपनी हिस्सेदारी जता रहा है. खुद को आशुतोष महाराज का बेटा होने का दावा करने वाला दिलीप कुमार पंजाब सरकार से अपने पिता का शव उन्हें सौंपे जाने की मांग के साथसाथ उन की संपत्ति पर भी अपना हक जताते हुए अनशन पर बैठ गया था. 2 दिन बाद बिहार भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने दिलीप कुमार के घर जा कर अनशन तुड़वाया और शव दिलवाने के लिए आश्वासन दिया.
प्रचारप्रसार
असल में पंजाब में आतंकवाद के दौर में यानी वर्ष 1983 में आशुतोष ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की स्थापना की थी. बलवंत सिंह नाम के एक एनआरआई ने नूरमहल में संस्था स्थापित करने में मदद की. वह नूरमहल से पंजाब में शांति के नाम पर ‘ब्रह्मज्ञान’ बांटने लगे. प्रवचनों के बाद धीरेधीरे देशभर में उन के लाखों शिष्य बन गए. नूरमहल के अलावा दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में आश्रम बना दिए गए. महाराज के प्रवचनों का कारोबार चल पड़ा. महाराज के प्रवचनों की कैसेट्स, डीवीडी, पुस्तकें, सीडी, पत्रिका आदि का अच्छाखासा बाजार बन गया.
देशविदेश में आशुतोष महाराज के तकरीबन 110 आश्रम और केंद्र हैं. इन में वौलिंटियर्स बड़ी संख्या में हैं. इन की तादाद 2 लाख से ऊपर बताई जाती है. इन के अलावा लगभग 2 हजार पूर्णकालिक प्रवचक हैं जो शहरों, कसबों में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और आशुतोष महाराज के प्रचार के साथसाथ प्रवचन देते हैं. देशविदेश में उन के लाखों अनुयायी हैं.
वोटबैंक
कहा जाता है कि पंजाब के राजनीतिक दलों के लिए सत्ता का रास्ता यहां के डेरों और बाबाओं के चरणों से हो कर निकलता है. लिहाजा, डेरा सच्चा सौदा की तरह वर्ष 2000 से नूरमहल का दिव्य ज्योति जागृति संस्थान सक्रिय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनने लगा. राजनीतिक पार्टियों को दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और आशुतोष महाराज एक बहुत बड़े वोटबैंक के मालिक नजर आने लगे. यहां सभी दलों के बड़ेबड़े नेता आने लगे थे. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री आई के गुजराल, शिरोमणि अकाली दल नेता सुखदेव सिंह ढींढसा और सुखवीर सिंह बादल नूरमहल डेरे के अनुयायियों में शामिल हो गए.
डेरे और बाबा अपने भक्तों को खास राजनीतिक दलों और नेताओं के पक्ष में फतवे देने लगे. इसीलिए चुनावों के आने से पहले राजनीतिबाजों द्वारा डेरों की परिक्रमा बढ़ जाती है. इसी मध्य, एक बार जब आशुतोष महाराज की अकाली दल नेताओं से नजदीकी बढ़ती देखी तो पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन की धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी. बाद में प्रकाश सिंह बादल सरकार आई तो उस ने प्रतिबंध हटा दिया.
महाराज के प्रतिद्वंद्वी
इस दौरान, आशुतोष महाराज के मजहबी प्रतिद्वंद्वी पंथ भी सामने आ गए. उन्हें बाहरी मान कर पंजाब के अन्य धर्मगुरु विरोध करने लगे. उन का धर्र्म प्रचार पंजाब के कुछ लोगों को रास नहीं आया. सिख पंथ ने समयसमय पर उन के धार्मिक समागम का विरोध किया.
पहली बार वर्ष 1998 में अमृतसर में खंडूर साहिब में स्थानीय सिखों ने उन के सत्संग की इजाजत नहीं दी. वर्ष 2002 में सिखों ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के एक प्रवाचक के खिलाफ प्रदर्शन किया और उस पर हमला कर दिया. उस पर आरोप था कि वह सिख पंथ का अपमान करता था.
