क्या कांग्रेस, भाजपा, सपा और क्या वामपंथी, हर दल धर्म का लबादा ओढ़ कर चुनावी फतह के लिए हर टोटका आजमा रहा है. पूजा, मन्नत और अरदास के भरोसे सत्तासुख का स्वप्न देख रहे सियासतदानों की धर्मलीला से वाकिफ करा रहे हैं शैलेंद्र.
भारतीय जनता पार्टी के नेता तो हमेशा से ही पूजापाठ और धर्मकर्म को बढ़ावा देते रहते हैं. उन की पूरी राजनीति ही धर्म पर टिकी है. धर्म की सीढ़ी पर चढ़ कर ही उन को सत्ता का सुख मिला है. कांग्रेस भी कभी धर्म के विरोध में नहीं रही. जहां जैसी सुविधा मिली, उस ने धर्म का इस्तेमाल किया. कमाल की बात यह है कि समाजवादी और वामपंथी नीतियों की अगुआई करने वाले नेता भी अब धर्म को जीत का जरिया बनाने से पीछे नहीं हट रहे हैं. दलित विचारधारा में पलेबढे़ नेता खुल कर भले ही इस तरह के धार्मिक कार्यों से पीछे रहते हों पर उन की जीवनशैली में धर्म का एक अलग महत्त्व होने लगा है. चुनावी जीत के लिए जब ऐसे कर्मकांडों का सहारा लिया जाता है तो इस बात का भ्रम टूटने लगता है कि विज्ञान आडंबर को पीछे ढकेल सकता है.
ऐसे नेता किसी स्कूली बच्चों से नजर आने लगते हैं जो परीक्षा में पास होने के लिए मंदिर में जा कर प्रार्थनापत्र देता है. उसे लगता है कि भगवान उस की सुन लेंगे और परीक्षा में पास कर देंगे. नेताओं को अगर धर्म और भगवान की भक्ति पर इतना ही भरोसा है तो वे चुनाव प्रचार करने के लिए दरदर क्यों भटकते हैं? तमाम तरह के समझौते कर के लोगों को अपने साथ क्यों लेते हैं? उन को तो केवल भगवान की शरण में जाना चाहिए. वह चुनाव जिता देगा. नेताओं के ऐसे कामों से समाज में रूढि़वादिता और आडंबर को बढ़ावा मिलता है. और यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
जिस तरह से धर्म समाज को बांटने का काम कर रहा है उस से लगता है कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब एक धर्म के नेता को दूसरे धर्म वाले अपने इलाके में घुसने नहीं देंगे. मंदिरों में दलितों को पूजापाठ न करने देने की घटनाएं अभी भी समाज में मिलती हैं.
राजनीति का काम केवल सरकार बना कर शासन चलाना भर नहीं होता. राजनीति का काम समाज को रूढि़वादी आडंबर वाली सोच से मुक्त कराना भी होता है. जब नेता खुद ऐसे काम करेंगे तो समाज को क्या सीख देंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है. जीत के लिए नेता केवल धार्मिक आडंबर में ही नहीं लगे हैं वे चुनाव में अपना नामांकन दाखिल करने से पहले शुभअशुभ की गणना करने का काम भी करते हैं. ऐसे में चुनाव में जहां तमाम तरह के लोगों की मांग बढ़ी है वहीं इस तरह की पूजापाठ कराने वालों की चांदी हो गई है. अपने इसी गुण के कारण धार्मिक अनुष्ठान कराने वाले लोग सत्ता के सब से करीबी होते हैं. पहले के तमाम उदाहरण मौजूद हैं.
16वीं लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव लड़ रहे नेता ही नहीं, उन के समर्थक भी ऐसे तमाम अनुष्ठान कराते दिखे. ऐसा लग रहा था कि जीत का रास्ता ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों से हो कर ही जाता है. नेता अपने पूजापाठ और अनुष्ठान को बेहद निजी विषय बता कर बात करने से इनकार कर देते हैं. वे भूल जाते हैं कि समाज ने उन को नेता चुना है. ऐसे में उन की निजी राय माने नहीं रखती. उन का हर काम समाज में उदाहरण की तरह देखासमझा जाता है. ऐसे में नेताओं का निजी काम जनता में रूढि़वादी सोच को बढ़ाने का काम करता है. सो, देश में धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण कैसे होगा, यह सवालों के घेरे में है.