उसी साल तरनतारण में हिंसा हुई और उन के अनुयायियों को निशाना बनाया गया. एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी. वर्ष 2008 में भी मलोट के सेवा सदन भवन में आशुतोष महाराज का रामकथा आयोजन के वक्त स्थानीय सिखों ने भारी विरोध किया. भारी संख्या में पुलिस बल तैनात करना पड़ा. महाराज के शिष्यों और सिखों की भिडं़त हुई जिस में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. फायरिंग में 15 लोग घायल हो गए थे.
वर्ष 2009 में लुधियाना में भी सिख प्रदर्शनकारियों ने महाराज की संगत का विरोध किया. पुलिस बल तैनात हुआ. पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं. दर्जनों वाहन फूंक दिए गए, एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए. विरोध ‘दल खालसा’ ने किया था.
आशुतोष महाराज के ढोंग का पूरे पंजाब में कट्टर सिख संगठनों द्वारा विरोध किया गया. जगहजगह उन के समागमों की खिलाफत की गई. आरोप लगे कि वे सिख पंथ की बुराई करते थे. लिहाजा, वर्ष 2005 में 100 सिख संगठनों ने अकाल तख्त पर इकट्ठा हो कर पंजाब में बढ़ रहे डेरों की जांच का रास्ता निकालने की बात कही लेकिन एकजुटता की कमी के कारण बात आगे नहीं बढ़ पाई. उन के जालंधर, लुधियाना, पटियाला, फिरोजपुर, अमृतसर और नवांशहर जिलों में डेरे हैं.
सिख पंथ द्वारा समयसमय पर आशुतोष महाराज पर आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वे सिखों की धार्मिक पुस्तक का सम्मान नहीं करते. इस पुस्तक को अन्य पुस्तक के साथ रखा और पढ़ा जाता है. बिना हाथ धोए इसे छूने दिया जाता है. ऐसे ही विवाद दलितों के गुरुद्वारों पर भी लगते रहे हैं. आशुतोष महाराज को मिली ‘जैड प्लस’ सुरक्षा का भी सिख समुदाय द्वारा विरोध किया गया.
आशुतोष महाराज के साथ पंजाब के हिंदुओं के साथसाथ सिख भी जुड़े हुए थे. कहा जाता है कि दिव्य ज्योति जागृति संस्थान को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन मिलता रहा है.
डेरों का द्वंद्व
पंजाब में जातियों, वर्गों के आधार पर अलगअलग डेरे हैं, अलगअलग गुरु हैं. यहां हर गांव में 2 गुरुद्वारे हैं. एक ऊंची जातियों का, दूसरा निचली जातियों का. यहां दलित रविदासी समुदाय के गुरुद्वारे पिछले समय में बड़ी संख्या में खड़े हो गए. इन के बीच आएदिन झगड़े, विवाद की खबरें आती रहती हैं.
पंजाब के डेरों पर किसानों की बेशकीमती जमीनें हथियाने के आरोप भी लगते रहते हैं. राज्य के कई एनआरआईज ने खासतौर से दलित समुदाय के लोगों ने पैसा कमाने के बाद अपनेअपने गांव, कसबे, शहर में दलितों के लिए गुरुद्वारे बनाने में खूब रुचि दिखाई और गुरुद्वारों के निर्माण में लाखों, करोड़ों रुपए खर्च किए. विदेशों में रहने वाले कुछ लोगों ने तो अपनी कीमती खेती की जमीन बाबाओं और डेरों को मुफ्त में दान कर दी.
महेश से महाराज
आशुतोष का असली नाम महेश कुमार झा था. वह बिहार के मधुबनी जिले के लखनौर गांव का था. वर्ष 1973 में उस ने परिवार को त्याग दिया था. उस समय उस का बेटा मात्र 1 साल का था. वह अंगरेजी में स्नातक था और आगे पढ़ने के लिए दिल्ली आ गया लेकिन यहां दिल्ली मानव धर्म संस्था में नौकरी करने लगा. कहा जाता है कि यहां से उसे अनैतिक गतिविधियों के कारण निकाल दिया गया.
इस के बाद उस ने दिल्ली छोड़ दी और पहले पटियाला फिर नूरमहल आ गया. यहां उस ने देखा, धर्मगुरु बन कर धर्मांध लोगों को गुरु, ईश्वर और ‘बह्मज्ञान’ पर प्रवचन बेचना फायदे का सौदा हो सकता है. उस ने भगवा बाना धारण कर लिया और अब उस का महेश कुमार झा से आशुतोष महाराज के रूप में नया अवतरण हो गया. धीरेधीरे उस ने खुद को गुरुओं का अवतार बता कर अपने चेले मूंडने शुरू कर दिए.
इर्दगिर्द कुछ एजेंट रख लिए जो महाराज के झूठे, गढ़े गए चमत्कारों की कथा लोगों को सुना कर डेरे की ओर खींचने की कोशिश करने लगे. हर धर्मगुरु के पास ऐसे पेशेवर वेतनभोगी दलाल हैं जो गुरु को परमात्मा का स्वरूप, प्रिय देवदूत, पैगंबर, अवतार सिद्ध करने में सिद्धहस्त हैं. आशुतोष महाराज के एजेंटों ने भी यही फंडा अपनाया. एजेंटों ने नए भक्तों को निशाना बनाया. दावा किया गया कि आशुतोष महाराज के सत्संग में शामिल हों, वहां साक्षात, सशरीर भगवान के दर्शन कर सकते हैं. उच्च स्तर के आध्यात्मिक अनुभव करेंगे.
लिहाजा, दुख के मारे लोग उन्हें साक्षात गुरु, अवतार मान कर पूजने लगे. भक्तों की तादाद बढ़ने लगी. अब वह प्रवचन देने गांव, कसबे, शहरों में जाने लगा. भीड़ जुटी यानी ग्राहक बनने लगे तो वे दूसरी दुकान पर न जाएं, इस के लिए उन्हें गुरुमंत्र दे कर फंसा लिया गया. महाराज की झोली में चढ़ावा आने लगा.
महाराज के दलाल नए लोगों को आकर्षित करने के लिए अपने घरों में कार्यक्रम कराने लगे. इस का तमाम खर्च आश्रम उठाने लगा. कार्यक्रम में आशुतोष महाराज की तसवीर सब से ऊपर रखी जाती है. उसे गुरु का दरजा दिया जाता है. लोग सत्संग के बाद गुरु की तसवीर के आगे दानदक्षिणा चढ़ाते हैं. जो लोग 5-7 बार सत्संग में आ जाते हैं उन्हें मुख्य आश्रम में गुरुमंत्र लेने के लिए भेजा जाता है. मंत्र देने का अधिकार केवल आशुतोष महाराज को ही था. मंत्र लेने वालों से एक फौर्म भरवाया जाता है जिस में शिष्य की पूरी जानकारी होती है. बाद में आश्रम से ही 50 रुपए का प्रसाद दिया जाता है जो महाराज के चरणों में चढ़ाना होता है.
इस तरह नया चेला बनते ही 50 रुपए तो देने ही पड़ते हैं. बाद में हर कार्यक्रमों में भक्तों की जेबें खाली कराईर् जाती हैं.
महाराज के एजेंट उन के चमत्कारों की जो कथा सुनाते थे उन में एक यह कथा भी पंजाब में काफी चर्चित है कि एक बार किसी औरत का पति मर गया. वह दहाड़ें मारमार कर रो रही थी. तब किसी ने आशुतोष महाराज को बुलाने की बात कही. महाराज वहां पहुंचे और महिला के पति की मृतदेह पर उन के हाथ फेरते ही वह जिंदा हो गया.
इस से आगे का वाकया यह है कि महाराज का एजेंट एक अमृतधारी के पास गया और उसे उन का शिष्य बनाने की खातिर चमत्कार का यह किस्सा सुनाया तो उस अमृतधारी ने उठ कर एजेंट का गला पकड़ लिया और दबाना शुरू कर दिया. एजेंट गिड़गिड़ाने लगा और अपने जीवन की भीख मांगने लगा. इस पर अमृतधारी बोला कि तुम मरने से डरते क्यों हो? तुम्हें तो तुम्हारे गुरु जिंदा कर ही देंगे.