सोनिया ने भी किया पूजापाठ
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को रायबरेली लोकसभा सीट से अपनी हार का कोई खतरा नहीं है. सोनिया को इस बात का डर जरूर है कि देश में कांग्रेस की अगुआई में 16वीं लोकसभा का गठन होगा या नहीं. यूपीए वन और टू में कांग्रेस की सरकार बनवा चुकीं सोनिया गांधी ने मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सफलता के लिए रायबरेली में अपना नामांकन दाखिल करने से पहले विधिवत पूजापाठ की.
राहुल गांधी क ी अगुआई को ले कर कांग्रेस शुरू से ही भ्रम की हालत में रही है. कांग्रेस पार्टी के एक बडे़ हिस्से की मांग थी कि चुनाव से पहले भाजपा की तरह कांग्रेस को भी अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार राहुल गांधी को घोषित करना चाहिए था. कांग्रेस का दूसरा धड़ा इसे गैरजरूरी मान रहा था. उसे लगता था कि इस से राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी का मुकाबला करना पड़ेगा, जिस से चुनाव में कांग्रेस की हार की हालत में राहुल गांधी को निशाना बनना पड़ेगा. 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद जो हालत कांग्रेस की दिखी उस के चलते कांग्रेस ने राहुल गांधी को सीधी लड़ाई से बचाने के लिए उन को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया.
राहुल गांधी ने जिस तरह से चुनाव के पहले हवनपूजन किया, उस से उन के अंदर आत्मविश्वास की कमी साफ झलकती है. अब देखने वाली बात यह है कि राहुल गांधी का अपनी मां सोनिया गांधी के साथ किया गया हवनपूजन कितना काम आएगा?
धर्म भरोसे स्मृति ईरानी
अभिनेत्री से नेता बनी स्मृति ईरानी भाजपा के टिकट पर राहुल गांधी का मुकाबला करने अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. स्मृति ईरानी अमेठी जाने से पहले लखनऊ के मनकामेश्वर मंदिर गईं. वहां भगवान शंकर की पूजा की. मनकामेश्वर मंदिर के संबंध में लोगों की धारणा यह है कि यहां पूजा और दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है.
मनकामेश्वर मंदिर में पूजा करने के बाद वे अमेठी के लिए रवाना हो गईं. स्मृति ईरानी को टीवी के सीरियल देखने वाले लोग तुलसी के नाम से जानते हैं. अमेठी पहुंच कर स्मृति ईरानी ने कहा कि उन का मुकाबला कांग्रेस नेता राहुल गांधी से ही है. वे आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुमार विश्वास को पूरी तरह से खारिज करती नजर आईं. मनकामेश्वर स्मृति ईरानी की मनोकामना कितनी पूरी करेंगे, यह चुनाव के परिणाम बताएंगे.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से चुनावी मैदान में हैं. वे यहां मुख्यमंत्री के रूप में भी काम कर चुके हैं. वे पहली बार लोकसभा का चुनाव यहां से लड़ रहे हैं. यहां से भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई सांसद रह चुके हैं. इस के बाद उन की खड़ाऊं ले कर लालजी टंडन सांसद रहे. अब की लालजी टंडन पहले खुद चुनाव लड़ना चाहते थे बाद में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने लखनऊ से चुनाव लड़ने का फैसला किया. राजनाथ सिंह को अपनी जीत का भरोसा नहीं हो रहा था, इसलिए वे अटल का अंगवस्त्र ले कर आ गए. इस के बाद भी जीत में कोई कमी न रह जाए इसलिए वे चुनाव प्रचार से पहले पूजा और गिरजाघर जा कर प्रार्थना करना नहीं भूले.