असल में चमत्कारों के किस्से धर्मगुरुओं की मार्केटिंग के तरीके होते हैं. नूरमहल में आप प्रवेश करेंगे और आश्रम की ओर बढें़गे तो रास्ते के किनारे आप को छोटेबड़े होर्डिंग्स दिखाई देंगे. अच्छीअच्छी सीख लिखे ये अनगिनत होर्डिंग्स लोगों को केवल धर्म की बढि़या बातें सिखाने के लिए नहीं, ये मार्केटिंग का एक कारगर फंडा हैं.
यह टीम गुरुओं की करामाती लीला को अनंत और लाजवाब बता कर प्रचारप्रसार करती है. भक्तों की सुविधा का इतना खयाल रखा गया है कि आश्रम परिसर में ही बैंक का एटीएम लगवा दिया गया ताकि भक्तगण गुरुजी और आश्रम को दान देने के लिए पैसे एटीएम से निकाल कर दे सकें.
लेकिन इन के चमत्कारों में ईश्वर, अवतार होने के दावों में पोल ही पोल होती है. दिक्कत यह है कि धर्म, गुरु, अवतार, ईश्वर के जो करिश्मे बताए जाते हैं उन का धर्मांध जनता तार्किक मंथन नहीं कर पाती और धर्म के इन धंधेबाजों के चंगुल में फंसती जाती है. अपना कीमती वक्त और धन इन पर बरबाद करती रहती है.
आशुतोष महाराज फोटो, इहलोक और परलोक सुधारने के मंत्र, यंत्र, तंत्र बेचने लगे. फिर एक समय आया कि वे विवादों में रहने लगे. अलगअलग पहनावे में दिखने लगे. तरहतरह की तसवीर भक्तों में बांटने लगे. किसी में पगड़ी पहने, किसी में खुले बाल, कहीं भगवा वस्त्रों में तो कहीं हरे कपड़े पहन कर मुसलमानों को लुभाने के लिए पीर बनने का ढोंग किया. उन्होंने खुद को सिख गुरु के अवतार के रूप में पेश किया. अपनी तसवीरों में गुरुवाणी की पंक्तियां प्रदर्शित कर वे हर जाति, धर्म, पंथ, वर्ग को रिझाने का प्रयास करते रहे.
संत और बाबाओं पर ऐयाशी के आरोप न लगें, यह तो हो ही नहीं सकता. आशुतोष महाराज पर भी आरोप लगते रहे हैं कि वे दूसरे संतों, बाबाओं की तरह धन और लड़कियों के शौकीन रहे हैं. यहां तक कहा जाता है कि वे अपने भक्तों से, खासतौर से सिख अनुयायियों से कहते थे कि वे अपनी जवान बेटियों को डेरों में दान दे दें.
अगर किसी गुरु, संत की छवि पर कोई लांछन लगता है तो उन के एजेंट उस कलंक को धोने और गुरु को फिर से शैतान से भगवान बना देने में इतने माहिर और सामर्थ्यवान होते हैं कि श्रद्धालुओं के विश्वास को कम होने नहीं देते. यही वजह है कि गुरुओं, संतों का आर्?िथक साम्राज्य इस देश में बढ़ता जा रहा है. अरबों की धनसंपदा बना कर वे ऐश करते हैं.
मजे की बात है कि धर्म मृत्यु को शाश्वत सत्य मानता है पर डाक्टरों द्वारा मृत घोषित आशुतोष महाराज के सत्य को आश्रम प्रबंधक स्वीकार नहीं करना चाहता. असल में अगर यह कह दिया जाए कि इस गुरु की मौत हार्टअटैक से हुई है तो यह आश्रम के लिए घाटे का सौदा साबित होगा क्योंकि धर्म, धर्मगुरुओं को तो सदैव अलौकिक, चमत्कारी करार दिया जाता रहा है. आम आदमी की तरह मरने की बात पर भला धर्म का धंधा कैसे चल सकता है.
लिहाजा, शाश्वत मृत्यु को समाधि का नाम दे कर जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है. कोई भी संत जब तक जिंदा रहता है तब तक औरों को माया से दूर रहने का ज्ञान दे कर खुद खजाना भरने में लीन रहता है और मरने के बाद उस के भक्तों में उस धनदौलत के लिए जूतमपैजार होने लगती है. हैरानी यह है कि लुटेपिटे भक्तों को फिर भी समझ नहीं आती.
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