समाजवादी नेताओं की पूजापाठ
समाजवादी विचारधारा में धर्म का महत्त्व नहीं था. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण हवनपूजा जैसे कर्मकांडों को आडंबर मानते थे. उन के अनुयायी चाहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, सभी चुनाव जीतने की जुगत में पूजा, मन्नत और हवन करने लगे हैं. नीतीश कुमार पहले अपनेआप को पूजापाठ से दूर रखते थे. उन का दावा था कि चुनावी जीत सुशासन से मिलती है. लेकिन इस लोकसभा चुनाव में वे बदल गए हैं. अब वे न केवल हाजीपुर जिले में विशाल मंदिर बनवा रहे हैं, बल्कि पटना से सटे फुलवारीशरीफ में चादर भी चढ़ाने जाने लगे हैं. नीतीश कुमार के मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना पल रहा है. ऐसे में उन को लगता है कि अगर भाजपा या कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका नहीं मिला तो उन का नंबर लग सकता है. इसलिए वे मंदिर और मजार दोनों जगहों का रास्ता पकड़ने लगे हैं.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर अपना दबदबा बताने वाले समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का मनोबल भी कमजोर पड़ गया है. मुलायम भी खुद को भविष्य का प्रधानमंत्री मान कर चल रहे हैं. इस में कोई कोरकसर न रह जाए, इसलिए वे भी हवनपूजन करने लगे हैं. कृषि एवं धर्मार्थ कार्यमंत्री मनोज पांडेय के सरकारी आवास पर
11 कुंडलीय विजय हवनयज्ञ का आयोजन किया गया. मुलायम ने यज्ञवेदी पर बैठ कर पूजा का कलावा बंधवाया. इस के बाद पुरोहितों से प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद भी लिया. यह आशीर्वाद मुलायम सिंह यादव के कितना काम आया, यह बाद में पता चलेगा.
सही काल हेतु समय की गणना
पूजापाठ, मन्नत और अरदास के बाद भी जीत का पूरा भरोसा न बना पाने के कारण नेता अपने नामांकन दाखिल करने के लिए ज्योतिषियों से सही समय की गणना कराते हैं. दक्षिण के राज्यों के ज्यादातर नेता सही समय की गणना कराने के बाद ही वोट डालने का काम करते हैं. जयललिता ने सब से शुभ समय की गणना कराने के बाद अपना और अपनी पार्टी के दूसरे नेताओं को उचित समय पर परचा दाखिल करने का निर्देश दिया. केरल में ज्योतिषियों की एक टीम ने सही समय का आकलन किया. गौरतलब है कि जयललिता भी इस लोकसभा चुनाव के बाद खुद को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में देख रही हैं.
द्रविड़ विचारधारा को मानने वाले एमडीएमके प्रमुख वाइको ने भी समय की गणना पर पूरा भरोसा दिखाया. द्रविड़ विचारधारा इस तरह के कर्मकांडों को नहीं मानती, ऐसे में वाइको का इस तरह के काम करना जनता में हैरानी फैलाने वाला था. दक्षिण भारत के कई नेता इस तरह के कर्मकांडों का पहले विरोध करते रहे हैं पर अब वे खुद उस में शामिल हो गए हैं. दरअसल, नेताओं में अब अपनी कुरसी और सत्ता को ले कर जिस तरह की असुरक्षा की भावना फैल गई है उस से उन का भरोसा कर्मकांडों में बढ़ गया है. ये लोग केवल चुनाव के समय ही नहीं, बाकी समय भी वास्तु और ज्योतिष के हिसाब से काम करते हैं. कर्मकांडों का पालन करने वाले नेताओं में अब वे लोग भी शामिल हो गए हैं जिन की विचारधारा भी कर्मकांड और अंधविश्वास का विरोध करती थी. ऐसे में समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों का मुकाबला करने के लिए अब जनता को ही सामने आना पडे़गा.
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